Ruby Mandal

Tragedy Crime Inspirational

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Ruby Mandal

Tragedy Crime Inspirational

साहसी रोहणी

साहसी रोहणी

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रमा और नीरज की दो बेटियां हैं रोहणी और पुनिता, दोनों ही बहुत हंसमुख और चंचल स्वभाव की है। लेकिन रमा कुछ दिनों से देख रही है कि उसकी बड़ी बेटी बड़ी चुपचाप रहती हैं और स्कूल जाते वक्त रोहणी हमेशा खुश हुआ करती थी। रोहणी स्कूल जाने और दोस्तों के साथ खेलने और मज़े करने के लिए उत्साहित रहा करती थी । लेकिन पिछले सप्ताह से रोहणी स्कूल जाने के नाम से उदास हो जाया करती है ,जैसे कि उसे कोई परेशानी सता रही हैं । कुछ दिन पहले भी वह ऐसे ही चुपचाप रहा करती थी ।

पर फिर कुछ दिनों बाद वह स्वयं पहले जैसे ही हंसा और बोला करती थी,अभी रोहणी की उम्र केवल बारह वर्ष थी, लेकिन पिछले सप्ताह से वह फिर उदास और कुछ परेशान सी रह रही हैं, रमा, रोहणी को इस प्रकार देखकर दुखी होती है और सोचती है:-( जो लड़की एक दिन भी स्कूल से छुट्टी नहीं लिया करती थी ,वह पिछले कुछ दिनों से स्कूल जाने से कतराती रहती हैं)

पहले तो रमा को लगा कि स्कूल से किसी कारणवश छुट्टी ले रही हैं, पर जब रोहणी प्रत्येक दूसरे दिन ऐसा करने लगी, तो रमा को चिंता होने लगी। 

उसने एक दिन रोहणी और पुनिता को पूछा कि क्या तुम्हें कोई परेशानी हो रही है, तुम्हारे साथ किसी ने किसी भी प्रकार का कोई ग़लत व्यवहार तो नहीं किया है , स्कूल में ? रोहणी और पुनिता ने नहीं में उत्तर दिया। 

फिर रमा को याद आया कि कुछ दिन पहले रोहणी ने उसे बस कंडक्टर के बारे में बताया था कि वह कुछ अजीब ढंग से रोहणी को घूरते रहता है तब रमा ने अपने पति नीरज से कहा था कि रोहणी बस कंडक्टर के बारे में कुछ ग़लत बात बोल रही थी, तब नीरज ने कह दिया था कि - रोहणी अभी बच्ची है, उसे कहा समझ है गलत और सही की , मैं तो रोज जब दोनों को बस में चढ़ाने जाता हूं ,तब मुझे तो वह कंडक्टर ऐसा आदमी नहीं लगता है , और तब भी रोहणी कह रही है तो उसे समझाओं कि उसे बस कंडक्टर को देखने की ज़रूरत नहीं है ,वह पढ़ने जाती है स्कूल तो स्कूल जाए और फिर चुपचाप घर चले आए। आज कल के बच्चों का दिमाग कुछ भी सोचता है,।

रमा को नीरज की बात कुछ ठीक नहीं लगी, क्योंकि लड़कियों को बुरे और अच्छे स्पर्श और नजरों की परख कुछ ज्यादा होती है, और फिर आज तक कितने ही कंडक्टरो ने बस में कार्य किया था, पर ऐसी प्रतिक्रिया तो कभी भी रोहणी ने किसी के प्रति नहीं दिखाई थी।जब रोहणी से रमा ने पूछा कि वह उसके बस कंडक्टर से बात करने जाएंगी। तब रोहणी ने बताया था- कि वह अंकल एक महीने से बस में नहीं आ रहे हैं, और रोहणी पहले जैसे ही खुश और निश्चित दिखाई दे रही थीं, लेकिन पिछले कुछ दिनों से वह पहले जैसे ही उदास रहा करती है।

रमा ने फिर से एक दिन स्नेह के साथ उनके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए, रोहणी और पुनिता को अपने पास बैठाकर कहा- कि तुम्हें किसी भी प्रकार की कोई सी भी बात अगर मुझसे करनी हो तो बेधड़क कहना क्योंकि बच्चों की हर समस्या का समाधान मां के पास में होता है 

रोहणी ने फिर अपनी मां को देखा और कहा -"मैं अगर आपसे कुछ कहूंगी तो आप मेरा विश्वास करेगी"? रमा ने रोहणी को प्यार करते हुए उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- हां क्यों नहीं करूंगी,जरूर करूंगी।

रोहणी ने कहा- मां ! मैंने आपको बताया था ना कि एक बस कंडक्टर अंकल है जो मुझे घूरते रहते हैं ।

रमा - हां ! मगर वो तो तुम्हारे बस में अब नहीं जाता है ना?

रोहणी- कुछ दिनों पहले वह बस में नहीं जातें थे। पर फिर पिछले सप्ताह से "वह बस मैं जा रहें हैं," और मुझे ही नहीं बस के सभी बच्चों के साथ बदतमीजी से और अपशब्दों में बातें करते हैं और सभी को ही बहुत अजीब नज़रों से देखते हैं।

रमा- किस- किस बच्चे के साथ उसने ग़लत व्यवहार किया है ,और क्या वह सिर्फ तुझको ही देखता रहता है , या फिर किसी और को भी वह ऐसे ही देखता है?

रोहणी - मां, वह सभी बच्चों के साथ ग़लत व्यवहार करते है ,लड़कों के बस में चढ़ते समय उनके साथ तो और भी अभद्र भाषा और हरकतें करते है , लड़के और लड़कियां सभी परेशान हैं ,

कुछ दिन पहले तो उसनेे सीखा के उतरते समय उसके कमर पर हाथ लगाया और फिर कोमल की बाहों को छूकर उसे बस में चढ़ने के लिए कहा और जब बच्चे कहते हैं कि आप हमें छूते क्यों हो? मुंह से बोला करो , तो गन्दी - गन्दी गालियां देते है और कहते है कि भूल से लग गया।

रमा- तो हो भी सकता है कि भूल से लग गया होगा हाथ, तुम सब ज्यादा सोच रही हो । रमा ने अपना संदेह मिटाने के लिए बच्चों को ऐसे ही बहलाने की कोशिश की।

तभी पुनिता जो रोहणी से दो वर्ष छोटी है बोल उठती है

पुनिता- नहीं मां!वह अंकल जान-बूझकर करते हैं, भूल क्या रोज - रोज होती है , दीदी सच बोल रही है।

रमा-तो उन बच्चों ने अपने मम्मी - पापा से नहीं कहां क्या ?

रोहणी - सीखा ने और कोमल ने भी कहा था लेकिन दोनों के मम्मी- पापा ने विश्वास ही नहीं किया और उन्हीं दोनों को डांटा और कहा कि किसी और से कुछ भी न कहें, नहीं तो लोग उनके बारे में क्या सोचेंगे और जब लड़कों ने अपने घर में अंकल के बारे में बताया तो उनके पापा-मम्मी ने भी उन्हें चुपचाप रहने के लिए कहा और सबके पापा-मम्मी एक ही बात कहते हैं कि बस में और भी बच्चे तो जाते हैं और फिर एक और कंडक्टर और बस चालक भी तो रहते हैं ऐसा कुछ होगा तो वो नहीं देखेंगे क्या?

रमा - ये सब बातें तुम दोनों ने पहले ही मुझे क्यों नहीं बताई ? आज अगर मैं तुम दोनो से नहीं पूछती तो मुझे तो पता ही नहीं चलता कि तुम सब बच्चे बस में कितना असुरक्षित महसूस कर रहे हो?

रोहणी- मां पहले जब मैंने बताया था , कंडक्टर अंकल के बारे में "तो पापा नाराज़ हो गये थे",और आप ने भी विश्वास नहीं किया था।

रमा-"गलती हो गई बेटा"!(अपनी भूल पर पछताते हुए) ,पर अब मैं जो कहती हूं- तुम वैसा ही करना, अगर वह तुम्हें घूरे तो तुम भी उससे मत डरना , तुम भी उसे घूरते हुए जूता खोल कर दिखाना और अगर तुम्हारे शरीर को छुकर तुम्हें बस से उतरने या चढ़ने के लिए कहें तो फिर तुम ज़रूर विरोध करना और वो भी पूरे जोर से तुम्हें जो ठीक लगे तुम वो कहना, "मन में जितना गुस्सा है, उसे बाहर निकाल देना, डरने की कोई जरूरत नहीं है " । जो गलत करते हैं न उनके मन में भी एक डर होता है और फिर जाकर अपने क्लास टीचर या वहां पर किसी भी टीचर को सारी बात बताना और अगर मुझे स्कूल में बुलाया गया, तब तो मैं बाकी सब कुछ देख लूंगी और अगर छुट्टी के समय बस में चढ़ते या उतरते समय कुछ होता है तो तुम मुझसे बस स्टैंड पर पर ही कहना , मैं उसे अच्छी तरह समझा दूंगी और बच्चों को इस प्रकार का व्यवहार सहने की कोई आवश्यकता नहीं है, अब तो मात्र तुम्हारे एक कम्पलेन पर उसे हम कड़ी सजा भी दिला सकते हैं। और फिर हम तो हैं ही अपने बच्चों की परेशानी में साथ देने के लिए तुम दोनो को डरने की कोई जरूरत नहीं है और मान लो ! आज किसी ने विरोध नहीं किया तो कल वह और भी निडर होकर बच्चों के साथ कुछ भी ग़लत कर सकता है।

(रोहणी में एक नया साहस दिखाई देने लगता है ।)

पुनिता कहती है- मैं तो मम्मी ,दीदी को पहले ही कह रही थी कि मम्मी को बता देते हैं दीदी ,मम्मी अंकल को ठीक कर देगी,पर दीदी तो डर ही बहुत रही थी। तभी रोहणी मां को देखकर कहती है - थैंक्यू मां! मेरी परेशानी समझने के लिए मुझे तो लग रहा था कि आप भी सीखा और कोमल की मम्मी के जैसे मुझे डांटने लगेगी। नहीं ! "बेटा तेरी आंखों में दिखता है" कि तुम सब बच्चे कितने मानसिक तनाव से गुजर रहे हो, रमा उसे शांत कराते हुए कहती है।

वैसे बच्चों में साहस का संचार करके भी रमा अंदर से थोड़ी परेशान थी और डरी हुई थी, लेकिन बच्चों में जागरूकता लाने और उनके आत्मविश्वास को वह ऐसे टूटने नहीं दे सकती है, और आगे भी हो सकता है बच्चों को ऐसे व्यवहार का सामना करना पड़ा तो, उनमें उस समस्या से लडने के लिए प्रेरणा और जागरूकता का होना बहुत जरूरी है, और इस तरह अपने लिए आवाज उठाने से उन्हें आत्मनिर्भरता और हौसला भी मिलेगा।

अगले दिन रमा दोनों बच्चों को बस में चढ़ाने जाती है, और उस कंडक्टर को दिखाने के लिए रोहणी और पुनिता से कहती है , और रमा उसे जैसे ही कुछ कहने के लिए आगे बढ़ती है ।रोहणी रमा को रोकते हुए कहती है- कि मम्मी आज " मैं स्वयं ही उसका विरोध करूंगी"। 

आप अभी कुछ मत कहना , रमा हां में उत्तर देते हुए कहती हैं, मुझे सिर्फ दिखा देना की वो है कौन?

स्कूल बस तभी आ जाती है और वह कंडक्टर भी बस में रहता है।

बच्चों के माता-पिता के सामने तो वह किसी भी तरह का अभद्र व्यवहार नहीं करता है पर कॉलोनी से बाहर बस के निकलते ही वह बच्चों को घूरना शुरू कर देता है , पर इस बार रोहणी डरती नहीं है, वह उसे अपनी आंखों को बड़ी करते हुए घूरती है।

स्कूल पहुंचने पर बस के अंदर सीढ़ियों के पास वह कंडक्टर एक कालीन बिछाए रखता है और बच्चों के उतरते समय वह बच्चों को छू - छू कर साइड से उतरने को कहता हैं। किसी बच्चे के कंधों को, किसी के कमर से नीचे, किसी के हाथों को तो किसी के बाहों को छूकर साइड से उतरने को कहते हुए वह रोहणी को घूरता रहता है । 

जब रोहणी का क्रम आता है तो उसके कंधे पर हाथ रखकर  गन्दी भावना से हाथ फेरते हुए उतरने के लिए कहता है ।

रोहणी उसके हाथ को झटकते हुए दूर करते हुए कहती हैं -"तुमने मुझे छुआ क्यों" ? कंडक्टर सफाई देते हुए कहता है , मैं तो बस 'मैट' के ऊपर से चलने के लिए कंधे को पकड़ कर साइड कर रहा था।

रोहणी - तुम्हें ! क्या लगता है?(गुस्से से) 

हम बच्चों को कुछ समझ नहीं आता है क्या, कि तुम हर दिन बच्चों को छुने के बहाने बनाते रहते हो । हम कक्षा वन से इस बस में स्कूल जा रहे हैं , और हमें बस में चढना - उतरना बहुत अच्छी तरह से आता है और अगर" ये मैट इतनी जरूरी है" तो इसे बस के सीढ़ियों के पास क्यों बिछा रखा है , इसे यहां से हटाकर रखना चाहिए, मुझे आपकी नियत ठीक नहीं लगती है ?आप रोज मुझे और हम सभी बस के बच्चों को क्यों घूरते रहते हैं ? आज जैसी हरकत आपने फिर से की न तो याद रखियेगा, "आपका हाथ तोड दूंगी"।

रोहणी के बस में से उतरने के बाद उसकी ज़ोर की आवाज़ सुनकर सभी बच्चे रोहणी के पीछे आकर खड़े हो जाते हैंऔर कुछ अध्यापक भी वहां आ जाते हैं तथा तभी वहां से पुलिस की टेरेनिग ले रहे, कुछ सिपाही भी आकर बच्चों के साथ खड़े हो जाते हैं।

तभी सबके सामने कंडक्टर अपने को बचाने के लिए कहने लगता है - कि बच्ची को गलतफेमी हो गई है, मेरा हाथ गलती से लग गया था।

रोहणी- मुझे कोई गलतफेमी नहीं हुई है, आप ही गलत हो अंकल हम बच्चों को जान बूझकर गलत तरीके से छुते हो और बस में भी घूरते रहते हो और गन्दे- गन्दे इशारे भी करते हो और हमें परेशान करते हो।

तभी वहां बस चालक और दूसरा कंडक्टर भी आ जाते हैं ,वह बस की बदनामी के चलते रोहणी को ही समझने का प्रयास करते हैं ,मगर आज रोहणी सौ बच्चों का विरोध और गुस्सा लिए खड़ी रहती हैं

आज वह ये दिखाना और बतलाना चाहती है कि बच्चे कमजोर और असहाय नहीं होते हैं और अगर माता-पिता और समाज के लोगों उनकी बातों का विश्वास करे और उनकी बातों को हल्के में ना लें और किसी भी बात को या इस प्रकार की बातों को इज्जत और सम्मान से न जोड़ कर उनकी सुरक्षा से जोडे और उनका साथ दे तो बच्चे इस तरह के व्यवहार को पहले बार में ही रोकने के लिए साहसी कदम उठाने में द हिचकिचाहट न होगी ।

रोहणी- मुझे समझाने से अच्छा होगा कि आप इन अंकल को समझा दीजिए कि आगे से मुझे घूरना बंद कर दें नहीं तो "आंखें फोड़ दूंगी और अगर फिर मुझे और मेरी छोटी बहन को हाथ लगाया ना तो थप्पड़ भी लगा दूंगी "और मम्मी -पापा को कहकर पुलिस कम्पलेन करने से भी पीछे नहीं हटूंगी।

कंडक्टर - तेरे मम्मी-पापा ने बड़ों से बात करने का तरीका नहीं सिखाया है और तेरे अकेले के कहने से क्या होगा और दूसरे बच्चे तो कोई शिकायत नहीं कर रहे?

कंडक्टर का इतना कहना था कि सारे बच्चे कहने लगे कि रोहणी सच कह रही है और ये कंडक्टर एक गन्दा और अभद्रतापूर्ण व्यवहार करने वाला व्यक्ति हैं ,तभी कुछ और छात्र जो पंद्रह-सोलह साल के लड़के हैं सामने आते हैं और कहने लगते हैं कि -रोहणी हमसे छोटी जरूर है ,लेकिन आज जो उसने साहस दिखाया है वह प्रशंसनीय है और रोहणी ने जो भी कहा - "वह सब एकदम सच है", "हमारे साथ भी यह अंकल बहुत गन्दी गालियां देकर बात करते है और हमें गलत तरीके से छुते भी है, और विरोध करने पर हमेशा ही गलती से हाथ लग गया कहते है। 

रोहणी- मेरे पापा- मम्मी ने मुझे बड़ों से बात करने का तरीका अच्छे से सिखाया है लेकिन आप जैसे व्यक्तियों से किस तरह से बात करनी चाहिए यह भी सिखाया है।आगे से "हम बच्चों को हाथ लगाया ना तो हाथ नहीं रहेगा आपका" , तभी बड़े बच्चे तो कंडक्टर को मारने के लिए बढते हैं कि कंडक्टर सबसे माफ़ी मांगने लगता है । तभी वहां खड़े अध्यापक छात्रों को अहिंसा करने से रोक देते हैं, और जो पुलिस के सिपाही रहते हैं वह उस कंडक्टर को मारते हैं और बच्चों के पास भी भटकने से मना करते हैं तथा उसे उसी वक्त पुलिस के हवाले करने लगते हैं ।

तब तक रोहणी और सभी बच्चे स्कूल में प्रवेश करते हैं, रोहणी के साहसी कदम उठाने के लिए सभी बस के बच्चे उसका 'धन्यवाद' करते हैं । तथा प्रधानाचार्य तथा अध्यापक सभी रोहणी के साहस की प्रशंसा करते हैं और शाबाशी देते हैं। 

रोहणी के अंदर एक आत्म विश्वास , साहस और संतुष्टि का संचार होता है।

वह कंडक्टर अपनी करनी पर पछताता है ,और आगे से किसी बच्चे के साथ वह गलत न करने की कसम खाता है ,और पुलिस में न देने के लिए विनती करता है । उसे उस बस की नौकरी से निकाल दिया जाता है,और बस के सारे बच्चे फिर निश्चित होकर बस में स्कूल जाते और घर आते हैं।

रोहणी घर आकर बड़ी उत्साह और जोश के साथ रमा को सारी बात बताती है, और रोहणी रमा को थैक्यू! कहते हुए कहती हैं - कि आपने मेरा साथ दिया और मुझमें आत्म विश्वास जगाया तब ही मां आज मैं ये कर पाई ,और किस प्रकार सभी ने बच्चों और अध्यापकों ने और पुलिस में नये भर्ती हुए सिपाहियों ने उसका साथ दिया और उसके साहस की प्रशंसा की सारी बातें रमा को विस्तार पूर्वक बतातीं है,

शाम के समय जब नीरज ऑफिस से घर लौट कर आता है तो रमा उसे सारी बात विस्तार से बताती है और कहती हैं ,अगर आप पहले ही बच्चों की बातों पर ध्यान देते तो वह इतने दिनों से जो मानसिक रूप से तनाव सह रहे थे, वो उन्हें नही सहना पड़ता।

पर आप भी मुझे ही और बच्चों को ही समझाने लगे तथा उस कंडक्टर को ही सही आदमी कहने लगे थे और बच्चों की बातों को दिमाग का भ्रम बताकर चुप रहने के लिए कहा और इसलिए मैंने इस बार आपको नहीं बताया ,वरना आप फिर हमें ही चुप रहने के लिए कहते बाकी के माता-पिता की तरह । पर मुझे बच्चों की बातों में सच्चाई लगी कोई मन घड़ंत कहानी नहीं और फिर कब तक हम बच्चों को गलत सहने के लिए कहते रहेंगे । स्कूल तो कोई रास्ता नहीं है जो बदला जा सके और दो तीन दिन में समाप्त हो जाएगा । 

स्कूल का जीवन तो वह सुनहरे पल होते हैं जिसे हर व्यक्ति बचपन के या जीवन के सुनहरे पल कहकर अपने स्मृतियों में याद करता है और माता-पिता का और समाज का यह महत्वपूर्ण कर्तव्य है कि हम इन बच्चों के बचपन को सुरक्षित वातावरण प्रदान करे। 

नीरज अपने दोनों बच्चों को पास बुलाता है और गले से लगा कर शाबाशी देता है।

अगले दिन सभी बच्चों के माता-पिता बस कंडक्टर को सबक सिखाने के लिए सुबह-सुबह पहुंचते हैं और बस चालक और दूसरे कंडक्टर को बहुत सुनाते और डांटते हैं कि उन्होंने बच्चों के साथ हो रहे व्यवहार के लिए कंडक्टर को रोका क्यों नहीं,

बस कंडक्टर और चालक कहते हैं कि उसे काम से निकाल दिया गया है और अब वह बच्चों का पूरा ध्यान रखेंगे और सभी अभिभावक रोहणी के साहस भरे कदम की सराहना करते हैं और धन्यवाद देते हैं।


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