पावन मन बंधन
पावन मन बंधन
मेरे जीवन के चंद्रमा तुम
सजी है हर सांस बस तेरे ही नाम से,
देखती हूं जब भी तुझे उठती है
सीने में प्रेम की तपन इस तपन में है
एक अनोखा अपनापन इस बंधन में है
जीवन भर का सुख दुःख का साथ।
इस साथ का यह उत्सव सुहाना,
नाम हैं अनेक।
जब भी आता है मनमंदिर को महका जाता है।
जीवन की बगिया को प्रेम के इत्र से सरोबार कर देता है।
करती हूं सोलह सिंगार लेकर तेरा ही नाम।
तू जो आया है जिंदगी में,
लाया है अनेकों इंद्रधनुषी रंगों की बहार।
तुझसे ही मेरे सारे सपन सलोने होते हैं साकार।
तेरे देखने से मेरे प्रेम को मिलती है नहीं
ताकत मुझे है बस तुम ही से प्यार।
इस प्यार का है मुझे नशा, इस खुमारी में डूब कर मैं करती हूं
ये एलान सरेआम की है मुझे ए मेरे चांद तुझसे ही है प्यार।
चांद साक्षी मेरी इस पावन प्रीत का,
तभी तो देता है आकर हर दिन आशीष।
और भर देता है जीवन में शीतल चांदनी की छाया।
कहने को उपवास है पर मेरे लिए अवसर जताने का बताने का,
की मेरे सारे सुख तुम्हीं से, मेरे जीवन साथी
तुम्ही मेरे सारे सुखों के कुबेर के खजाने हो।
तुमको ही पाकर हुयी अमीर मैं।
है आज यह अवसर विशेष तुझको बत लाने का की,
मेरे जीवनआकाश का एकमात्र सूरज और चंदा बस तुम ही हो,
प्रीत की तपन भी तुम,
प्रीत की शीतलता भी तुम।
सूरज और चंदा मेरे सलोने सजन मेरे जिंदगी के तुम।
मेरे हृदय के आसमान पर जिसका है
कब्जा वो बस एक तुम ही तो हो,
उस पावन प्रीत के लिए आज कल
और हर पल बन जाए एक पावन त्यौहार
जिसकी हर एक बेला तुझको ही समर्पित,
जो मेरे सुखों के लिए दिन रात एक करता है,
जीवन का हर दिन बस सिर्फ और सिर्फ
मेरे सजन बस तेरे मेरे अमर प्रेम के लिए।
तुम जब प्यार से कहते हो मेरा नाम सुना करती हूं
कसम से सीने में क्या तुम भी सुनते हो ?
देती हूं अर्घ चंद्रमा को जब जब है वह मेरे हृदय का उद्गगार,
प्रीत जो मिलती है तुझसे उसके लिए
दिल की हर धड़कन से निकलता है प्यार।
प्रीत से भरा एक एहसास की तुम हो तो मैं हूं।
मेरे चांद तो बस तुम ही हो, उसी की चंचल छाया
और प्रीत की तपन मे जीवन बीते।
आखरी सांस तक यही मांगने का,
है यह या कोई भी अवसर एक पवित्र त्योहार
जो लाता है हमको और तुमको और पास।
पहला प्यार नहीं ये है केवल,
जन्मों का है पवित्र निश्छल प्रेम का बंधन।