शब्द
शब्द
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रोज का वार्तालाप
कभी लिखे शब्दों से
कभी बोले लफ्जो से
ये सिलसिला तेरा मेरा
मुद्दत से जारी रहा
क्या मुद्द्त की भी हद होती है?
होती है शायद
तभी तो वो हद खत्म हुई
अब खामोशी का राज है
तेरे मेरे बीच
न शब्द तुम्हारे पास बचे है
न ही मेरे पास बचे है
क्या शब्दों की भी सीमा होती है?
होती है शायद
शब्द जो कभी वक्त के मोहताज नहीं थे
वक्त बेवक्त आते जाते थी
बिना रोक टोक के
वक्त के दायरों से शब्द भी न बच सके
समय का घेरा संकरा होता गया
शब्द घुटते रहे
मरते रहे
अब न शब्द है
न समय का घेरा है
एक बड़ा सा शून्य है
जिसके इस पार भी सन्नाटा है
उस पार भी अंतहीन सन्नाटा है।