Prakash Chinchole

Inspirational

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Prakash Chinchole

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विचारों का महत्व

विचारों का महत्व

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कार्यक्रम में उपस्थित होने के लिए साफ़ और सफ़ेद कपड़ों में स्मार्ट बनकर निकला था। कार्यक्रम के आयोजन समिति में मैं भी शामिल था इसलिए समय से पहले ही कार्यालय पहुंच गया था। 


अपनी स्कूटर से उतरकर जैसे ही पाव जमीं पर रखें, लग रहा था जैसे पैरों तले ज़मीन खिसक रही हो! स्कूटर को स्टैंड पर खड़ा किया। थोड़ी दूर जब पैदल चल रहा था, रास्ता समतल होते हुए भी उबड़-खाबड़ महसूस हो रहा था।


आज जूता नया पहना था, लेकिन जूते के नीचे लगा सोल उखड़ने लगा। सोल के ब्रेड की टुकड़ो की तरह छोटे-छोटे टुकड़े रास्ते में बिखरने लगे। 

ऐसी हालत देखकर इस जूते को बदल कर वापस लौट आने के अलावा कोई विकल्प नही था। 


कार्यक्रम शुरू होने से पहले लौट कर आना भी था। स्कूटर फिर स्टार्ट की और चल दिया विकल्प की तलाश में। 


कम से कम एक दुकान तो रास्ते में मिलता! कोई स्लीपर या सस्ती चप्पल भी सही! एयरपोर्ट से खामला रोड़ और फ़िर बर्डी जैसें व्यस्त मार्केट में एक भी चप्पल जूते की दुकानें खुली नहीं थी।

लगभग सुबह नौ बजे थे। आम व्यक्ति इस वक़्त जब अपने दूध ब्रेड के विषय में सोचता है ऐसे समय पर भला मुझे चप्पल या जूता कहाँ मिलेगा?


बेहतर विकल्प की तलाश में रास्ता घर की दिशा की ओर मोड़ दिया गया क्योंकि आधे घंटे में घर पहुंचकर फिर ऑफिस में पहुंचा जा सकता था। ग्यारह से पहले मुझे किसी भी हालत में पहुंचना था। 

घर के गेट के बाहर अपनी स्कूटर पार्क की। पहली मंजिल तक पहुँचने तक सीढ़ी पर भी इस जूते ने अपने निशान छोड़े। दबे पांव बरामदे में झूले पर जाकर बैठा। 

जूता खोलकर देखा, उसकी अवस्था देखने जैसी थी। यक़ीन नहीं आ रहा था यह एक स्टैण्डर्ड कंपनी का जूता है। दोनों पैर के जूतों के सोल लगभग सपाट हो चुके थे अब कुछ भी बचा नहीं था। 


मैं अपने कमरे में आया। पत्नी गौर से मुझे घूर रही थी। उसके चेहरे के भाव देखकर मैं समझ गया वह कुछ और सोच रही है।


बेटे ने देखा और कहने लगा, 'पापा, ये ऐसे कैसे हो गया?' 

मैं शांत था। हमेशा पहनने वाला जूता पहना और जल्दी-जल्दी निकल पड़ा। 

पत्नी के चेहरे पर बदलते भावों को मैं देख रहा था। लेकिन मेरे पास समय कम था मुझे जल्दी पहुँचना भी था। मैं शांत था। 

नीचे जाकर जब स्कूटर स्टार्ट की और हमेशा की तरह जाने का इशारा किया, वह कहने लगी, 'आप ठीक तो है ना !'


मैं मुस्कुरा कर आगे चल पड़ा।


कुछ चीजों को हम सेफ कस्टडी में रखते है। रोज़मर्रा के जीवन में उसका उपयोग कम करते है या कभी-कभी तो भी करते नहीं। उपयोग के लिए विशेष अवसरों की तलाश करते है लेकिन ऐसे ही अवसरों पर कभी-कभी वे हमारा साथ नहीं देते।


इस जूते को ख़रीदकर दो वर्ष हो चुके थे और मैंने इसे रख दिया छज्जे पर। इन दो वर्षो में इसका उपयोग ही नहीं किया। 

दुकान से संपर्क से लेकर कंपनी का जवाब एक अलग कहानी को जन्म देती है। कुछ समय के बाद गारंटी की समय सीमा भी समाप्त हो जाती है। 


जी हाँ, यह सच है, कई चीजें हमने ऐसे ही छोड़ दिए है एक बार ज़रूर चेक कर लीजिये। 

कौन से विचार आज के पल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है, आज वर्तमान में भी उनका महत्व है, आज भी वे प्रासंगिक है, इस पर विचार करना ज़रूरी भी है।

कई किताबें भी ऊपर की आलमारियों में बंद पड़ी है। डिजिटल युग में कहीं इसका महत्व न खो जाए ?


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