रात एक दोस्त...
रात एक दोस्त...
रात एक
जो हर एक शख्स को
खुद से खुद को मिलाती है
चाँद की बारात को
सितारों से सजाती है
किसको किसी के
याद में बड़ा रुलाती है
तो किसी को बेचैन करके
रात भर जगाती है बड़ा सताती
और हम जैसे लेखकों की
रात दर्पण जैसा दोस्त होती है।