Arunima Bahadur

Tragedy

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Arunima Bahadur

Tragedy

कैसी राह है ये

कैसी राह है ये

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देखते देखते आज कितने वर्ष बीत गए।त्याग,सेवा से संजोए कितने शिष्य आज सफलता की माला में पिरोते जा रहे है, यही तपस्या तो एक शिक्षक की यात्रा हैं।नयन आज इन्ही खयालो में खोया हुआ था,आभा के साथ ने तो ये तपस्या और खूबसूरत बना दी।हमसफर तो है ही दोनों जीवन के भी और इस साधना के भी जो अनवरत चल रही हैं।कभी ये सोच भी नही कि धन भी कमाना है, केवल अल्प शुल्क और पूर्ण समर्पण के साथ शिक्षा।शायद दिमाग नही दिल सर जुड़े थे दोनों इस सेवा रूपी व्यवसाय से,जरूरतमंदों को तो कभी कभी निःषुल्क ही शिक्षा देते हैं गए।

तभी कुछ आवाज़ ने नयन को झकझोरा, आभा एक कक्षा 9 की लड़की को कुछ समझा रही थी,कि मेहनत तुम्हारे हाथ मे है, यही भविष्य बनाएगी,अभ्यास और करो।फिर भी कक्षा 9 की छात्रा मधु कुछ भी समझ नही रही थी।

 मधु टेस्ट में नकल कर लेती और कुछ पढ़ाई न करती, आज मुच् अलग था,उसके लिये अपमान समझना।कभी झूठ,कभी नकल।

आभा बहुत समझाती रही कि मधु बेटा, ये पढ़ाई कुछ नही देगी,शिक्षा के साथ संस्कार भी जरूरी हैं, आप न पढ़ कर ,नकल कर नंबर तो ला सकते हो,पर जीवन के पथ पर हार ही है, सीखो इतना कि किसी को सिखा सको।

 पर मधु में कोई परिवर्तन न आया,वरन वह बढ़ती रही अपनी राह पर,शायद मूल में स्थित संस्कार परिवर्तित होने में समय लेते हैं, यह सोच नयन और आभा,मधु को समझते रहे,देते रहे सभी बच्चो के साथ शिक्षा और विद्या भी। पर कुसंस्कारों की नींव कभी कभी गलत पथ पकड़ ही लेती हैं।एक फ़ोन कॉल आया।

आभा:"हेलो,आपका परिचय?"

उत्तर:"उत्कर्ष सिंह,सर् का विद्यार्थी हूं।"

आभा:"इस नाम का तो कोई विद्यार्थी नही हैं, हमारे पास।"

उत्कर्ष:"आप ने मधु को कुछ पढ़ाया नही,मैं आ रहा हूँ,सारी फीस वापस करो,वरना...."

आभा:"वरना,क्या?"

नयन:"फ़ोन मुझे दो।"

 एक लंबी बहस और फ़ोन कॉल समाप्त।थोड़ी देर में दरवाजे पर कॉल बेल कीआवाज़,तथाकथित उत्कर्ष सिंह,मधु के साथ,और कभी कुछ धमकाने लगा।

नयन ने कहा,"बेटा, फीस तो कम है उन संस्कारो के आगे जो तुम भूल गए हो और मधु भी,आप ले जाओ।"

और फिर एक सन्नाटा,शोर थमा, पैसे लेकर दोनों खुशी खुशी चले गए,और छोड़ गए नयन और मधु के मन मे एक विचारों का बवंडर,क्या है ये दिशाहीनता? क्या स्तिथि ये विकट नही हैं, क्या माता पिता नही देख पा रहे इस गतिहीनता को?

और एक मौन बस ये जानने को रह गया नयन और मधु के बीच,कि हम कहाँ गलत हो गए।।



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