मेले में बहरूपिया
मेले में बहरूपिया
एक बार की बात है जब एक बहरूपिया इंसान का रूप लेकर एक मेले में चला गया ये बात काफी पुरानी थी जब मैं अपने दादा जी के मेला घुमने गया था। तब मैं काफी छोटा था।
हम रात को मेले में घूम रहे थे जहां बहुत सारे झूले आए हुए थे जिसपर बच्चों की लाइन लगी हुई थी। कही सिनेमा लगा था तो कही जादू दिखाया जा रहा था कहीं सुंदर सुंदर पकवान बन रहे थे।
मैं दादी जी से जिद कर करके सभी झूलों में बैठ रहा था काफी देर तक भागम दौड़ी करने के बाद मुझे भुख लगने लगी मैं मैंने दादा जी से कहा कि मुझे भुख लग रहा है।
तो वो मुझे एक रेस्टोरेंट में ले जाए वहां वेटन ने मेरी मनपसंद समोसे और रसगुल्ले ला दिए जिसे मैंने पेट भरकर खाया जिसके बाद हम वापस मेलें में घूमने लगे तो मुझे बुड्ढी के बाल दिखे और मैंने खाने की जीद की तो दादा जी ने वो लेकर मुझे दिया और मैं उसे खाने लगा और दादा उस आदमी को पैसे देने लगे।
तभी किसी ने मेरा वो बुड्ढी का बाल छीन लिया और वहां से जाने लगा तो मैंने रोना शुरू कर दिया दादा मेरी ओर देखें तो मैंने कहा उस अंकल ने मुझसे वो छीन लिया।
तो दादा जी ने उसे आवाज लगाई तो वो पीछे मुड़ा उसकी आंखें अजीब सी थी वो बिना पलकें झपकाए दादा जी को ही देख रहा था उसके शरीर से अजीब सी बदबू आ रही थी।
ये देखकर दादा जी चिल्लाने लगे अरे जल्दी आया आओ देखो एक बहरूपिया मेले में घुस आया है सभी लोग भागते हुए हमारे पास आने लगे तो मैंने देखा वो अचानक से वहां से गायब हो गए।
दादा जी ने मुझे गले से लगा लिया मैने उनसे पुछा वो कौन था दादा जी तो वे बताएं वो एक बहरूपिया था जो इंसान का रूप लेकर हमारे बीच आ जाता है और हमें नुकसान पहुंचाता है।
इसके बाद मैं काफी डर गया क्योंकि गायब होते हुए वो मुझे ही गुस्से भरी नजरों से देख रहा था..!