Ankur Singh

Children Stories Inspirational

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Ankur Singh

Children Stories Inspirational

मंजू का संघर्ष

मंजू का संघर्ष

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उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव मे एक लड़की के सपने बहुत ऊँचे थे। उसकी रुचि पढ़ाई से ज्यादा खेलो में थी .. वो खेलकूद में बहुत अच्छी थी। टी.वी. पर आ रहे विभिन्न प्रकार के खेलों को देखा करती और और वैसा ही करने का प्रयास करती पर घर वालो को ये सब पसंद नही था। आज भी गाँव में पुराने ज़माने कि सोच चलती है कि लड़कियों का जीवन सिर्फ घर का चूल्हा-चौका करने के लिए है और इसके इतर अगर वो कोई काम करती है तो इसका मतलब एक दिन वो हाथ से निकल जायेगी। मंजू कि भी किस्मत कुछ ऐसी ही थी उसके सपने तो बड़े पर किस्मत और सहयोग ये दोनों ही छोटे थे।


मंजू के पिता रिक्शा चलाते है और माँ दुसरो के घरों में काम ताकि घर चल सके और मंजू की माँ चाहती थी कि घर के कामो में मंजू हाथ बंटाए ताकि उन्हें थोड़ी सी राहत मिल सके पर मंजू अपने धुन में ही मस्त रहती कभी लड़को के साथ क्रिकेट खेलने निकल जाती तो कभी कबड्डी , कभी खो - खो तो कभी कुछ और ... उसे खेलना बहुत पसंद था पर घर वालो को मंजू की ये सब हरकतें पसंद नही थी । घर के काम मे हाथ बटा सके इसलिए कक्षा 8 के बाद उसे पढ़ने नही दिया गया पर .. मंजू किसी की नही सुनती तो नही सुनती। उनका विचार था कि अगर जायदा पढ़ लेगी तो भी हाथ से निकल जायेगी और अगर ज्यादा खेल लेगी तो भी हाथ से निकल जायेगी। मंजू के परिवार और समाज उसकी जिंदगी को अपने हिसाब से चलाना चाह रहे थे।


मंजू प्रतिदिन कोई न कोई खेल जरूर खेलती और उस खेल में लड़ाई जरूर कर लेती जिससे शाम को घर पर मंजू को अच्छी खासी डाँट पड़ जाती इन सबमे सिर्फ एक ही चीज अच्छी होती कि उसके पापा उसे कभी कुछ नही बोलते ... एक दिन शाम को मंजू के पिता जी जल्दी घर आ गए और उन्होंने मंजू को कबड्डी खेलते देखा .. वे खेल में ऐसा रम गए कि घर जाना भूल गए। थोड़ी देर बाद मंजू जब घर के लिए निकली तो देखा पिता जी उसका इन्तेजार कर रहे है।

पिताजी ने सिर्फ एक बात कही तू अपना मनपसंद खेल चुन लें कल से ट्रेनिंग शुरू।


मंजू को इस बात पर यकीन ही नही हुआ .. घर वाले भी विरोध कर रहे थे .. पर मंजू जानती थी कि एक बार अगर पिताजी ने कोई फैसला कर लिया तो कोई भी उनका फैसला बदल नही सकता।


रात भर मंजू को नींद नही आई .. वो अपना पसंद का खेल चुन ही नही पा रही थी क्योंकि उसे सभी खेल पसंद थे और हर खेल में कोई न कोई उसका पसंदीदा खिलाड़ी भी था जैसे क्रिकेट में झूलन गोस्वामी, बॉक्सिंग में मैरी कॉम , टेनिस में - सानिया मिर्जा , बैडमिंटन में - साइना नेहवाल इत्यादि ये लिस्ट लंबी थी पर वो अपना मनपसंद खेल नही चुन पा रही थी।


सुबह होते होते उसने फैसला कर लिया की वो एक दम अलग खेल चुनेगी यानी - कराटे

मंजू ने सुबह होते ही पिता जी को ये बात बताई पहले तो पिताजी को यकीन ही नही हुआ क्योंकि उसे लगता था कि मंजू क्रिकेट या कबड्डी जैसा कोई खेल चुनेगी पर उसने एकदम अनोखा खेल चुना ।

थोड़े देर तक सोचने समझने के बाद फैसला हो गया मंजू जो खेल सीखना चाहती है वो सिख सकती है।


मंजू के गांव से शहर की दूरी 50 किमी. किराया 40 रुपये रोज का एक बार का जाना और एक बार वापस आना मतलब 80 रुपये ।गांव में ऑटोरिक्शा चला कर भी इतनी कमाई नही हो पाती जितनी जरूर थी फिर ये सब कैसे होगा यही चिंता सताये जा रही थी ।


मंजू को लेकर उसके पिता जी शहर के एक अच्छे कराटे क्लब ले गए और उसका एडमिशन करवा दिया । शुरू - शुरू में मंजू को बड़ी दिक्कतें हुई .. धक्के खा कर वो शहर पहुचती, फिर प्रैक्टिस करती .. नई होने के वजह से प्रैक्टिस में कई बार चोट लग जाती तो गुरु जी से डांट खाती .. उसी प्रकार धक्के खा कर वापस आती तो इतना थक जाती इन 3 घंटे के आने - जाने के सफर में कई बार बिना कुछ खाये - पिये ही सो जाती। मंजू जब सो रही होती पिता जी तब कभी उसके सिर की मालिश कर दिया करते तो कभी पैर की। एक दिन सुबह मंजू उठी तो उसके पिता का एक फरमान था कि इतना दूर यात्रा करने से वो थक जाती है अपनी ट्रेनिंग भी पूरी नही कर पाती है इस वजह से वो चाहते है कि मंजू शहर में ही रह कर तैयारी करे।


मंजू को आश्चर्य हुआ क्योंकि वो जानती कि उसके परिवार वाले इस फैसले को नहीं मानेगे साथ ही मंजू ये भी जानती थी कि घर के हालात ऐसे नही है कि वो शहर में रह सके पर पिताजी के बात को वो काट नही पायी हालांकि मन में एक बार विचार आया कि वो ये सब छोड़ दे।


मंजू को पिताजी लेकर शहर आ गए जहाँ कोचिंग से थोड़े ही दूरी पर एक कमरा किराये पर ले लिया और खुद शहर में ऑटोरिक्शा चलाने लगे .. कई - कई बार वे ओवरटाइम भी करते .. और देर होने पर ऑटोरिक्शा में ही सो जाते .. लगातार मेहनत करने से वे बीमार पड़ने लगे पर मंजू के ट्रेनिंग में कोई रुकावट नही आने दी। मंजू को पता भी नहीं चलने दिया कि वे बीमार चल रहे है। समय - समय पर घर पर भी पैसे भजते - और मंजू की जरूरतें भी पूरी करते ।


पर मंजू अपने पिता को इतना थका और परेशान नही देख सकती थी इसलिए बिना पिता जी को बताए दोपहर में छोटे बच्चों को कोचिंग पढ़ाने लगी और सुबह - शाम ट्रेनिंग। ये करना बहुत ही मुश्किल था पर अब मंजू ने जिद ठान ही ली थी।


धीरे - धीरे साल भर में मंजू ने अच्छी खासी ट्रेनिंग पूरी कर ली और फिर गुरु जी के सहायता से विभिन्न प्रकार के क्षेत्रीय मुकाबलो में हिस्सा लेने लगी । शुरू में नाकामी हाथ लगी पर पिता जी और गुरु जी के सहयोग से एक - एक कर सभी क्षेत्रीय मुकाबलो में जीत दर्ज करती गयी। ये सब होने में ही उसे 2 साल का समय लग गया।


फिर वो दिन भी आया जब उसे नेशनल टीम के चुना गया ..राज - स्तरीय तौर पर मुकाबले करते-करते अपने गुरु और पिता का गुरूर बनती चल गई .. जो नाते रिश्तेदार और पडोसी कल तक उसके ऊपर ताने मरते थे, उसके खेल सीखने पर उंगली उठाते थे आज वे सभी मंजू की तारीफ कर रहे थे। आखिरकार मंजू ने अपनी कड़ी मेहनत से अपनी एक अलग पहचान बनायीं थी।


आज कल मंजू इंटरनेशनल मुकाबले की तैयारी कर रही है और मुझे पूरी उम्मीद है वो अपने गुरु , पिता , फैमिली और देश का नाम जरूर रोशन करेगी ।


समाप्त ।




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