हासिल.....
हासिल.....
खुद को हासिल करने में
मैं आखिर नाकाम रही।
हर किसी की खुशी की खातिर
खुद को दर्द देती रही।
कभी सबसे चुपके
रात में खूब रोई।
सबके सामने अपने जख्म छुपा के
सिर्फ अपनों के लिये मुस्कुराई।
पर जब तक जिंदगी के
आखिरी मुकाम तक पहुंची
तो दिल ने कहा....!!!
मुझे जिंदगी भर रुला के
आखिर तूने क्या पाया...???
ख़ुद को हासिल करने में
मैं आखिर नाकाम रही।