श्रम का फल
श्रम का फल
आज फिर नहीं थी रात के लिए रोटी। और फिर कल भोर की भी चिंता, न जाने काम मिले न मिले, दो बच्चों के पेट की भूख और क्या करे नित्या, आंखों में आंसू भर आते थे कि कैसे करेगी राधा और राम का लालन पालन, अभी मात्र कुछ ही महीने तो हुए थे अंकुर के देहांत को, न जाने कैसे महामारी कोरोना, हर ले गई अंकुर का जीवन और अंकुर के जीवन के साथ तीन और जीवन की आशाएं। आंखों से रिमझिम बारिश थी और सामने एक भयंकर अंधकार।
अंकुर जब साथ थे तो कम से कम दो जून की रोटी तो थी, खुशियां तो थी, एक आशा तो थी कि राधा और राम शिक्षा भी ग्रहण कर पाएंगे और अपना भविष्य संवार पाएंगे। पर इस नासपीटे महामारी ने तो सब छीन लिया।
वो रिक्शा तो था, जिसे अंकुर चलाता था, पर चलाता कौन अब, नित्या को आता नही चलना और, राधा और राम बहुत छोटे थे।
और तो और नित्या बस पाँचवीं तक तो पढ़ी थी, कुछ ज्यादा आता नहीं था, क्या करती, छोटी छोटी मजदूरी कर लेती तो किसी रोज की रोटी कमा लेती और जब कोई काम न मिलता वही भूखी रात, पर आखिर कब तक। सोच सोच कर उसका दिल बैठा जा रहा था।
तभी एक समाजसेवी संस्था अचानक से उसकी झुग्गी की ओर आई, उनका उद्देश्य था कि आजीविका के साधन सिखाए जाए, जीवन स्तर सुधारा जा सके।
भानु मैडम ने नित्या को कुछ सिलाई के काम सिखा दिए और संस्था की ओर से साइकिल चलाना भी सीखा दिया। अब तो भानु मैडम उसे काम देती और वो दिल कर दे देती।
नित्य ने सोचा कि बच्चों को पढ़ाना भी तो है तो वह शाम को सिलाई करेगी और दिन में रिक्शा चला कमाई और बच्चो को अच्छी शिक्षा देगी।
यही आशा उसकी शक्ति बनी, और उसने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना शुरू किया, आज २५ वर्ष पूरे हो गए और राधा और राम पीसीएस की परीक्षा पास कर अधिकारी बन गए और राधा को अपनी मेहनत का परिणाम मिल गया।
राधा और राम ने कहा कि न करो अब मजदूरी, पर नित्या तो एक श्रमिक थी और श्रम उसका जीवन, वह चलती रही अपने पथ, अपने जैसे अन्य के जीवन में उजाले की किरण बनने, जैसे भानु मैडम ने उसके जीवन में भरा था।।