Poonam Atrey

Drama Inspirational

4.5  

Poonam Atrey

Drama Inspirational

संघर्ष

संघर्ष

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बात तकरीबन 50 वर्ष पुरानी है मात्र 16 वर्ष की कमसिन उम्र में उसने ( राजेश्वरी )गृहस्थी की शुरुआत की थी। जब ससुराल में आई तो एक कच्ची मिट्टी से बना छोटा सा घर और एक बीमार चचिया ससुर ,और 21 वर्षीय पति ,बस यही छोटा सा परिवार था उसका।

एक छोटी सी चाय की टपरी थी जीविकोपार्जन हेतु 

,ना ही लाड़ लड़ाने को सास मिली और न चुहलबाजी करने को ननद देवर ,बस इसी छोटी सी कुटिया में उसे जीवन बसर करना था।

गृहस्थी की गाड़ी धीरे धीरे चल निकली।

घर के काम से निवृत्त होकर वह पति के काम मे हाथ बंटाने लगी। उसके क़दमों का प्रताप था या मेहनत का फल ,टपरी की आमदनी धीरे धीरे बढ़ने लगी।

अब उन्होने टपरी छोड़ अपनी ही खाली पड़ी ज़मीन पर एक छोटी सी दुकान बना ली। तब तक वह एक प्यारी सी बेटी की माँ बन चुकी थी। उसके दिव्य कर्मो का प्रतिफल ये रहा कि दुकान एक छोटे से होटल में परिवर्तित हो गई मुनाफा भी बढ़ गया। अब उनके कच्चे झोपड़ी नुमा मकान की जगह एक पक्के सीमेंट वाले मकान ने ले ली।

जिंदगी की गाड़ी यूँ ही खुशी खुशी चल रही थी। ,दो नन्हे मुन्ने एक बेटा और एक बेटी और उसकी गोद में आ गए थे।

वक़्त जैसे मुठ्ठी से रेत की तरह बहता ही जा रहा था।

मगर उसके संघर्षो की धूप कम न हुई। वह सतत परिश्रम से अपने हर फ़र्ज़ को अंजाम दे रही थी। पति का साथ और प्रेम उसका संबल बना रहा ,उसकी छोटी सी बगिया एक भरी पूरी फुलवारी बन गई।

चार बेटियों और दो बेटे और पति अब अपनी बगिया देख वह फूली न समाती थी। बेटियों को अच्छी शिक्षा और बेटों को उच्च संस्कारो से उसके समाज मे रहने लायक बनाया ,।लेकिन पति के व्यवसाय में अभी भी वह पूर्ण सहयोग देती रही। बच्चे जवान हुए तो उनकी अच्छे शादियों का जिम्मा भी उसने बखूबी निभाया। सबसे छोटे बेटे का विवाह कर वह ॐ शांति ( प्रजापिता बृह्मकुमारी ) की बागडोर संभाली और उसका भली प्रकार संचालन करने लगी उसे लगा अब उसके सभी फ़र्ज़ पूर्ण हुए अब शांति से बाबा के भजन में ध्यान लगाएगी। मगर विधना को ये कतई मंजूर नही था कि वह अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो सके। एक दुर्घटना में छोटे बेटे की अकाल मृत्यु ने उसे झकझोर दिया ,।पति का वृद्ध शरीर भी इस दुख को सह नही पाया। अब उसके कमजोर कंधे जवान बेटे के पार्थिव शरीर को उठाने के लिए अक्षम थे। मगर वह फिर भी हिम्मत नही हारी पति के साथ साथ अपने व्यवसाय को भी बखूबी सँभाला। बेटे के जाने के 3 वर्ष पश्चात जीवनसाथी भी साथ छोड़ गया। अब उसकी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई , जवान बहु बेटे के दो बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा आज उसके वृद्ध कंधों पर है जिसे वह हँसते हँसते वहन कर रही है और मुझे फ़ख़्र है कि मैं उस माँ की बेटी हूँ जो अपने जीवन मे कभी नही हारी और आज भी निरन्तर संघर्षरत है। ।


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