साड़ी और नारी।
साड़ी और नारी।
साड़ी पहने राह में खड़ी थी दो नारी,
एक ने पहनी चमकदार रंगीन बनारसी साड़ी।
दूसरी ने पहनी थी दो रंग की सुती साड़ी।
खड़ी थी दोनों सड़क के दो किनारों पर।
उस पर गर्मी पड़ रही थी भारी।
बनारसी साड़ी पहने जा रही थी ,
नारी विवाह के द्वारी,दिख रही थी ,
वो ब्यूटीफुल पर मन में थी, वो व्याकुल।
सुती साड़ी वाली भी लग रही थी प्यारी।
जा रही थी वह भी विवाह ही द्वारी।
बार- बार दोनों रुप पर अपने इतराती।
पतियों से दोनों हर आधे घंटे पर थी फरमाती ।
मैं कैसी लग रही हूं ? तुम मुझे बताओ ना जी ।
पति हो रहे थे बेहाल , सुन - सुन कर एक सवाल ।
बनारसी साड़ी पहने हुए नारी का पति कहता "लग रही आफताब तुम,
चमक रही हो ऐसी तुम, सूरज भी शर्मा जाए और उसके भी पसीने आ जाएं।
सुनकर अपनी प्रशंसा बनारसी साड़ी पहने नारी भूल जाती
अपनी व्याकुलता भारी साड़ी से भीगे तन की ।
सुती साड़ी वाली पत्नी के पति की थी ये लाचारी सुननी पड़ रही थी ।
उसकी बार-बार बनारसी साड़ी की तारीफें कुछ देर सुनने के बाद वह बोला- मेरी हृदय की स्वामिनी ध्यान से देखो, उस भाभी जी को जो दिखाई तो दे रही है बहुत प्यारी, पर इस गर्मी में केवल दिखावे में पहनी है उन्होंने ये बनारसी साड़ी ,पसीने में है लतपथ और लग रही है कितनी व्याकुल । नहीं देख सकता हूं तुम्हें में किसी भी कष्ट में इसलिए पहने को कह दी, तुम्हें ये हल्की रंगीन प्यारी साड़ी जिसमें लग रही हो तुम किसी और से बहुत प्यारी और कहीं की राजकुमारी।
सुती साड़ी वाली नारी सुन प्रशंसा भुल गई भारी साड़ी पहनने की अपनी तीव्र इच्छा।
बनारसी साड़ी पहनी नारी पति पर थोड़ा गुस्साए बोली:- तुमने भी मुझे पहले ऐसी बातें क्यों ना समझाई।
देखो! ना हल्की साड़ी में भी नारी लग रही है कितनी प्यारी, पति फिर बोला तुम्हें कुछ भी पहनने की दी है मैंने आजादी, मैंने कभी कहा नहीं तुम पहनो हल्की या भारी साड़ी, तुम्हें जो पंसद हो तुम वो पहनती हो , फिर भी मुझसे बार-बार पूछती हो और तंग करती हों।
तभी आ गई उनकी सवारी , पहुंचे विवाह में तो देखी न उन्होंने साड़ी पहने हुए एक भी नारी सबने पहने थे लहंगे और गाउन। पूछा उन्होंने एक गाउन पहने नारी को क्यों पहना है तुमने ये पश्चिमी परिधान हम भारतीय नारी है हर उत्सव त्यौहारों विवाह में पहने सिर्फ रंग-बिरंगी साड़ी है।
ये क्या देह प्रदर्शन करने को पहने हैं तुमने लहंगे और गाउन?
महिला ने दोनों को गोर से देखा,
फिर कहा उसने ये फैशन है अभी का! पहने हम साड़ी,सूट या गाउन और लहंगा आपको क्यों हो रही है इतनी पीड़ा। अंग प्रदर्शन करने वाली इसमें कोई बात नहीं । साड़ी में भी तो होता है अंग प्रदर्शन ये तो सोच है अपनी- अपनी इस पर क्यों दे रही है बिन मांगे सजेशन, बोल के वो आगे निकल गई ।
उसको देखने लगी दोनों नारी ,
जो जा रही थी ऐसे की मार ली उसने बाजी।
पर पड़ी नजर दोनों की देख रहे थे जो नजरें टिकाकर ,उन गाउन पहनी नारी को।
देख- देख हर्षित हो रहे थे दोनों के पति।
चली पकड़ने दोनों को साड़ी वाली नारी, पीठ पीछे खड़ी हो सुनने लगी बातें सारी।
एक पति ने कहा लहंगे और गाउन में सभी लग रही है अप्सरा।
दूसरा पति कहता है - काश!ऐसी ही एक हमारे नसीब में भी होती।
सुनकर दोनों नारी क्रोध में बन गई काली,
फिर घर जाकर बजने लगी दोनों की ताली। पत्नियां बोली हमें पहनने को कहते हैं साड़ी और पसंद आती अप्सरा बहार गाउन वाली नारी। निकालो ! अभी पर्स अपना मुझे करनी है खरीदारी।
मैं भी अब पहनूंगी गाउन, लहंगा और सलवार -सूट और फिर देखना तुम बाहर की अप्सरा को जाओगे भूल।
अब हमें तुम ना कहना भारतीय सभ्यता साड़ी में लिपटी तुम सदा ही आदर्श नारी रहना और अगर चाहते हो हमें सिर्फ साड़ी में देखना तो तुम भी अब से धोती कुर्ता ही पहनना।समझ गये दोनों की भारतीय सभ्यता और संस्कृति सिर्फ कपड़ों की पहचान से नहीं व्यवहारो और संस्कारों में है।
नारी को सम्मान कपड़ों से नहीं , अपने संस्कारों से दीजिए।