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Meena Mallavarapu

Romance

4  

Meena Mallavarapu

Romance

तुम्हारा साथ

तुम्हारा साथ

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311



जानती थी ज़िंदगी न होगी

सदा समतल सपाट-

जानती थी कि कांटे और रोड़े ,

आंधी- तूफ़ान

मंझधार और भंवर से होगी

मुलाकात देर सवेर

बचकर शायद ही निकल पाया हो कभी कोई

इनकी चपेट में आएगा कभी-न-कभी हर कोई

पर यह जानना नामुमकिन कि होगा क्या कोई

क्या सच्चा साथी बन आएगा ज़िंदगी में कोई !

जीवन के मंजुल रंग हज़ार-कुछ फीके मगर 

इन रंगों में से उभरा साथी एक,ज़िंदगी मुस्कुराई-

मालूम तो नहीं था क्या है बदा तकदीर में मगर

मिला साथी सच्चा ,नेक- तकदीर ने वफ़ा निभाई

समतल सपाट हो न हो ज़िंदगी की डगर

हमसफ़र मिला ऐसा ,हर मुश्किल उससे शर्माई

आंधी तूफ़ान खुद ब ख़ुद झुकाएं सर

राह का हर कांटा हर रोड़ा आतुर देने राह

ज़िंदगी में हुआ प्यार सम्मान का असर बेइंतिहा-

कीमती मेरा हर आंसू,मेरी हर आह उसके लिए

मिला मुझे ऐसा हम सफ़र अब रही न कोई आस अधूरी

माना पा न सकी पहले ही तेरी थाह 

रहूंगी इस नेमत की कर्ज़दार ज़िंदगी भर मगर ।



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