प्रीत का रंग
प्रीत का रंग
प्रीत के रंग में रंगकर दुृख दर्द भुलाई,
नेह का नाता तुमसे जुड़ गया,
नही फिक्र क्या मैं खोई क्या पाई,
रूह तलक है सुकून तुम्हारे संग,
चिंता जग की मैं तज कर आई।
प्रीत के रंग में रंगकर मैं प्रीतम बौराई।
साथी तेरा ख्याल हिय में जब भी आ जाता है,
धड़कन दिल की बढ़ जाती है,
रंग गुलाबी चेहरे का हो जाता है,
नूर बढ़े सदा ही चेहरे का
कोमल कल्पित मन तरंगित हो जाता है।
थिरक उठती है पैरों में अद्भुत,
सात सुरों सा संगीत दिल को बड़ा लुभाता है।
मैं बनी बाँवरी तेरे रंग में रंगकर प्रीतम,
जैसे कान्हा रंग में मीरा हुई जोगन,
राधा सी दीवानी बन नाच उठे मन,
गोपियों सा प्रेम ह्र्दय सदा पाता है।
नाम क्या लूँ मैं,बाँधू कौन सा रिश्ता,
नेह का बंधन मजबूत सबसे हो जाता है।
प्रीत के रंग में रंगकर ओ मेरा मन,
अनंत सुख सदा ही पाता है।
भाव प्रेम,जज्बात दिलों के,
एहसासों का रुख सदा प्रेम के संग होकर
बाँवरी मुझे बनाता है।