राष्ट्रधर्म सर्वोपरि
राष्ट्रधर्म सर्वोपरि
राष्ट्र धर्म ही हमारे लिये तो सर्वोपरि है।
राष्ट्र आराधना सबसे बड़ी ईश भक्ति है।।
राष्ट्र धर्म से हमारी तो सांसे चल रही है।
जो न हुआ, अपने इस वतन का सगा।।
वो न नर, न नारी, न ही तीसरी कड़ी है।
ऐसे प्राणी तो गीदड़ों की करते बंदगी है।।
जो लोग नमक खाते है, हिंद वतन का।
गुण गाते है, यहां पर पड़ोसी मुल्क का।।
उनकी यहां अब कोई जगह न बची है।
राष्ट्र धर्म ही हमारे लिये तो सर्वोपरि है।।
ऐसे गद्दारों की मां को चढ़ा तू बलि है।
जो वतन का नही, वो किसी का नही है।।
यह मुल्क रब, खुदा जैसी मेरी बंदगी है।
हम ठहरे नर शिरोमणि प्रताप के वंशज।।
मुल्क के स्वाभिमान से ही सांसे जुड़ी है।
राष्ट्र धर्म ही हमारे लिये तो सर्वोपरि है।।
राष्ट्र के लिये मर सकते है, मिट सकते है।
पर तिरंगे को न आने देते जरा क्षति है।।
राष्ट्र के लिये ही समर्पित यह जिंदगी है।
हिन्द वतन से पहली-आखरी दिल्लगी है।।
फौजी बनना साखी की अंतिम स्वप्नगी है।
राष्ट्र धर्म ही हमारे लिये तो सर्वोपरि है।।
राष्ट्र आराधना सबसे बड़ी ईश भक्ति है।
राष्ट्र बिन न होता आसमाँ, न होती जमीं है।।