sukesh mishra

Tragedy Fantasy

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sukesh mishra

Tragedy Fantasy

सैंडल

सैंडल

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'अम्मा, आज फिर बदजात शाजिया मेरी सैंडल पहनकर चली गई, मैं छोडूंगी नहीं इस कमीनी को'

शलवार का नाड़ा बांधते हुए जमीला गला फाड़कर चिल्लाई।

 तबस्सुम को आज बुखार आ गया था, जिसकी वजह से गली के नलके पे उसे ही पानी भरने जाना पड़ा था, कितना कह-सुनकर और अम्मी को मना-रिझाकर उसने अब्बू को इस बात के लिए राजी किया था कि उसका दाखिला कॉलेज में करवा दिया जाय। लेकिन रोज-रोज कभी सार्वजनिक नलके से पानी भरने की किचकिच तो कभी छोटे भाई अबरार के लिए सरकारी अस्पताल की लाइन लगने जैसे कामों में वह उलझकर रह गयी थी। तिसपर से मरी शाजिया उसकी हरेक चीज़ों पे दीदें गड़ाई बैठी रहती थी, निगोड़ी बहन न हुई सौतन हो गयी।

"क्या हुआ? क्यों चिल्ला रही है इतना? अम्मी संडास में थी, बेचारी जैसे-तैसे निबटकर दौड़ती भागती हुई आयी।

"होना क्या है? तुम्हारी लाड़ली आज फिर मेरी सैंडल पहनकर कहीं मुँह काला करने गयी है,छिनाल कहीं की"

"छिः, तुझे शर्म नहीं आती अपनी बहन के लिए ऐसी बात कहते हुए? सैंडल ही ले गयी है न, तेरे शौहर के साथ भाग तो नहीं गयी है न"

"जिस दिन मेरा शौहर होगा,वो ये भी करेगी.......देख लेना।

"क्या है? क्यों शोर मचा के रखे हो तुम लोग? दोजख बना कर रख दिया है इस घर को" अल्लाहताला रहम कर मुझपर, ये मेरे किन रकीबों को मेरे औलादों की शक्लें दे दी? इस्माइल मियां जो घर की दहलीज़ पे खड़े सब सुन रहे थे.......फट पड़े।

जमीला तबतक तैयार हो चुकी थी, अब्बू के बिगड़े रूप को देखकर वह थोड़ा सकपका गयी, डर ये था कि अब्बू कहीं फिर कॉलेज से नाम कटवाने का पुराना राग लेकर बैठ न जायँ, इसी से जल्दबाजी में हवाई चप्पल पहन कर ही वह कॉलेज के लिए निकल गयी।

"हिज़ाब तो लगा के जा निगोड़ी".......।पीछे से अम्मी चिल्लाती रह गयी।

इस्माइल मियां केअब्बू मरहूम रईस मियां बस नाम के ही रईस थे। अपने इंतकाल के वक़्त इस्माइल मिया को उनसे विरसे में फकत गाड़ियों की मरम्मत का इल्म ही मिला, बाकी सब 'भूल-चूक लेनी-देनी माफ़' वाला हिसाब किताब कर उन्होंने आँखें मूँद ली। इस्माइल मियाँ को अल्लाहताला के फज़ल से कुल पांच औलादें नसीब हुईं ....सबसे बड़ी जमीला,फिर क्रम से शाजिया,तबस्सुम, गज़ाला और सबसे छोटा एक बरस का अबरार। इतनी बड़ी गृहस्थी की गाड़ी खींचने के लिए बेचारे गली के नुक्कड़ पे अफरोज के गराज में दोपहिया गाड़ियों की मरम्मत का काम करते थे लेकिन एक तो उज़रत बेहद कम थी, ऊपर से कब मिलेगा यह भी अफरोज के मिज़ाज पर मुनहसर था। ऐसे में घर में पहनने-ओढ़ने की तंगी हमेशा बनी ही रहती थी और ईद के दिन भी कभी-कभी फाकाकशी जैसे हालात बन जाते थे। उस पर से कोढ़ में खाज यह कि अबरार हमेशा बीमार ही रहता था, न जाने उसकी जच्चगी से ही उसे कौन सी सिफ़त लग गयी थी कि हर तीसरे दिन उसे लेकर सरकारी अस्पताल के चक्कर काटने पड़ते थे, गोया इस्माइल मियां की गरीबी खानदानी थी और फिलवक्त उसमें सुधार की गुंजायस भी न के बराबर थी।

ज़मीला उस घर में एक तरह से टाट में मखमल की पैबंद थी। बड़ी थी इसीलिए अम्मी-अब्बू की चहेती भी थी। उसकी हरेक फरमाइशें पूरी करने की कोशिश की जाती.......फिर चाहे वो उसका कॉलेज में दाखिला हो या फिर उसके लिए मन के मुताबिक पहनने-ओढ़ने की चीज़, लेकिन यह बात शाजिया को चुभती थी क्यूंकि उम्र में वह ज़मीला से उन्नीस थी लेकिन शक्लो -सूरत में इक्कीस। उसके मुताबिक सबसे बेहतरीन चीज़ों पे पहला हक़ उसका होना चाहिए था इसीलिए वो ज़मीला की चीज़ों को अपना निशाना बनाती थी....... सैंडल भी उनमें से एक थी।आज उसने सोच रखा था कि मौका मिलते ही सैंडल पहनकर उसे फुर्र हो जाना है, रोज तबस्सुम ही पानी भरने जाती थी आज उसकी तबीयत ख़राब होने की वजह से ज़मीला को जाना पड़ा और मौका पाकर शाज़िया ने सैंडल हथिया लिया।

लोग उसके सैंडल को देखें इसके लिए वो गलियों में अपनी शलवार के पाँयचों को उठाकर मटरगश्ती करती रही, जब थक गयी तब वापिस घर की ओर लौट ही रही थी कि नुक्कड़ पे उसका सामना ज़मीला से हो गया।

"बद्ज़ात, कमीनी.......रुक तू ज़रा" कहते हुए ज़मीला बाघिन की तरह शाज़िया पे झपटी। अचानक और अप्रत्याशित हमले की वजह से जब तक शाज़िया सम्हलती तबतक ज़मीला उसकी छाती पे सवार थी। फिर भी अपने बचाव में उसने नाखूनों से ज़मीला का मुँह नोच लिया।दोनों नए-नए पैंतरों से एक दूसरे को पछाड़ने में लग गयीं।

पास के ही दुकान पे सौदा ले रही गज़ाला ने जब ये देखा तो गिरती-पड़ती दौड़ती हुई घर पहुंची और अब्बू को अटक-अटक कर सारा मुआमला कह सुनाया......इस्माइल मियां बदहवास नुक्कड़ की और भागे, पीछे-पीछे गज़ाला और उसकी अम्मी भी भागी। वहां पहुँच कर देखा कि तमाशाइयों की भीड़ लगी हुई थी। दोनों बच्चियाँ धूल से अंटी लहूलुहान पड़ी एक दूसरे को घूर रही थीं। दोनों की हालत देखकर इस्माइल मियां बुत से बने खड़े रह गए, अम्मी दोनों को गलियां देते हुए बुक्का फाड़कर रोने लगी और गज़ाला? वो बिखरे पड़े सैंडल को अपने नन्हे पांवों में नफासत से डालने की कोशिश में लगी थी। 



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