अहसानमंद हूं मैं
अहसानमंद हूं मैं
अहसानमंद हूँ मैं, उन छोटी छोटी नाकामियों की
जिन्होंने मुझे दी वह बेमिसाल परवरिश-
दिखाया जिन्होंने ज़िंदगी का आईना
न था मुमकिन हरगिज़ वह मुआयना
उस आईने के बगैर- माने न कोई बंदिश,
रखता हिसाब -किताब हमारी ग़ुसताख़ियों की!
आईना न होता तो कैसे आती नज़र वह खामियां
अपने नाक-नक्श, चाल-ढाल, रंग-रूप
आँखों में छुपा व्यंग्य या तिरस्कार
अव्यक्त कुछ भाव या कुछ उद्गार
कैसे देख पाते अपना असली स्वरूप
कैसे पता चलता कि दिखती हैं हमारी सरगर्मियां!
आईने का है अहसान हम पर, मानें हम न मानें
मिला है आईना कांच का एक हम सभी को
दोस्त और शुभचिंतक रूपी दूजा
वैसे तो करनी चाहिए इनकी पूजा
दोनों ही फूटी आँख नहीं सुहाते किसी को
सच कड़वा जो लगता है यह हम सभी जानें!