ख़ुद से बात
ख़ुद से बात
खुद से बातें करना भाता है मुझे
यह 'ख़ुद' न होता गर
कौन सुनता, कौन समझता मुझे
मेरे हर ग़म हर खुशी का
राज़दार, संभालता हमेशा मुझे
दुनिया पर नहीं इतना भरोसा
देगी साथ हर हाल में मेरा
दोस्त रिश्तेदार दें साथ थोड़ा सा
मगर सच्चा तलबगार मेरा
मुझे नहीं दिखता कोई अपना सा
मतलब परस्त हैं रिश्ते- परखा मैंने
मुखौटों के पीछे हैं कुछ और
उचट गया मन कितनी बार, मगर मैंने
बढ़ाए कदम समझौतों की ओर
देखा 'ख़ुद' में सच्चा दोस्त मैंने
ज़माने से न आस लगा, ख़ुद से नाता जोड़
सवाल जवाब , मुश्किलों के हल
कर ख़ुद से बात, बदग़ुमानियां सारी छोड़
हो जाएगा सुंदर तेरा आज, तेरा कल
भ्रम जाल से निकल, बेड़ियां अब दे तू तोड़
उलाहना ही सही, पुचकार सही
मेरा 'ख़ुद' मेरा दोस्त सखा
जाना मुझे नहीं है और कहीं
यहां वहां क्या है रखा !
'ख़ुद'से दोस्ती ही मुझे लगे सही!