Dinesh Dubey

Inspirational

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Dinesh Dubey

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सच्चा न्याय

सच्चा न्याय

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एक राज्य का राजा बहुत न्याय प्रिय था, उसकी प्रजा भी उस से प्रसन्न रहती थी ,।

एक बार राजा शिकार खेलने गया उसका तीर लगने से जंगल के आदिवासी में से किसी का बच्चा मर गया । बच्चे की माँ विधवा थी और यह बच्चा उसका एकमात्र सहारा था ।

बच्चे के साथ रोती-पीटती विधवा न्यायधीश के पास पहुंची और उससे फरियाद की ।

जब न्यायधीश को पता चला कि बालक राजा के तीर से मरा है, तो उनकी समझ में नहीं आया कि वह इंसाफ कैसे करें, अगर उसने विधवा के हक में फैसला दिया तो राजा को सजा सुनानी होगी यदि उसने विधवा के साथ अन्याय किया, तो ईश्वर को क्या जवाब देगा।

वह काफी सोच विचार कर वह उसकी फरियाद सुनने को राजी हुआ ।

उसने विधवा औरत को दूसरे दिन अदालत में बुलवाया।

दूसरे दिन विधवा की फरियाद सुनने के पश्चात राजा को भी अदालत में बुलवाना आवश्यक था, वह राजा के पास यह सूचना किसी दूत से भेज सकता था उसने अपने एक सहायक को राजा के पास भेजा कि वह अदालत में हाजिर हो।

वह सहायक घबराया हुआ किसी प्रकार हिम्मत करके न्यायधीश का संदेश राजा को सुनाने पहुंचा । वह हाथ जोड़कर राजा के समक्ष उपस्थित हुआ तथा न्यायधीश का संदेश सुनाया।

राजा ने कहा कि "वह दूसरे दिन अदालत में अवश्य हाजिर होगा।

दूसरे दिन सुबह राजा न्यायधीश की अदालत में हाजिर हुआ वह जाते समय कुछ सोचकर अपने वस्त्रों के नीचे तलवार छिपाकर ले गया।

न्यायधीश की अदालत भीड़ से खचा-खच भरी हुयी थी । इस फैसले को सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आये थे । सभी देखना चाहते थे की इसका न्याय न्यायधीश कैसे करेंगे।

कुछ लोगो का कहना था ,वह राजा के विरुद्ध जा ही नहीं सकता।

तो कुछ कहते हैं,वह बहुत सख्त है ,राजा को दण्ड तो अवश्य देगा पर क्या देगा ये महत्वपूर्ण है।

दूसरे दिन राजा अदालत में आया तो प्रत्येक व्यक्ति उसके सम्मान में खड़ा हो गया।

लेकिन न्यायधीश अपने स्थान पर बैठा रहा वह खड़ा नहीं हुआ । उसने विधवा औरत को आवाज लगायी तो वह अंदर आयी । न्यायधीश ने उससे फरियाद करने को कहा।

विधवा ने सबके सामने अपने बेटे के मरने की कहानी कह सुनायी ।

उसके पश्चात न्यायधीश ने राजा से कहा “ महाराज! इस विधवा का बेटा आपके तीर से मारा गया है आप पर उसको मारने का आरोप है। इस विधवा की यह हानि किसी भी स्थिति में पूरी नहीं हो सकती । मैं आदेश देता हूं कि किसी भी हालत में इसका नुकसान पूरा करें। या फिर उसका दण्ड भुगतने को तैयार हो जाएं ।

राजा ने उस विधवा से क्षमा मांगी और कहा “ माते ! मैं तुम्हारे इस नुकसान को पूरा नहीं कर सकता; किंतु इसकी भरपाई के लिए मैं पुत्र के रूप में तुम्हारी सेवा करने का वचन देता हूं ।

तथा पूरा जीवन तुम्हारे परिवार का सारा खर्च उठाने की जिम्मेदारी लेता हूँ जिससे तुम्हारी जिंदगी सुख-चैन से कट सके।”

राजा के इस बात से विधवा राजी हो गयी। न्यायाधीश अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ तथा उसने अपनी जगह राजा के लिए खाली कर दी।

राजा बोला “ न्यायाधीश जी! अगर आप ने फैसला करने में मेरा पक्ष लिया होता और गलत फैसला किया होता तो मैं तलवार से आपकी गर्दन काट देता कहकर उसने अपने वस्त्रों में छिपी तलवार बाहर निकालकर सब को दिखाई।”

न्यायाधीश सिर झुकाकर बोला “ महाराज! अगर आप ने मेरा आदेश मानने में जरा भी टाल-मटोल की होती तो मैं भी हंटर से आप की खाल उधड़वा देता।”

इतना कहकर उसने भी अपने वस्त्रों के अंदर से एक चमड़े का हंटर निकालकर सामने रख दिया।

राजा न्यायधीश की बात से बड़ा प्रसन्न हुआ और उसने उसे अपनी बांहों में भर लिया।

दोस्तो कहानी के माध्यम से राजा और न्यायाधीश का चरित्र कितना निष्पक्ष दिखाया गया है। समय आज का हो या कल का या फिर कल का था … मनुष्य का चरित्र हमेशा सीधा व सरल ही होना चाहिए …

लेकिन आज के दौर में लोगों को हर काम में अपना स्वार्थ , फ़ायदा निकालना होता है … ज्यादातर इंसान सिर्फ अपने मतलब के लिए काम करता है और उसके लिए वह कई प्रकार के हथकंडे अपनाता है जिसमें से चालाकी, स्वार्थ, धोखेबाजी आदि आते हैं। वस्तुतः न्याय को भी अपने पक्ष में करवा लेता है।

हमेशा एक बात ध्यान में रखकर चलना चाहिये कि कितना भी अपने को बचा ले लेकिन ईश्वर के न्यायालय में कोई नहीं बच सकता।

  



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