मुश्किल तो है
मुश्किल तो है
मुश्किल तो है असंभव नहीं
घर से निकलते ,कुछ दूर चलते
दिखता स्वार्थ का कारोबार
इस द्वारा उस द्वार,,,
व्यापार ,कारोबार, दुकान मकान
जरूरत व समृद्धि की पहचान
छोटा या बड़ा सा
उलझन सी दिखती है
समान एक ,मोल अनेक
यह चक्कर क्या है, भाई
ग्राहक के पास समय कहां, भाई
नैतिकता आदर्श कहां है, भाई
उलझन में है लोकल या ब्रांडेड
बाज़ार अनन्त ,कमाई राई सी
विज्ञापन ,दिमागों में थोपा जा रहा
मैं तो ठीक, बच्चे से खेला जा रहा
पिछड़ा ना कहलाये, डूबे जा रहे।
तर्कहीन विज्ञापन की बातें
रोक कौन लगाए, भाई
हम-आप कहीं खो से गए हैं
दिखता बिकता है, कीमत बताओ
इच्छाओं को हवा देते विज्ञापन
हम तो बच लें, हवा कौन दे रहा
रहना तो आखिर साथ साथ है
यही बाज़ारवाद है??
हम आप खत्म हो जाएंगे
बाज़ार नहीं, कभी नहीं,,
बस अखरता है, अनैतिकता
सादा जीवन -उच्च विचार
बीते दिनों की बात!!
अपनाने से सर्वजन हिताय
मिलबांट खाएं ,क्या हो सकता?
जरूरतमंद को दें, जो जूझ रहे
बाज़ार हम बनाएं, क्यों?
अच्छी बात बहुत है, प्यारे
जाति-पाति, उच्च नीच
का यहां भेद नहीं, प्यारे
समझ नासमझी का भेद, प्यारे