मेरी बोरियत बनी जी का जंजाल
मेरी बोरियत बनी जी का जंजाल
मुझे एक बहुत ही बुरी आदत है, जब भी में बोर होता हूँ तो नज़दीक़ के मॉल में घूमने चला जाता हूँ और वहां की दुकानों में एक कस्टमर के तौर पर उनके प्रोडक्ट के बारे में पूछताछ करते रहता हूँ, इसके दो फायदे है कोई दुकान में कस्टमर नहीं है तो में कस्टमर बनकर उनके दुकान की शोभा बढ़ता और चुकी में इंडिया में रहता हूँ, तो मानसिकता यह है कि अगर दुकान में एक कस्टमर भी हो, तो उसे देख बाकी लोग भी उस दुकान में इंटरेस्ट दिखाने लगते है, थोड़ी ही देर में दुकान में भीड़ जमा हो जाती और मेरा मन बोरियत से उबर आता तो चुप चाप वहां से निकल आता।
कई बार यह आदत मेरे जी का जंजाल बन जाता है पर क्या करें अपनी बोरियत मिटाने के लिये में हज़ारों तो नहीं लुटा सकता, अमबानी कहीं से भी मेरा ससुर नहीं लगता।
एक दिन की बात है, ऐसे ही एक दुकान में घुस गया और एक लैपटॉप की इन्क्वारी करने लगा, सामने वाला एजेंट तो पूरी तैयारी में था कि वो लैपटॉप मुझे ख़रीदने पर मजबूर कर दे, मैंने भी चुंगल से बाहर निकलने का भरसक प्रयास किया पर सब विफल रहा।
कोई रास्ता नज़र नहीं आया तो पर्स निकाली और क्रेडिट कार्ड दे दिया, उसने स्वाइप किया, एक बार नहीं , कई बार, हर स्वाइप पर मेरा मुँह देखता, मैंने कहा, भाई इतना स्वाइप करके मेरा एकाउंट खाली करेगा ?
वह थोड़ा चिढ़ कर बोला, बैंक मना कर रहा है, ट्रांसक्शन को।
मैंने झट से कार्ड हाथ में लिया ऐसे कैसे हो सकता है, बैंक वाले मेरे साथ ऐसे कैसे कर सकते है, बोल कर मोबाइल निकाला और एक नंबर डायल किया और सामने वाले इंसान को उस सेल्समेन के सामने ही खरी खोटी सुनने लगा, बात करते करते बाहर गया।
मेरी जान में जान आयी पर यह क्या मैं फ़ोन पर जिसे बात कर रहा था वो मुझे गाली देने लगा, फिर याद आया कि यह नंबर तो उस लपटॉप वाले दुकान के दीवार पर एक LIC एजेंट ने इश्तहार दे रखा था, वही नंबर डायल कर दिया बाहर निकलने के लिए।
उसकी गाली में बहुत ही वजन था, लग रहा था कि कई दिनों से उससे कोई इन्शुरन्स किया नहीं है।
मैंने फ़ोन काट दिया और उसके बाद एक हफ्ते तक उसका फ़ोन आता रहा पर मेरी हिम्मत उसकी गाली खाने की नहीं थी।