मेरी पहचान हिन्दी
मेरी पहचान हिन्दी
मधुरिमा आज बेहद प्रसन्न और गर्व अनुभव कर रही थी, वो ही क्यों उसके माता-पिता भी गौरवान्वित महसूस कर रहे थे। आज उसे राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाने में उसकी रचना के लिए पुरस्कार मिला था। दो दिन पहले वो अपने माता-पिता के साथ दिल्ली पहुंची थी।आज दिल्ली से वापिस जाते समय वो अतीत में खो गई।उसे आज भी याद है जब उसने बी.ए. करने का निर्णय लिया था तब पिता को अच्छा नहीं लगा था। वो अंग्रेजी के प्रोफेसर थे बारहवीं तक मधुरिमा ने अंग्रेजी विद्यालय से ही पढ़ाई की थी ,तो पिता यही चाहते थे कि अंग्रेजी में मधुरिमा पी.एच.डी. करे। पर हर इंसान अपना भाग्य खुद ही बनाता है या पहले से तय होता कि उसे किस क्षेत्र में जाना है तो गलत नही होगा। पिता के समझाने पर भी मधुरिमा का निर्णय अटल रहा उसने बी.ए.में हिन्दी विषय भी चुना और
फिर हिन्दी में ही एम.ए. प्रथम श्रेणी मे उत्तीर्ण भी किया। उसे हिन्दी, कविताएं, कहानियां लिखने का भी शौक था लेखन में सुधार आता चला गया और अब तो वो कालेज में लेक्चर भी लेने लगी थी। उसने आगे हिन्दी में ही पी.एच.डी. करने का भी निर्णय लिया ,तो पिता ने कोई
आपत्ति नहीं जताई। इसी सिलसिले में उसे महाराष्ट्र के एक गांव में जाना पड़ा वहां उसने पाया कि गांव आधुनिकता से कोसों दूर है और लोग मराठी भाषा ही समझते हैं। उसे लगा कि इन्हें अपनी राष्ट्रभाषा तो आनी ही चाहिए,बस उसनेvकुछ समय वहीं रहकर उन्हें हिन्दी सिखाने का काम शुरू कर दिया। दो महीने में गांववासी कम से हिन्दी समझने के साथ साथ बोलने और थोड़ा रूक-रककर पढ़ने भी लगे थे।
सबने उसका आभार भी प्रकट किया। जब उसने अपने पिता को बताया कि वो अपने मकसद में कामयाब रहीbतो उन्हें बड़ा फ़क्र महसूस हुआ और उसके सही निर्णय परबड़ी प्रसन्नता भी हुई ।
उसे तो अपने निर्णय पर पूरा भरोसा पहले से था,जब उसने बी.ए. में हिन्दी विषय चुना था । उसने हमेशा विद्यालय में यह महसूस किया था कि अंग्रेजी भाषा को महत्व मिलता है, हिन्दी राष्ट्रभाषा बस कहने के लिए ही है, व्यवहार में अपनाने के लिए नहीं। विद्यालय में हिंदी भाषा के साथ ही अन्य भाषाओं को चुनने का विकल्प रखा गया है, संस्कृत, फ्रेंच, स्पेनिश, जर्मन आदि। सिर्फ़ हिन्दी के साथ ही यह अन्याय क्यों? तभी उसने अपना मन बना लिया था कि सही समय आने पर वो हिन्दी को अपना मुख्य विषय बनाकर उसे समृद्ध बनाने में अपना योगदान देगी। कितनी कविताएं, कहानियां वो लिखती आई है। इस बार अंचल विशेष पर उपन्यास लिखा जिसके लिए उसे पुरस्कृत किया गया। "मधुरिमा चलो अपना गतंव्य आ गया" मां के शब्द कान में पड़े,उसे लगा जैसे वो सपने से जाग गई।