ससुराल में रहने की सीख
ससुराल में रहने की सीख
एक नवयुवक जिसका नाम श्याम सुंदर था। उसका शादी इसी वर्ष फरवरी महीने में उसके बगल के गांव नोनाडीह गांव के उमेश राय की इकलौती बेटी सुनैना से हुआ था। आज वह पहली बार अपने ससुराल जा रहा था, वह जब जाने लगा तो उसकी माँ ने कहा कि "बेटा बीस मिनट और रुक जाओ, तुम्हारे पिता जी आने ही वाले होंगें, उनसे मिलकर के जाना", इतने में ही श्याम के पिता राधा मोहन सिंह आ गए और बोले कि "अभी तक तुम नही गए हो?", श्याम बोला "नही पिता जी मैं आपका ही इंतेजार कर रहा था।" राधा मोहन सिंह बोले कि "ठीक है जब जा ही रहे हो ससुराल तो एक चीज का बहुत ही ख्याल रखना अपने ससुराल में नही तो मेरा इज्जत ही खराब कर देना। "
श्याम सुंदर ने कहा कि क्या "चीज का ख्याल रखेंगे पिता जी?", फिर उन्होंने श्याम को समझाते हुये कहा कि "देखो वहाँ तुम ज्यादा मीन-मेख मत निकलना। जो वो लोग दे, चुपचाप प्रेम से खा लेना और किसी चीज का बुराई मत करना।" फिर वह अपने ससुराल के लिए निकल गया, करीब पंद्रह मिनट मोटरसाइकिल चलाने के बाद वह पाने ससुराल पहुँच गया। फिर हाथ मुँह धोने के लिए पानी मिला इस तरह श्याम सुंदर अपनी ससुराल पहुँच कर तैयार हो कर खाने के टेबल पर बैठ गया। तभी उसके सामने खाने में सूप पेश किया गया, जैसे वह सूप चखा ही होगा कि इतने में उसकी सास उससे पूछती है कि बेटा सुप कैसा लगा? इतने में श्याम सुंदर बोलता है कि मत पूछिए साबुन की तरह स्वाद लगा। तभी उसे पिता जी की कही सारी बात याद आ गया। और शयम आनन-फानन तैयार हो गया। लेकिन साथ मे ही वह यह भी जड़ दिया कि यकीन मानिए साबुन मुझे बहुत ही अच्छा लगता है, श्याम के ऐसा बोलते ही सभी लोग ठहाके मार का हँसने लगे, हा हा हा हा है