प्रीत है बंधनों से परे
प्रीत है बंधनों से परे
प्रीत है बंधनों से परे
रहे साथ इहलोक उहलोक।
है ये कड़वा सच कोई एक ही जाता है पहले संग छोड़,
जो रह जाए हैं
उसे प्रीत बहुत ही तड़पाए है।
पर साथी जो मन बंधन से बंध गए,
वो कब अकेले हैं प्रीत उनकी निराली ।
पवित्र निराली प्रीत को नमन,
नयन सजल है मेरे।
मीत ऐसा ही चाहे हर कोई,
प्रीत सच्ची जो करें ।
आना जाना सच है इस जग का ,
दोनो में से कोई एक पहले जाएगा ,
जो रह जाएगा विरह वेदना के संग,
यादें संगिनी बन रह जाए है ।
सच है नियति के आगे किसकी चली ।
यादों के दामन थाम बस जिए जाए है।
विकल हृदय ,सजल नयन हर क्षण ,
हर कण ,चंहुओर तुझको ही खोजें है ,
ना पाके बस एक बार फिर टूटकर बिखर जाता है तेरा बावरा सजन,
फिर तेरी छवि आती है नयनों में ,
संबंल देकर मुझे ओझल वो ,
हर बार हो जाती है !
रेत के जैसे तुम नजरों से,
ओझल हो जाती हो।
फिर आओगी थामने मुझे ,
ये एक ख्याल बरबस मेरे ,
होंठों पर मीठी सी मुस्कान
खिला जाता है ।
दोस्तों तुम्हारे साथ जो है,
उसकी कदर करो।
जाने के बाद कितने भी जतन कर लो लौट के फिर नहीं आते लोग!
मिला है जितना साथ उसको निभाओ हृदय से।
प्रीत करो तो सच्ची करो
प्रीत की महिमा निराली कहे महिमा यही ।