Ruby Mandal

Others

4  

Ruby Mandal

Others

ऊंचाईयां।

ऊंचाईयां।

15 mins
315


रुकमणी सत्यनारायण मंदिर में पूजा करने के बाद मंदिर की सीढ़ियों पर बैठे भिखारियों को दान दे रही थी । उसके बेटे किशोर का आज जन्मदिन था किशोर एक मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर था। रुक्मणी ने किशोर की परवरिश बहुत कठिनाइयों और कई प्रकार के संघर्षों तथा दोषों, अपमान,को सहते हुए की थी । जब किशोर सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचा तब वही लोग जो उसकी मां रूक्मणी का अपमान किया करते थे । तथा कई प्रकार की गालियां दिया करते थे। आज वह सब रुकमणी की परवरिश को शीश नमन करते हैं । किशोर को सम्मान और इज्जत से देखते हैं। 


रुकमणी मंदिर की सीढ़ियों पर भिखारियों को कपड़े और मिठाई के पैकेट दान कर रही थी कि उसकी नजर एक कंबल ओढ़े ऐसे व्यक्ति पर पड़ी , जिसे देखकर वह अचंभित रह गई। उसने उस व्यक्ति को गौर से देखा और उसकी आंखों से आंसू छलक गए । अपने आंसुओं को पोछते हुए,, रूक्मणी ने अपने पीछे कार्य कर रहे व्यक्ति से कहा- रामू बाकी की मिठाई और कपड़े तुम इन गरीबों में बांट दो। मैं गाड़ी में इंतजार कर रही हूं । उसे उस व्यक्ति का चेहरा बार-बार देखना गवारा नहीं था । वह उस व्यक्ति को कई वर्षों पहले ही भूला चुकी थी। पर उसके दिये हुए धोखे और दर्द को कभी भी भूल ना पाई थी। आज कई वर्षों के बाद उसे देख कर उसके सामने वह सारे अतीत के दृश्य ताजा हो गए थे। उसका वह दर्द अपमान और दुखों से भरा जीवन आज फिर उसके सामने जीवित हो उठा था। गाड़ी में बैठकर रुकमणी ने उसी व्यक्ति को पलट कर देखा,, वह अपनी आंखों पर भरोसा नहीं कर पा रही थी कि यह वही आदमी है जिसने उसे ऐसी परिस्थिति में छोड़ा था,जब किशोर उसके गर्भ में सात महीने का था । 


वह व्यक्ति रुक्मणी का पति ऋषभ था । जिसने ऊंचाइयों पर पहुंचने के लिए और अपनी पहचान बनाने के लिए शादीशुदा होते हुए भी कंपनी की मालकिन जो एक एन,आर,आई थी तथा कभी शादीशुदा और कभी विधवा का जीवन बीताती थी।उस महिला से नाजायज संबंध बनाए । उस कंपनी का ओनर बनने के लिए उसने अपनी पत्नी रूक्मणी को छोड़ दिया ।उसके पेट में पल रहे अपने अंश का भी ख्याल उसे नहीं आया। वह सिर्फ ऊंचाइयों पर पहुंचना चाहता था , रूपया और नाम कमाना चाहता था। उसे विदेशी कंपनी का मालिक बनने की अंधीइच्छा ने सही और गलत समझने तक की शक्ति भी छीन ली थी । 


रुकमणी को आज उस मंदिर की सीढ़ियों पर बैठे ऋषभ को देखकर ताज्जुब भी हो रहा था और उसके मन को एक खुशी और संतोष भी हो रहा था कि ईश्वर ने उसे आज उसकी करनी का दंड दिया । रुकमणी जब भी खुश होती थी ,वह इस मंदिर में आकर ईश्वर को धन्यवाद करती थी। वह जब भी दुखी होती थी,तब भी वह मंदिर में आकर ईश्वर के सामने अपने सारे दुखों को कहा करती थी। रुकमणी का विवाह भी ऋषभ के साथ इसी मंदिर में तय हुआ था ।ऋषभ और रुक्मणी की पहली मुलाकात इसी सत्यनारायण मंदिर में हुई थी।

रुक्मणी एक मध्यमवर्ग परिवार की सीधी सादी लड़की थी। उसे बचपन से ही अध्यापक बनने का शौक था ,, वह एक अच्छी अध्यापक बनना चाहती थी। पर घर के हालात के कारण 12वीं के बाद की पढ़ाई पूरी नहीं कर सकी। उसके पिता ने उसकी शादी ऋषभ से तय कर दी। ऋषभ के पिता राजेंद्र और रुक्मणी के पिता कुशन एक ही कार्यालय में कर्मचारी थे । रुकमणी के दो और छोटे भाई बहन थे। राजेंद्र के दो पुत्र ऋषभ और रितिक थे । ऋषभ ने एम,बी,ए किया था और वह एक प्राइवेट कंपनी में कार्य करता था। रुक्मणी के साथ विवाह तय होने पर ऋषभ की उन्नति हुई और वह उस कंपनी का जनरल मैनेजर बना दिया गया । हालांकि! यह ऋषभ की मेहनत का फल था ,,पर समाज के लोगों ने रुक्मणी को ऋषभ के लिए शुभ बतलाया। ऋषभ के पिता ने राजेंद्र ने रुक्मणी के पिता कुशन से दहेज में दो लाख नगद और घर का सारा सामान तथा लड़की को अपनी इच्छा अनुसार गहने पहनाकर भेजने के लिए कहा । साथ में बहुत सरलता से कह दिया कि यह सब तो आपकी बेटी के लिए ही है,, नई गृहस्थी शुरू करने में खर्च तो होता ही है । हम इसमें से कुछ भी नहीं लेंगे ,, ऋषभ के पिता एक लालची इंसान थे । तथा ऋषभ का छोटा भाई रितिक एक आवारा और आलसी लड़का था,, पढ़ने में भी बिल्कुल अच्छा नहीं था,, पूरा दिन दोस्तों के साथ घूमता और मटरगश्ती करता रहता। ऋषभ अपने की सभी गलतियां माफ करता और ऋषभ की मां नैना तो अपने छोटे बेटे में कोई खोट ही नहीं मानती थी । उसका तो मानना था कि अभी उसकी उम्र ही क्या है, ग्रेजुएशन के लास्ट ईयर में ही तो है ।जबकि वह दसवीं में तीन बार फेल होने के बाद भी ना जाने कहां से कौन-सा जुगाड़ लगाकर । उसका एडमिशन कॉलेज में करवाया गया था। ग्रेजुएशन के दो साल उसने जैसे तैसे कंप्लीट किये थे और तीसरे वर्ष में व ग्रेजुएशन करने के साथ दारु, सिगरेट, और ना जाने किस प्रकार की नशीली पदार्थों का सेवन भी किया करता था । ऋषभ अपने कार्य के लिए अधिकतर ऑफिस में ही रहा करता था और घर से तो सिर्फ खाने और कपड़े बदलने का ही नाता रह गया था। अच्छे दहेज के लालच में ऋषभ ने भी रुक्मणी से विवाह करने के लिए सहमति जताई ।


रुकमणी देखने में बहुत सुंदर और सांवली थी ऐसा कोई कारण नहीं था , जिसके कारण रुकमणी को पसंद ना किया जा सके । दोनों को पहली बार मिलने के लिए उसी सत्यनारायण मंदिर में बुलाया गया था। ऋषभ को रुकमणी पहली नजर में ही पसंद आ गई। वह रुक्मणी के साथ अपने जीवन की नई शुरुआत करने के लिए बहुत ही उत्साहित था । रुकमणी ने भी ऋषभ के साथ वैवाहिक जीवन के कई सपनों को सजा लिया था । विवाह होने के बाद ऋषभ को प्रमोशन के साथ-साथ कंपनी ने मुंबई में स्थानांतरण कर दिया। शादी के बाद ऋषभ और रुक्मणी मुंबई में सेटल हो गए। दोनों की गृहस्थी सुख से बस रही थी ,,एक- दूसरे से वह प्रेम भी बहुत किया करते थे। दो साल तक दोनों ने परिवार आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया था। दो साल बाद जब रुकमणी गर्भवती हुई ।उसी समय विदेश की मल्टीनेशनल कंपनी ने ऋषभ की कंपनी को खरीद लिया। पर ऋषभ की योग्यता को देख कर उसी कंपनी में ऋषभ को उच्च पद पर नियुक्त किया गया ।ऋषभ और रुक्मणी बहुत खुश थे ,जब किशोर रुकमणी की गर्भ में एक महीने का था ,,तो विदेश से उसी कंपनी की ओनर रिटा किसी कार्य से भारत आई। रिटा एक विदेशी मॉडन ख्यालों वाली लड़की थी ,, उसके लिए किसी एक रिश्ते में बंध कर रहना या किसी एक रिश्ते को उम्र भर निभाना एक बोरिंग काम था । वह अपने जीवन को अलग ढंग से जीना चाहती थी ,उसके लिए रिश्तो को बदलते रहना और किसी भी मनचाहे पुरुष को प्रेम में फंसाकर नाजायज संबंध बनाना कोई बड़ी बात नहीं थी । पुरुषों को वह उसके शारीरिक बनावट और सुंदरता के तौर पर उनसे संबंध बनाया करती थी। रिटा हमेशा से अमीर नहीं थी, उसने अमीर बनने के लिए और सफलता,ऐशो आराम की जिंदगी तथा ऊंचाई पर पहुंचने के लिए बहुत सारे गलत रास्तों को अपनाया था । उसने अमीर बनने के लिए अपने से उम्र में तीन गुने बड़े आदमी से विवाह किया था।उस व्यक्ति की दौलत को हथियाने के बाद उसे बर्बाद करने के बाद या तो वह उस व्यक्ति को डिवोर्स दे दिया करती थी और नहीं तो किसी भी तरह स्वयं को विधवा बना ही लिया करती थी। इसी तरह उसने कई शादियां की थी। उसकी काया पर वैसे भी हर उम्र के पुरुष मोहित हो जाया करते थे ,और उससे शादी करने का प्रस्ताव दिया करते थे । वह उन्हीं लोगों का प्रस्ताव स्वीकार करती थी,, जो मल्टीनैशनल कंपनियों के मालिक हुआ करते थे। पर उसे आज तक कोई हम उम्र नहीं मिला था ,,आज तक उसने जितने भी पुरुषों के साथ विवाह संबंध किए थे ।सभी उससे उम्र में काफी बड़े थे । जो उसकी कुछ जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ थे । इसका समाधान उसने यह निकाल रखा था कि वह जरूरत मंद और लालची जवान पुरूषों के सामने धन को उसी प्रकार से प्रयोग किया करती थी जिस प्रकार से कुत्ते को रोटी डालकर उसे पालतू बनाया जाता है । 


जब वह भारत आई तो उसे ऋषभ में रुचि थी, वह ऋषभ के शारीरिक बनावट और उसकी सुंदरता पर मोहित हो चुकी थी। उसने ऋषभ को विदेशी मल्टीनेशनल कंपनी का मालिक बनाने का लालच दिया। उसने उससे विवाह करने के लिए प्रस्ताव रखा । कई विवाह करने के बाद रिटा के पास धन का भंडार था। पर उसके पास वह सच्चेप्रेम की दौलत नहीं थी,, जिससे वह संतोष कर सकें । उसने ऋषभ और रुक्मणी की खुशहाल गृहस्ती देखी और रुक्मणी का सादा सलोना व्यक्तित्व देखा। उसे रूक्मणी से ईष्या होने लगी। उसे लगने लगा कि एक मध्यम वर्ग की सीधी-सादी लड़की को जब सच्चे प्रेम की खुशी मिल सकती है तो मैंने अपना सारा जीवन धन को संचय करने में लगा दिया है फिर मुझे क्यों नहीं संतोष और सुख का आभास होता है। उसने सोचा शायद इस खुशहाल जीवन का राज ऋषभ के कारण ही है , उसने ऋषभ को अपनी रूप जाल में इस प्रकार फसाया और ऋषभ के लालच ने उसे इतना अंधा बना दिया था कि वह सही और गलत का फर्क करना ही भूल बैठा ।


एक दिन ऋषभ ने रुक्मणी को रिटा के कारण छोड़ दिया। जब ऋषभ ने रूक्मणी को डिवोर्स दीया, रुकमणी सात महीने की प्रेग्नेंट थी। रुक्मणी ऋषभ को तलाक़ नहीं देना चाह रही थी। इसी समस्या को हल करने के लिए ऋषभ ने रुक्मणी के चरित्र पर उंगली उठाई और उसके गर्भ में पल रहे बच्चे का पिता अपने छोटे भाई को बताया । रुक्मणी और रितिक का नाजायज संबंध बताकर उसने यह साबित किया कि रुकमणी एक बदचलन औरत है ,, जिसके साथ वह और नहीं रह सकता । 


इस प्रकार उसने रुक्मणी को सिर्फ तलाक ही नहीं दिया। उसे ऋषभ ने सारे समाज के सामने चरित्रहीन भी साबित किया। 


रुकमणी जब अपने पिता के घर पहुंची तो पिता ने रुक्मणी की गलतियों को देखते हुए ,,जो उसने कभी की ही नहीं थी । उसे अपने घर में पनाह देने से मना कर दिया और सास ससुर ने भी उसका साथ नहीं दिया । रुक्मणी बेसहारा रास्तों पर सात महीने के गर्भ के साथ भटकती हुई,, इसी मंदिर के द्वार पर भिख मांगने के लिए विवश हो कर मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर अपने भाग्य पर रो रही थी और ईश्वर से न्याय की गुहार लगा रही थी। 


एक दिन वहां एक महिला जिसका नाम सुभद्रा था, वह गरीब बच्चों और वयस्कों के लिए एन ,जी, ओ, तथा कई आश्रम चलाया करती थी। सुभद्रा ने रुक्मणी को महिला आश्रम में पनाह दी। वहीं पर किशोर का जन्म हुआ। रुकमणी 12वीं पास थी इसीलिए उसे आश्रम में बच्चों को पढ़ाने की नौकरी भी मिल गई। उसने छोटे बच्चों की देखभाल करने और आश्रम में पढ़ाने का कार्य पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी के साथ किया। रुकमणी ने सिलाई बुनाई का कार्य भी सीख लिया था । 


वह इस प्रकार अनेक प्रतिभाओं को सीख चुकी थी,, जिससे वह आत्मनिर्भर बनकर सम्मान का जीवन जी सकी थी। उसने अपने सामने आई कठिनाइयों से हार नहीं मानी।कई लोग उस शहर में उसे देखकर ताना देते तथा गंदी बातें करते थे । और किशोर को भी गंदी दृष्टि से देखकर उसका भी अपमान किया करते थे। 


रूक्मणी ने बहुत कम उम्र में अपना स्वाभिमान और आत्मविश्वास खो दिया था। उसका विश्वास टूट चुका था ,उसके दिल के अनेकों टुकड़े हो चुके थे और वह किसी पर भी पूरी तरह विश्वास नहीं कर पाती थी। उस आश्रम ने रुकमणी को नई राह दिखाई। रुक्मणी जब भी अपने माता- पिता के पास जाती ,, वहां के समाज के लोग उसे गलत बातें सुनाते । 


जब सुभद्रा ने दूसरे शहर में अपना नया एन,जी,ओ , प्रारंभ किया तो रुकमणी को एन,जी,ओ, का मुख्य अधिकारी बनाकर दूसरे शहर में भेज दिया। वहां रुक्मणी ने बच्चों को पढ़ाया, बेसहारा लोगों की मदद की और उन्हें अपने ऊपर आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया और स्वयं भी आत्मनिर्भर बनी। किशोर को भी उसने बहुत अच्छी परवरिश दी। किशोर हमेशा कक्षा में प्रथम आता था । 


किशोर अक्सर अपने पिता के बारे में पूछा करता था, जब किशोर कॉलेज जाने लगा और उसने अपने पिता के बारे में जानना चाहा तो रुक्मणी ने उसे अपने ऊपर किस प्रकार के अत्याचार हुए और ऋषभ ने उसके साथ किस प्रकार से धोखा किया तथा उसे चरित्रहीन साबित करके उसका समाज के सामने अपमान किया ।किशोर को अपना पुत्र कहने से मना कर दिया। किशोर के अंदर अपने पिता के लिए क्रोध , नफ़रत और बदले की भावना ने जन्म ले लिया था ।अब वह अपनी मां को सम्मान दिलाना चाहता था। जो उसने बहुत पहले ही खोया था। उसने अपनी मेहनत और लगन से एम,बी,ए बहुत अच्छे अंको से पास किया और एक प्राइवेट कंपनी में मेहनत और लगन से नौकरी प्राप्त की और धीरे-धीरे सफलताओं को प्राप्त करता ही चला गया।  


रुक्मणी के इतने वर्षों के त्याग और तपस्या ने लोगों के नजर में उसे वैसे भी उठा दिया था। कुछ सुबुद्धि वाले लोग समझ गए थे कि रुक्मणी के साथ अन्याय हुआ है, वह उस प्रकार की महिला नहीं है जिस प्रकार का ऋषभ ने उसे बताया था। बल्कि ऋषभ तो रुकमणी को किसी भी प्रकार छोड़ना चाहता था इसीलिए उसने उसे रितिक के साथ नाजायज संबंध की बात कही थी। जब किशोर ने रितिक को सच बोलने के लिए कहा- उसे चार जोरदार थप्पड़ जड़ दिए । 


तब उन तीनों ने राजेंद्र, नैना, रितिक ने यह कबूल किया कि उसने अपने बेटे ऋषभ की उन्नति के लिए तथा रिटा से उसका विवाह पुनः कराने के लिए रुकमणी पर झूठे आरोप लगाए थे और उसे चरित्रहीन साबित किया था। किशोरी ऋषभ का ही पुत्र है। 


तब रुकमणी के माता-पिता ने रुकमणी से माफी मांगी । रुक्मणी ने अपने किसी भी सगे संबंधी को माफ करने से इंकार कर दिया । उसने कहा जब मुझे सबसे ज्यादा जरूरत अपने माता-पिता की थी तो आपने भी मुझसे मुंह मोड़ लिया ।एक बार भी जानने की कोशिश नहीं की कि सामने वाले ने मुझ पर झूठे आरोप लगाए हैं ।


रुक्मणी और किशोर वहां से अपने निर्दोष होने का प्रमाण देकर नए राह की ओर निकल चुके थे । किशोर अब मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर आसींन था। किशोर के प्रत्येक जन्मदिन पर रुकमणी मंदिर में जा कर पूजा अर्चना किया करती थी। 


पर उस दिन से पहले और डिवोर्स होने के बाद उसने कभी भी ऋषभ को नहीं देखा था । कई लोगों से बस सुना था कि वह रिटा के साथ विवाह करके विदेश चला गया है और कुछ दिनों में उस कंपनी का ओनर बन जाएगा।


फिर अचानक ऐसा क्या हुआ?अब इतने वर्षों के बाद जो ऋषभ को मंदिर की सीढ़ियों पर भीख मांगनी पड़ रही थी। रुकमणी के मन में अनेकों प्रश्न दौड़ रहे थे ,पर वह किशोर को सारी बातें बताएं बिना,, ऋषभ से बात भी नहीं करना चाहती थी । 


रुकमणी ने घर पर आकर किशोर को सारी घटना बताई । किशोर और एक पल भी नहीं रह सका ,,वह उस व्यक्ति को देखना चाहता था जिसने उसकी मां के साथ धोखा किया,, उसे सारे समाज के सामने अपमानित किया और उसे एक ऐसी अवस्था में छोड़कर चला गया। जब सबसे ज्यादा उसे अपने पति की जरूरत थी । वह उस आदमी को मार डालना चाहता था ,पर जब वह मंदिर की सीढ़ियों पर पहुंचा और रुक्मणी ने उसे दिखाया कि यह तुम्हारा पिता ऋषभ है तो किशोर आश्चर्यचकित होकर रह गया। ऋषभ को यह भी आभास नहीं थी कि उसके सामने खड़ी वह औरत रुक्मणी है ।


जब रुक्मणी ने ऋषभ का नाम लेकर उसे पुकारा तो ऋषभ ने अपनी आंखें खोली और रुक्मणी को देखकर वह उसके पैरों में गिर गया और माफी मांगने लगा । 


रूक्मणी ने क्रोध से कहा "जो तुमने किया, वह तुम्हारा अपराध है और अपराध तुम्हें लगता है कि माफ करने योग्य है ? तुमने मेरी पवित्रता को गाली दी और मुझे चरित्रहीन सिद्ध किया,, जबकि वह सारे आरोप तुम पर सही बैठते हैं । 


तुमने एक ऐसी औरत से विवाह करने के लिए मुझे छोड़ा था ,,जो ना जाने कितने विवाह कर चुकी थी और कितनों को डिवोर्स दे चुकी थी। मैं आज यहां यही दिखाने आई थी अपने बेटे को कि गलत करने वालों को ईश्वर भी कभी क्षमा नहीं करते।


आखिर ऐसा क्या हुआ ,, जो तुम आज भीख मांगने के लिए बाध्य हो चुके हो ।  


ऋषभ ने बताया कि वह रिटा से विवाह करने के बाद विदेश चला गया ।पर विदेश जाकर कुछ सालों तक रिटा उसके साथ बहुत प्रेम से रहा करती थी । फिर अचानक से एक दिन उसने किसी और पुरुष को अपने प्रेम में फंसा लिया और मुझसे कहा कि मैं तुम्हें डिवोर्स देती हूं।

मुझे अब तुम पसंद नहीं हो,मेरा मन अब तुम्हें देखने का भी नहीं करता। मैंने उसे कहा कि मैं उससे बहुत प्यार करता हूं और वह मुझे इस तरह किसी और पुरुष के लिए अपमानित करके नहीं छोड़ सकती क्योंकि उसके लिए मैंने अपना स्वर्ग जैसे खुशहाल गृहस्थी में आग लगाई और अपनी पत्नी को अपमानित किया।तब उसने मुझे कहा तुम जब रुक्मणी जैसी चरित्रवान स्त्री के नहीं हो सके तो तुम मेरे क्या होगे। आज तुमने कुछ धन और पहचान बनाने के लिए मुझसे शादी कर ली रुकमणी को जिस तरह तुमने छोड़ा कल हो सकता है तुम्हें मुझसे भी धनवान कोई महिला मिल जाए,, जो मुझसे भी ज्यादा अमीर हो तो तुम मुझे भी छोड़ दो,, तुमने जो खेल एक बार रूक्मणी के साथ खेला है वह ना जाने मैं कितनो के साथ खेल चुकी है जिन पुरुषों ने मुझे चुप चाप तलाक दे दिया वह बर्बाद होकर भी जिंदा है और जो मेरी बात नहीं मानते वो जिंदा नहीं रहते ।मैंने तो तुम्हें सिर्फ पाना चाहा था, मैं किसी से प्रेम नहीं कर सकती। मैंने तुम्हें पा लिया बस मेरा शोक पूरा हो गया । अब मुझे तुम्हारी आवश्यकता नहीं अब मुझे तुम मे कोई रुचि नहीं है ।,तुम वापस इंडिया जा सकते हो। उसका यह धोखा मैं बर्दाश्त नहीं कर सका और मैंने उसकी हत्या कर दी। मुझे वहां के जेल से इंडिया के जेल में भेज दिया गया, और 60 वर्ष पूर्ण होने पर मेरे अच्छे व्यवहार को देखकर मुझे छोड़ दिया गया है।


 मैं अपना मुंह किसी को नहीं दिखाना चाहता,, मैं उस लायक नहीं कि मैं किसी से माफी मांगू इसलिए मैं इस मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर भगवान के सामने पश्चाताप कर रहा हूं । रुकमणी ने ईश्वर को देखकर धन्यवाद किया और कहा:- तुम इसी लायक हो तुमने जो मेरे साथ किया,, ईश्वर ने वही तुम्हारे साथ किया । आज किशोर और रुक्मणी को न्याय मिलने की खुशी थी । दोनों ने ईश्वर को नमन किया और वहां से चले जाते हैं ।


रुकमणी किशोर से कहती हैं ऊंचाई और सफलता को पाने के लिए कभी भी किसी का सम्मान को ठेस नहीं पहुंचाना चाहिए । वह सफलता कुछ दिनों के लिए सुख सुविधाओं को दे सकती है पर ऊंचाई और रुतबा पाकर भी मनुष्य अकेला ही रह जाता है।


अगले दिन एन ,जी,ओ, के आश्रम से कुछ कर्मचारी ऋषभ को आश्रम ले जाने के लिए आते हैं।पर ऋषभ की मृत्यु रात में ही हो जाती है आश्रम के लोग ऋषभ के मृत शरीर को उसके माता-पिता को दे देते हैं।



Rate this content
Log in