बसंतोत्सव
बसंतोत्सव
आई बसंत बहार झूमे धरती झूमे गगन ,
धरती ने देखो किया पीत रंग श्रृंगार।
शुभता और नवाचार की देखो चहुंओर बहे बंसती बयार ।
कारी कोयलिया अमवा की डरिया पे कूहू कूहू कूके ,
पुरवाई लाये संदेशा ऋतुराज बसंत की आमद का ।
आयी पावन घड़ी वीणा वादिनि के
आराधना की
माई की उत्पत्ति का पावन यह त्यौहार
श्रद्धा भक्ति से पूजे माई को सारा संसार।
अंतर कर दो ज्ञान उजाला ,अंतस तम,
तिमिर सब हर लो मां शारदे भवानी।
हो जाए जो तेरी कृपा की बरसात
गूंगा भी बोले मूर्ख भी बने ज्ञानी।
कर जोड़ खड़े तेरे द्वार मां दे दो
ज्ञान का उजाला कर दो कल्याण।
बयार लाये फागुन की आहट हौले हौले ।
बसंत पंचमी का श्री पंचमी और
ऋषि पंचमी भी एक शुभ दूजा नाम ।
आज ही के दिन जन्मे थे सरस्वती पुत्र साहित्य के पुरोधा कवि महा प्राण निराला महान ।
श्री राम भुला के दुःख अपना आज ही के दिन खाएं थे शबरी के प्रेम में भीगे बेर,
किया उनका सम्मान ऐसे अपने राम ।
आज ही के दिन शब्दभेदी बाण से चौहान ने किया था वध आतातायी गौरी का।
राजा भोज मनाने जन्मदिन अपना करावे भोज दिन चालीस।
पावस ऋतु में आओ मिलकर उड़ाये कनकइया,
फर्क रहे ना कोई हर मन बना लरकइया।
बांटे एक दुजे का सुख दुःख खूब लड़ाये पेंच ।
ऐ मां भारती तुझे नमन हर दिन तेरी पावन रज पर हम मनाए कोई ना कोई
अनूठा मनभावन त्यौहार।
फूल जैसे सबके मन खिल जाए
एक दूजे संग घुल मिल जाए।
आयी बसंत बहार।