पानी
पानी
नहीं प्यास बूझे बिन पानी के, बिन पानी भी क्या जीना रे,
स्तर दोनों का गिर जाए, जीवन फिर कैसे जीना रे।।
सूखे रहते तालाब सभी नदियों का पानी सूख रहा,
दोहन होते जल संसाधन जलस्तर देखो कहाँ रहा।
मजबूर हुआ मानव देखो दूषित पानी अब पीने को,
बिन मोल प्रकृति जो देती थी वो मोल ले रहे जीने को।
ना रंग नहीं आकार कोई पर जीवन का आधार है ये,
शीतल पवित्र अनुपम अमृत जीवन की बुनियाद है ये।
संचय कर इसका बूँद-बूँद नहीं व्यर्थ तूँ बहने देना रे,
नहीं प्यास बूझे बिन पानी के, बिन पानी भी क्या जीना रे।।
जो उतर गया पानी रे नर, नहीं भाव तुझे मिल पाएगा,
तन जिंदा लाश सदृश होता, मुँह किसको तू दिखलाएगा।
चढ़ गया जो सिर उपर पानी, तो प्रलय लिए वो आता है,
करता विनाश लीला जग में, नहीं अपना गैर समझता है।
पानी पानी जग में होता, नहीं मान लौटकर आता है,
बैठा-बैठा निज करनी पर, मन ही मन नर पछताता है ।
रखिए पानी अपना खुद ही, बिन पानी है सब सूना रे ,
नहीं प्यास बूझे बिन पानी के, बिन पानी भी क्या जीना रे।।
कहीं जमा बर्फ बन कर देखो, कहीं मोती सा है ठहरा,
कहूँ बादल संग है रहता कहीं ओस की बूँदों में ठहरा।
सागर की लहरों संग रहता झरनों संग गीत सुनाता है,
सावन के मौसम में जल ये नभ से धरती पर आता है।
नहीं है विकल्प कोई दूजा पानी का काम करे पानी,
कल्पना नहीं कर सकता हूँ जीवन का यूँ बिन पानी।
नष्ट यूँ करके तोय कभी ना दोष कभी सिर लेना रे,
नहीं प्यास बूझे बिन पानी के, बिन पानी भी क्या जीना रे।
जीवन भी पानी जैसा हो जैसे चाहे वो ढल जाए,
अस्तित्व मिटाकर खुद अपना पहचान दूध को दे जाए।
जलती ज्वाला को शान्त करे शीतलता देता है सबको,
गतिशील सदा रहना होगा संदेश यही देता जग को।
झरझर निर्झर बहकर ही तो जल भी मीठा पन पाता है,
ठहराव जो आया जीवन दूषित विचार आ जाता है।
पानी पानी का फेर समझ जल जैसा जीवन जीना रे,
नहीं प्यास बूझे बिन पानी के, बिन पानी भी क्या जीना रे।।