Ruby Mandal

Drama Romance Classics

4.5  

Ruby Mandal

Drama Romance Classics

आकाश की मंदाकिनी

आकाश की मंदाकिनी

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आकाश और मंदाकिनी के विवाह को दस वर्ष पूरे हो गए थे,,आज घर पर छोटी सी पार्टी का आयोजन किया गया था,, मंदाकिनी का सारा समय खाना बनाने और मेहमानों की आवभगत करते हुए ही बीत गया। सबने खाना खाया और गिफ्ट और शुभकामनाएं देकर चले गए, सभी ने मंदाकिनी के खाने की बहुत तारीफ की।

मेहमानों के जाने के बाद बच्चों और दोनों दम्पत्ति ने खाना खाया बच्चों के सोने के बाद दोनों छत पर एकसाथ बीती यादों को याद करते हुए बातें करने लगे।

आकाश और मंदाकिनी एक साथ बैठकर जीवन के बीते पिछले कुछ पलों को याद करने लगे ।

मंदाकिनी:- देखते ही देखते दस साल बीत गए, गृहस्थी कितनी आगे निकल गई।

आकाश:- तुम्हे पता है ना कि पहले हम कितना लड़ते थे फिर हम एक दूसरे को समझने लगे और एकसाथ सुख-दुख में एक दूसरे के साथ निभाते हुए कब एक-दूसरे से प्यार करने लगे और एक-दूसरे की दिल की धड़कन बन गए।

तभी पड़ोसी के घर से झगड़ने की जोर जोर से आवाज आने लगी। दोनों कान लगा कर सुनने लगे , झगड़ने की आवाज ने जोर पकड़ा, दोनों ने पड़ोसी धर्म निभाने के लिए वहां जाकर झगड़े को सुलझाने की सोची।

दोनों पहुंचे पड़ोसी मिस्टर एंड मिसेज गुप्ता के घर झगड़े को सुलझाने। 

मंदाकिनी ने कहा :- भाई साहब भाभी के साथ झगड़ा  क्यों कर रहे हैं?

मिस्टर गुप्ता:- भाभी जी ,, मैं कब से समझा रहा हूं कि काम में फंस गया था इसलिए जन्मदिन का गिफ्ट लाना भूल गया ! फिर भी बार-बार बोली जा रही है कि पड़ोसियों से कुछ सीखो ,,देखो आकाश भैया ने कितनी अच्छी पार्टी दी है ! भाभी जी आप थोड़ा समझाइए ना।

आकाश थोड़ा मुस्कुरा कर- हां ,,तो गुप्ता जी भाभी जी सही कह रही है ! मैंने अपनी मंदाकिनी के लिए आज मैरिज एनिवर्सरी पर छोटी सी सही लेकिन पार्टी तो रखी थी! आखिर मैं आदर्श पति हूं !आपको भी भाभी जी के लिए गिफ्ट लाना चाहिए था,, है ना मंदाकिनी?

मिसेज गुप्ता:- मंदाकिनी तुम बहुत भाग्यशाली हो,, जो आकाश जी जैसा पति मिला है! मेरा तो भाग्य ही खराब है जो ऐसा पति मुझे मिला है।

मंदाकिनी:- ऐसा कुछ भी नहीं है ! जो आप भैया को इतना कुछ सुना रही है ! आकाश भी मेरे लिए कहा हमेशा ऐसा करते हैं! और आज कितने ही वर्षों के बाद इन्हें ये पार्टी देने की सोची ,, वह भी इसलिए की इन्हें प्रमोशन मिला तो ऑफिस में सब इनसे पार्टी मांग रहे थे ! तो इन्होंने शादी की वर्षगांठ और प्रमोशन दोनों के लिए एकसाथ पार्टी दे दी। इन्होंने पार्टी मेरे लिए या मुझे खुश करने के लिए नहीं दी थी !जानती हो,, "कल से में पार्टी की तैयारी कर रही थी और सारा दिन खड़े रहकर सभी के लिए खाना बनाया है" और आप बस इन्हीं की प्रशंसा किए जा रही है !जैसे कि मैं तो कुछ करती ही नहीं हूं! इनके लिए और इनके परिवार के लिए मेरी जगह कोई और होती तो होटल से खाना मंगवाने के लिए कहती ! मेरी वजह से इनके कितने ही रूपया बच गए।

मिस्टर गुप्ता झट से बोल:- मैं तो महिने में चार बार बाहर खाना खिलाने ले जाता हूं, और साथ में फिल्म दिखाने शापिंग कराने वो सब भुला देती है और आज सिर्फ जन्मदिन का गिफ्ट क्या भुल गया,, आसमान सर पर उठा लिया। अचानक आकाश में गुणों की खान दिखाने लगी और मुझे एक गैर जिम्मेदार पति ठहरा दिया। 

अगर मंदाकिनी भाभी की तरह धन बचाना जानती तो मुझे भी ज्यादा काम नहीं करना पड़ता।

अब मिसेज गुप्ता से पति के मुंह से किसी ओर औरत की प्रशंसा सुनी नहीं जा रही थी ,,अब वो चुप हो जाती है ,और कहती है:- क्या मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं करती हूं,, तुम्हारे सुख-दुख में क्या कोई और तुम्हारे साथ खड़ी रहती है। और आज भगवान ने हमें इतना दिया है तो एकसाथ बाहर ले जाने के लिए और घूमने के लिए मैं तुम्हारे कारण ही कहती हूं,, तुम इतना काम करते हो पूरे सप्ताह तनाव में रहते हो तो और अगर तुम छुट्टी वाले दिन भी घर में रहते हो तो सिर्फ ऑफिस काम ही करते रहते हो ,,मेरे और बच्चों के साथ तो बहुत कम समय बीताते हो ।बस इसलिए मैं तुम्हारे साथ और बच्चों के साथ बाहर खाना खाने और घूमने फिरने को कहती हूं कि तुम्हारा तनाव थोड़ा तो कम होता है। मैंने भी तुमसे कभी भी शिकायत की क्या!वह तो बस आज मेरा जन्मदिन भी था और

आकाश जी और मंदाकिनी की वैवाहिक वर्षगांठ तो मैं तुम्हारे साथ पार्टी में जाना चाहती थी, मुझे अकेले जाना पड़ा और सब मुझसे पूछ रहे थे तुम्हारे बारे में ! बस,, इसलिए तुमसे थोड़ा गुस्सा थी और फिर तुम मुझे मनाने के लिए जन्मदिन का तोहफा भूल गए तो मैं अपने गुस्से को रोक ना पाई और तुमसे झगड़ने लगी। अच्छा चलो मैं ही सॉरी बोलती हूं मेरी ही गलती थी तुम्हारी आते ही तुम पर बरस पड़े और अपना सारा गुस्सा तुम पर निकाल दिया अब प्रेम तुमसे करती हूं तो गुस्सा भी तुम्हारे साथ ही करूंगी ना किसी और के पास तो नहीं जाऊंगी अपना गुस्सा निकालने तुम भी तो कभी कभी अपना सारा गुस्सा मुझ पर निकाल लेते हो तो बस आज मेरा गुस्सा भी झगड़े के रूप में निकल गया हां मैं मानती हूं कि मेरी गलती है मुझे समझना चाहिए था कि तुम काम में फस गए होगे पर क्या करूं कभी कभी तुम्हारा यह काम मेरी सौतन बन जाता है और बस मेरा गुस्सा अब तुम पर बरस गया आज चलो अब मैंने गलती मान ली। भाभी जी ने तुम्हारे लिए खाना भेजा था तुम हाथ मुंह धो लो मैं खाना निकाल देती हूं।

मिस्टर गुप्ता:-नहीं नहीं सारी गलती तुम्हारी नहीं है तुमने तो मुझसे कहा था कि जल्दी आ जाऊं मैं ही काम के चक्कर में फंसकर समय पर नहीं आ सका तुम्हें भी तो बुरा लगा होगा और फिर तुम्हारा जन्मदिन है यह भी मैं भूल गया थोड़ी गलती तो मेरी ही है चलो मैं भी सॉरी बोलता हूं।

मिस्टर एंड मिसेज गुप्ता का झगड़ा तो प्रेम में बदल जाता है शांत हो जाता है ,, लेकिन

कहीं की आग कहीं ओर लग चुकी रहती है। 

आकाश और मंदाकिनी घर आ जाते हैं आज एक दूसरे से नाराज होकर मुंह फेर कर सोने का नाटक करते हैं। फिर दोनों से रहा नहीं जाता है आकाश बोल उठता है

आकाश:-तुम्हें खाना नहीं बनाना था तो मुझे बोल देती। मैं होटल से ही मंगवा लेता,, तुम्हें इतनी परेशानी उठाने की क्या जरूरत थी । दो लोगों के सामने मुझे इतना कुछ सुना दिया कि मैं तुम्हारी परवाह नहीं करता हूं। रूपया बचाने के कारण ,, मैंने तुम्हें शादी की सालगिरह पर भी पूरे दिन काम में लगाए रखा। तुम अगर यह बात मुझे पहले ही कह देती तो मैं खाना होटल से आर्डर कर देता।

मंदाकिनी:- मैंने ऐसा कब कहा कि मैं मेहमानों के लिए खाना बनाने मैं परेशान हो गई। मुझे मेहमानों को खाना बना कर खिलाना बहुत अच्छा लगा। लेकिन अगर तुमने पार्टी मेरे कारण ही दी थी और मेरी वैवाहिक वर्षगांठ को तुम स्पेशल फील कराना चाहते थे ,, तो तुम्हें स्वयं भी तो यह सोचना चाहिए था कि अगर घर में पार्टी होगी,, आज मैं ही खाना बनाऊंगी तो फिर मेरे लिए यह कुछ ज्यादा ही स्पेशल नहीं हो जाएगा।

तुमने जब से कहा कि कल पार्टी है,, तुमने लोगों को इनवाइट कर दिया है उसके बाद मेरे पास और कोई ऑप्शन था,, अभी हमारी इतनी आमदनी भी नहीं है इतने लोगों का खाना होटल से मंगवाएं। कितना ही खर्च हो जाता, बस इसीलिए मैंने बिना कुछ कहे सारी तैयारियां करना शुरू कर दिया।

सिर्फ तुम्हारे लिए और पार्टी भी बहुत अच्छे से हो गई। सभी को खाना भी बहुत पसंद आया,, पर तुमने जब मिस्टर गुप्ता को यह कहा:- कि तुमने मेरे लिए और मुझे खुश करने के लिए पार्टी दी । तब मुझसे रहा नहीं गया,, क्या तुम मेरी भावनाओं को नहीं समझते। 

सारा दिन जब किचन में खड़े होकर,, मैंने खाना ही बनाया । सबके जूठे बर्तन माजें और सारी साफ सफाई करके घर को सजाया,, तो यह स्पेशल दिन मेरे लिए कुछ ज्यादा ही स्पेशल नहीं बन गया। तुमने मेरा काम दुगना बढ़ा दिया,, सुबह से खड़े - खड़े मेरी कमर दर्द कर रही है। उसके बाद सारा क्रेडिट तुम अकेले ही लिए जा रहे थे कि तूमने मेरे लिए पार्टी दी है तो मुझे थोड़ा गुस्सा आ गया । मैंने तो मिसेज गुप्ता की गलतफहमी को दूर किया! अगर इसके लिए तुम्हें बुरा लगा हो तो सॉरी! वैसे जब मेरा सारा क्रेडिट तुम ले गए और जितने भी मेहमान आए थे सब ने तो यही कहा कि आकाश ने अपनी पत्नी के लिए वैवाहिक वर्षगांठ पर पार्टी दी है और ना जाने कितनी ही पत्नियां पतियों से बस इसलिए लड़ रही होंगी कि तुमने मेरे लिए पार्टी दी है पर यह पार्टी सच बताना मैंने तुम्हारे लिए दी या तुमने मेरे लिए दी थी। तुमने सिर्फ पैसे खर्च किए बाकि का सारा अरेंजमेंट और तैयारियां मैंने ही की! तभी किसी ने यह नहीं कहा की मंदाकिनी ने अपने पति के लिए पूरा 1 दिन दे दिया और किसी ने कहा नहीं कहां इससे मुझे फर्क भी नहीं पड़ता। मगर तुम भी इसी गलतफहमी में जी रहे थे कि तुमने मेरा एक दिन स्पेशल कर दिया और मैं इस गलतफहमी में जी रही थी कि मैंने तुम्हारे लिए अपना एक दिन किचन में खड़े होकर बिता दिया। वह भी हमारा स्पेशल दिन था।

आकाश:- हां, हां मैं ही मूर्ख था कि तुम्हें पूछे बिना ही सबको निमंत्रण दे दिया और इतना खर्चा करके भी सुनने को तो ताने ही मिले।

मंदाकिनी:- हां , मैंने कुछ कह दिया तो ताने लगने लगे और पूरा दिन जो मैंने किया उसके लिए तो दो मीठे बोल ना निकले। उल्टे दूसरे की पत्नी के सामने खुद को अच्छा और उसके पति को ग़लत ठहरा कर इंप्रेस करने में लगे थे,, वो कुछ नहीं?

तुम्हारे लिए सबकुछ करु में और बेचारी और अबला लगती है पड़ोसन,, और इस मिसेज गुप्ता को मेरे पति में ही खुबियां दिखती है।

आकाश:- सही में तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है,, मैं तो ऐसे ही मिस्टर गुप्ता को समझना चाह रहा था ,, तुमने तो देखा था कि मिसेज गुप्ता कितनी दुखी थी,,अब मुझे थोड़ी ना पता था कि वह हर रविवार बाहर घूमने जाते हैं,, मैंने सोचा कि उन्हें हमारी पार्टी देखकर अच्छा लगा इसलिए वह भी पार्टी देना चाहती थी!यही सोचकर मैंने मिस्टर गुप्ता को अपना उदाहरण दिया।पर मुझे क्या पता था कि तुम मुझे ही दो बातें सुना दोगी।

वैसे तुम्हारा कहना भी ग़लत नहीं है तुमने आज बहुत मेहनत की सिर्फ मेरे लिए तुमने बिना कुछ कहे सब अकेले ही संभाल लिया और मेरी प्रतिष्ठा और मान को बढ़ाया। तुम सचमुच मेरे लिए बहुत खास हो,,चलो मैं ही सॉरी बोलता हूं! आगे से ये याद रखुगा कि किसी भी फैसले में तुम्हें ज़रूर शामिल करूं और सलाह लूं।

मंदाकिनी:- आकाश के करीब आकर नहीं गलती मेरी भी है ,,जब सब कुछ कर ही लिया था मैंने तो फिर बेकार में बोलने की क्या जरूरत थी । मैं आपकी अर्धांगिनी हूं,,आप का सम्मान मेरा भी ‌तो सम्मान है और आप हमारे बच्चों के भविष्य के लिए ही तो बचत करते हैं !

आकाश:-अच्छा तो अब समझा ,, मेरे मिसेज गुप्ता के लिए बोलने से तुम्हें जलन होने लगी थी,, और उनके मुझे अच्छा बोलने पर तुम्हारी जलन और बढ़ गई थी,, इसलिए ही तुम भड़क गई।

मंदाकिनी:- मैं क्यों जलुगी भला! मुझे पता है इस आकाश की मंदाकिनी सिर्फ मैं ही हूं! वो तो मिस्टर गुप्ता अपनी पत्नी के मुंह से तुम्हारी प्रशंसा सुनकर और ज्यादा चिढ़ रहे थे। इसलिए तुम्हारी तुलना मैंने इस प्रकार की कि मिसेज गुप्ता का गुस्सा शांत हो जाएं, और दोनों का झगड़ा भी समाप्त हो जाएं।

दोनों एकसाथ हम बेकार ही मियां - बीवी के चक्कर में पड़े।उन दोनों में तो सब ठीक हो गया और हमारे बीच खामखां झगड़ा हो गया।यह कहते हुए दोनों हंसने लगते हैं और आकाश अपनी मंदाकिनी को बाहों में भर लेता है। दोनों का प्रेम और भी गहरा हो जाता है।


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