पहली कमाई
पहली कमाई
कभी कभी जिंदगी घुमा देती है, ऐसी राह पर ला लेती है, जो कठिन तो होती है और सिखाती भी बहुत कुछ है अपने शूलों भरे पथ से,पर लिख जाती है कुछ ऐसा अध्याय जो जीवन का संगीत बन जाता है, हर पल गुनगुनाता है, हर पल सिखाता है।
अचानक से आई दस्तक रिजवान के जीवन मे,पूरा परिवार ही महामारी की चपेट में आ गया,बिलखते ,रोते इन 18 वर्ष की आंखों ने सबको अपनी आंखों से तड़पते देखा,ऐसा रोग जो सबको चपेट में ले गया,बचा तो केवल रिजवान और घर मे एक बूढ़ी दादी।सारा पैसा भी चला गया,इलाज कराते कराते और सब भी,रह गयी बस सूनी आंखे जो दादी के दर्द को भुलाने को अपना दर्द छिपाए थी।पर दर्द से ज्यादा तो पेट की भूख थी, दो जून की रोटी थी जो नसीब भी न थी अब,न कोई कमाने वाला,न कोई सुनने वाला।
रिजवान भी तो अभी नादान ही था,और जिम्मेदारी।सोचा अब क्या करे,दादी भी तो है घर मे,कुछ तो करना ही होगा।बस उधेड़बुन में निकला, सुबह सुबह,सोचा कुछ तो काम मिलेगा ही,इंटर तो पास हूँ ही,पूरे दिन का प्रयास सुर कोई काम नही,थके कदमो से घर की ओर जा रहा था।पेट की भूख से ज्यादा दादी की चिंता हो रही थी,दो दिन से वो भूखी हैं।ऐसे कब तक चलेगा,न काम है, न पैसा।
तभी तक हार वह बैठ गया,सोचा कि नल से पानी पी लूं।तभी देखा, एक निर्माणाधीन इमारत में कुछ मजदूर समान पहुचा रहे हैं, सब कुछ भूल कर एक उम्मीद की किरण के साथ वह ठेकेदार के पास पहुंचा।ठेकेदार ने कहा कि आज भी काम कर सकता है।
रिजवान ने भी कड़ी मेहनत से काम किया और जब काम पूरा होने के बाद उसे आधे दिन की मजदूरी के साथ यह आश्वाशन मिला कि वह रोज पूरे दिन काम इसके दुगने पैसे पर कर सकता है, तो खुशी का ठिकाना न रहा आज उसे पैसे की वक़्त समझ आ गयी जो मां सिखाते सिखाते हार गई थी। थके कदम और खुशियों के साथ वह अनाज खरीद कर खुशी खुशी घर की ओर चल दिया।