हिंदी दिवस
हिंदी दिवस
अपनों में अपनों से तिरस्कृत,
इसी व्यथा में जीती हिंदी भाषा
पुरातनों से मिली तू स्वर्ण धरोहर,
छोड़ तुझे अपनाएं पीतल और कासा
पाठ्यक्रमों में भी खूब पढ़ाए,
अंग्रेजी जिंगल बेल पहेली
सबको मनभावन सी लगे,
दुल्हन जैसी नई नवेली
लेकिन संकट में जब,
किसी प्रश्न का हल न सूझता
लौटा आ फिर क्यों,
मातृभाषा में उनके उत्तर ढूंढता
फिर क्यों ये अपमान भला,
मातृभाषा का हम करते हैं,
जो खुद पढ़ रहे अब हिंदी,
उनकी भाषा सीखने मरते हैं
क्यों भरे दलालों की जेब,
जब सर्व समर्थ है हिंदी भाषा
स्वयं सम्मान देंगे हम खुद,
तब तो बदलेगी ये परिभाषा
वक्त रहते छोड़ दिखावा,
साधो अपने मन को
अपनाओ हिंदी करो प्रचार,
उत्कृष्टता दो अपने वतन को।