तुम्हारा साथ
तुम्हारा साथ
जानती थी ज़िंदगी न होगी
सदा समतल सपाट-
जानती थी कि कांटे और रोड़े ,
आंधी- तूफ़ान
मंझधार और भंवर से होगी
मुलाकात देर सवेर
बचकर शायद ही निकल पाया हो कभी कोई
इनकी चपेट में आएगा कभी-न-कभी हर कोई
पर यह जानना नामुमकिन कि होगा क्या कोई
क्या सच्चा साथी बन आएगा ज़िंदगी में कोई !
जीवन के मंजुल रंग हज़ार-कुछ फीके मगर
इन रंगों में से उभरा साथी एक,ज़िंदगी मुस्कुराई-
मालूम तो नहीं था क्या है बदा तकदीर में मगर
मिला साथी सच्चा ,नेक- तकदीर ने वफ़ा निभाई
समतल सपाट हो न हो ज़िंदगी की डगर
हमसफ़र मिला ऐसा ,हर मुश्किल उससे शर्माई
आंधी तूफ़ान खुद ब ख़ुद झुकाएं सर
राह का हर कांटा हर रोड़ा आतुर देने राह
ज़िंदगी में हुआ प्यार सम्मान का असर बेइंतिहा-
कीमती मेरा हर आंसू,मेरी हर आह उसके लिए
मिला मुझे ऐसा हम सफ़र अब रही न कोई आस अधूरी
माना पा न सकी पहले ही तेरी थाह
रहूंगी इस नेमत की कर्ज़दार ज़िंदगी भर मगर ।