मिल रहे हैं
मिल रहे हैं
बेखौफ हो तेरे किए वादे अब उधार मिल रहे है,
तेरे इश्क में लिखे हुए शेरों के पग़ार मिल रहे है।
मेरे प्यार के इजहार को तो तुमने ठुकरा दिया,
प्रिये फिर क्यों तुम हमसे यूं हर बार मिल रहे है।
देखो कैसे गुलाब भी खिल कर मुरझा जाते हैं,
अब तुम्हारे बागों में क्यों ये बहार मिल रहे है।
मुहब्बत का पैगाम भेज तुम्हें इल्तिज़ा करती हूँ,
अब तो हमें शिकवा गिला की भरमार मिल रहे है।
कितने वर्ष बीत गए तुम्हें हमसे ऐसे रूठे हुए,
टूटकर दिल के टुकड़े बिखर तार-तार मिल रहे है।