खजूर का पेड़
खजूर का पेड़
एक समय की बात है टेकारी रियासत के अरवल तहसील में एक व्यक्ति था जिसका नाम जयनंदन था वह एक दिन खजूरे देख कर पेड़ पर चढ़ गया, और बड़े आराम से खजुरे खाई। इतने में उसकी नजर नीचे गई तो वह सोचने लगा अगर नीचे गिर गया तो उसका क्या होगा, वह बच तो नही सकता है।
इतने में वह मन ही मन अपने आराध्य भगवान श्री बजरंगबली की प्राथना करने लगा कि अगर वह नीचे सुरक्षित उतर गया तो वह पांच सौ रुपये का प्रसाद चढ़ायेगा। फिर वह नीचे उतरने लगा आधे नीचे आने पर उसने मन ही मन सोचा कि पांच सौ रुपया ज्यादा तो नही है क्योंकि वह आधा तो नीचे उतर चुका है सो अगर मैं ठीक ठाक नीचे उतर गया तो एक सौ पच्चीस रुपया का प्रसाद तो जरूर चढ़ाऊंगा। फिर वह नीचे उतरने लगा कुछ दूर और नीचे आने पे वह सोचा की कही ज्यादा तो नही बोल दिया, फिर मन ही मन बोला अब एक सौ पच्चीस रुपया भी ज्यादा अब मैं मात्र पच्चीस रुपया का हो प्रसाद चढ़ाऊंगा, फिर वह पेड़ से थोड़ा दूर नीचे उतरा और जैसे ही नीचे उतरने वाले था तो उसने सोचा कि पच्चीस रुपया का प्रसाद भी ज्यादा है क्योंकि वह तो अब नीचे उतरने वाला है अगर यहाँ से गिरा भी तो हल्की चोटें आएंगी। क्यों नही पच्चीस रुपया के जगह पे केवल पांच रुपया का प्रसाद चढ़ाया जाए।
ऐसा सोचते ही वह धड़ाम से नीचे गिर गया, एकदम से हल्की चोट लगी और वह जोर जोर हँसने लगा हा हा हा हा, जाने है क्यों? क्योंकि अब वो सोच रहा था कि जब गिर गया हूँ तो अब एक रुपया का भी प्रसाद नही चढ़ाऊंगा।