यादगार यात्रा
यादगार यात्रा
बात लगभग तीन-चार साल पुरानी है । हम कॉलेज की चार दिवसीय शैक्षणिक यात्रा के लिए बस द्वारा गए थे। हम पचास बच्चे और दो शिक्षक (सर ) थे । हमारी यात्रा बहुत अच्छी तरह संपन्न हो गई थी। इतिहास के विद्यार्थी होने के नाते हम सबने बहुत सारे ऐतिहासिक स्थल देखें और उनका अध्ययन किया । लौटते समय हमारे बस ड्राइवर भैया ने हाईवे छोड़कर एक दूसरा रास्ता ले लिया । यह रास्ता एक छोटे से शहर से होकर गुजरता था। थोड़ी देर बाद उन्होंने शहर की पक्की बड़ी सड़क छोड़कर, बस एक पतले रास्ते पर उतार दी। अब हम सब थोड़े चिंतित हो गए कि यह हमें कहां ले जा रहे हैं । सर से पूछने पर पता चला कि यही थोड़ी दूर पर ड्राइवर का गाँव है। वह चाहते थे की वह थोड़ी देर अपने गाँव, घर, परिवार के लोगों से मिलकर फिर वापस चलें। उसके लिए उन्होंने हमारे शिक्षक से अनुमति ली थी । इस तरह से शायद हमारे सफर में दो-तीन घंटे अतिरिक्त बढ़ जाते । पर हमारे शिक्षक बहुत अच्छे थे वह समझते थे, गाँव घर के इतने करीब से निकलने पर और घर ना जाने पर कैसा लगता है । वैसे भी इतनी दूर आने के लिए ड्राइवर भैया को अतिरिक्त पैसे, अतिरिक्त समय भी खर्च करना पड़ता इसलिए उन्होंने अनुमति दे दी थी।
अभी तक हम आपस में अंताक्षरी, दम सैराट खेल रहे थे । अब हम सभी ने कौतूहलवश बाहर देखना शुरू कर दिया था। जाड़े के दिन थे। सुनहरी धूप खिली थी जो कि अच्छी लग रही थी । चारों और खेत खलिहान, हम सब अनजाने में ही बस की खिड़की खोल कर लंबी सांसे लेने लगे। साफ हवा फेफड़े में जाते ही एक अलग एहसास हमने महसूस किया। थोड़ी देर खेत खलिहान के बीच में से निकलती सड़क पर चलने के बाद थोड़ी दूर पर कुछ छोटे घर दिखे । हमें लगा हम गाँव पहुँच गए हैं । थोड़ी दूर जाने पर सड़क के दोनों ओर पक्की बड़ी-बड़ी मिठाई, कपड़े, जूतों की दुकानें, बड़े बड़े पक्के तीन मंजिला घर, मोबाइल के दो टावर, पानी की टंकी, हम आश्चर्यचकित रह गए हम किसी गाँव में हैं या एक छोटे मोटे शहर में । थोड़ा आगे चलने पर कॉन्वेंट स्कूल का बोर्ड भी लगा था। अच्छा लगा देखकर कि हमारे गाँव इतने विकसित हो गए हैं । हमें लगा यहीं ड्राइवर भैया का गाँव होगा। पर उन्होंने बस यहां नहीं रोकी। हमारी बस थोड़ी देर और चलती रही। थोड़ी देर बाद बाएं हाथ पर एक कम सकरी सड़क पर उन्होंने बस मोड़ दी । सड़क के दोनों ओर लगी झाड़ियां हमारे बस की काँच की खिड़कियों पर प्रहार कर रही थी। हमने जल्दी से काँच बंद कर दिया । हमें ड्राइवर भैया पर गुस्सा आ रहा था, "कहां लिए जा रहे हैं" ? पर सर की अनुमति थी इसलिए हम उन्हें कुछ बोल भी नहीं सकते थे। शायद हमारे सर को भी नहीं मालूम था कि कितना अंदर जाना होगा। थोड़ी देर चलने के बाद उन्होंने बस एक बाग के पास रोक दी।
मैं बता दूँ, हमारे यात्रा प्रबंधक अपनी यात्रा में रसोइया साथ लेकर चलते हैं । बर्तन चूल्हा गैस वगैरह सब बस की डिक्की में रहता है। जहाँ मन किया, जगह देखकर एक घंटे में स्वादिष्ट भोजन, चाय सब तैयार हो जाती है। हाँ तो ढलती दोपहरी बाग की ठंडी हवाएं बहुत अच्छा लग रहा था । हम सब वही बाग में घूमने लगे । कुछ बच्चों का बचपन वापस आ गया। वह पेड़ पर चढ़ने लगे । जिसे पेड़ पर चढ़ना नहीं आता था वह हसरत से ऊपर चढ़े लोगों को देख रहे थे और खुद भी पेड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे । पेड़ पर न चढ़ पाने वालों में से हम भी एक थे । यात्रा प्रबंधक महोदय चाय का इंतजाम करने जा रहें थे। वह ड्राइवर भैया के साथ रसोइए के एक सहयोगी को भेज कर दूध मंगाने जा रहे थे। सर की अनुमति लेकर हम और कुछ दोस्त भी ड्राइवर भैया और सहयोगी के साथ चल पड़े । हमने ड्राइवर भैया से कहा, "ड्राइवर भैया अपना घर हमें नहीं दिखाएंगे।" वह खुशी-खुशी लगभग रुआँसे होकर तैयार हो गये।
सड़क आगे भी पतली थी पर मोड़ बहुत थे इसलिए वहां बस का जाना संभव नहीं था । हम साफ-सुथरी गलियों से होते हुए गाँव के लगभग दूसरे छोर पर पहुँच गए थे। ड्राइवर भैया का घर और खेत (जो उन्होंने किसी से बटाई या अधिया पर लिए थे) पास ही थे । उनको देखते ही उनका बेटा पापा कहकर लिपट गया। ड्राइवर भैया ने अपने माँ बाबू के पैर छुए और हम से परिचय करवाया । हमने भी सभ्यतावश नमस्कार में हाथ जोड़ लिए। ड्राइवर के बाबू उसकी बेटी से बोले जा माँ को बुला ला। ड्राइवर भैया बोले रहने दो मैं जाकर मिल लेता हूँ। मुझे बच्चों को खेत भी दिखाना है। हमें लगा उनकी पत्नी खेत पर होगी। थोड़ा आगे जाने पर हमने कुएं के पास कुछ लोगों को पानी भरते देखा एक औरत पानी भर रही थी उसके पास ही दो लोग खड़े थे शायद वो पानी भरने के लिए अपनी बारी पर इंतजार कर रहे थे I ड्राइवर भैया उधर की ओर बढ़े I तीनों ने ड्राइवर भैया के पैर छुए । ड्राइवर भैया ने हमारा परिचय उनसे करवाया, वह उनकी पत्नी, उन का छोटा भाई और बड़ा बेटा था । वह तीनों कुएं से पानी निकाल कर खेतों में लगी सब्जियों की सिंचाई कर रहे थे । हमने कुएं में झांक कर देखा तो हमें पानी दिखाई नहीं दिया। हे भगवान! इतना गहरा कुआं। कितनी मेहनत लगती होगी। तीनों बाल्टी भर गई तो एक-एक बाल्टी तीनों पुरुषों ने उठा ली और खेत की ओर बढ़े। हम भी उनके साथ साथ चल पड़े। हमें लगा कहीं पास में ही कहीं खेत होगा पर काफी दूर चलने पर हम उनके खेत पर पहुँचे । मेरे दोस्त ने हैरान होकर पूछा, "भैया ट्यूबवेल नहीं है क्या ? ड्राइवर ने गर्व से जवाब दिया, "है ना, बड़े मालिक ने लगवाया है ! पर उसका उपयोग सिर्फ बड़ी फसल में पानी देने के लिए करते हैं। उसके लिए डीजल लाना पड़ता है। यह तो खाली दो खेत है। जितनी सब्जियां लगी है यह तो कुएँ के पानी से ही सींच जाते हैं l
हम दूर दूर तक फैले खेतों को देख रहे थे । शायद यह हम सब का पहला अवसर था, इस प्रकार खेतों में आने का I हमने देखा वही खेत के किनारे पर चार बाँस या लकड़ी के खंभों पर जमीन से छह : फुट की ऊंचाई पर एक झोपड़ी सी बनी थी । हम सभी आश्चर्य से देखने लगे । तब ड्राइवर भैया की पत्नी बोली, "रात को जंगली सूअर, नीलगाय, या आवारा पशु आकर फसल को खराब कर देते हैं । इसलिए रात को किसी एक को यहां सोना पड़ता है । पहरेदारी करनी पड़ती है"। हमारी तो हड्डी तक काँप गई। इतनी ठंड में इस टूटी फूटी झोपड़ी में ? मैं सोचने लगा हम शहर वाले कितने चाव से ट्री हट में रहते हैं जो कि पूरी तरह से वातानुकूलित और सभी सुविधाओं से संपन्न होती है । और यहां ट्री हट में रहना इन लोगों की मजबूरी है।
ड्राइवर के अलावा उनका भाई, बापू, दोनों बेटे, पत्नी सभी काले, दूबले-पतले, या यूं बोलो तो एकदम सूखी हुई काया थी। मैं उन्हें देख कर सोचने लगा, यह फिल्म वाला गाना गाकर खेत में हल चलाता गोरा चिट्टा, सिक्स पैक्स वाला किसान, कहां है ? हां गाना तो शायद यह लोग भी गाते होंगे पर यह खुशहाल तो नहीं दिख रहे थे। थोड़ी देर बाद हम ड्राइवर भैया के घर वापस आ गए । घर पर ड्राइवर भैया की माँ ने घर की बनी दूध की बर्फी हमें खिलायी और चाय के लिए पूछा। पर हमने ना बोला। वह बर्फी हमारी जिंदगी में खाई किसी भी महंगी मिठाई से ज्यादा स्वादिष्ट थी। उसमें शुद्धता के साथ-साथ प्यार भी मिला था। रसोइए के साथ दूध लेकर हम वापस बाग में आ गए । तब तक वहां गांव के खेत से ताजी तोड़ी हुई अलग-अलग भाजी तरकारी की भजिया पकौड़ी बननी शुरू हो गई थी । हमारे दूध लेकर पहुँचते ही चाय भी तैयार हो गयी। पास के ही एक कुभ्हार के पास से कुल्लहड़ भी मंगा लिए गए थे । हमने कुल्लहड़ वाली चाय पी और ताजी सब्जियों की गरमा गरम पकौड़ी के साथ बाग के पेड़ों के पीछे अस्त होते हुए सूर्य को देखने का आनंद उठाया । सूर्य अस्त हो पाता इससे पहले ही हमारे रसोइए ने सारा सामान समेट दिया था । ड्राइवर भैया भी आ गए थे । हम कुल्हड़ की चाय, ताजी सब्जियों की पकौड़ी, दूध की बर्फी का स्वाद और ताजी हवा की सोंधी खुशबू को मन में बसाए हुए वहां से निकल पड़े । बाद में हमने बस में मौजूद सभी बच्चों को वहां के बारे में, वहां की बातें साझा की और साथ ही विचार रखा कि इस साल होली पर हम भले ही नया कपड़ा ना खरीदें पर कम से कम हजार हजार रुपए का योगदान देकर ड्राइवर भैया के खेत में एक हैंडपंप जरूर लगवायेंगे (हमने लगवाया भी) । जिससे उन्हें सिंचाई करने के लिए कुएं से पानी खींच कर खेतों तक ना ले जाना पड़े । उस यात्रा में हमने यह भी निश्चय किया कि हम कुछ ऐसा बनने की कोशिश करेंगे जिससे कि हम समाज की कुछ मदद कर सके I बिना किसी पूर्व योजना के की गई गाँव की वह यात्रा मेरे जीवन की सर्वोत्तम यात्रा थी। जिसने मुझे, हमें गाँवो से किसानों से परिचित करवाया। और हमें समाज के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित किया।