Poonam Atrey

Drama Inspirational

4.5  

Poonam Atrey

Drama Inspirational

विवाह ( बंधन सात जन्मों का )

विवाह ( बंधन सात जन्मों का )

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  प्यार से सब उसे डॉली कहते थे पर थी सृष्टि की अद्भुत रचना बहुत प्यारी सी बिल्कुल डॉल जैसी ,जितनी चंचल और नटखट उतनी ही भोली ,सारे घर में उधम मचाती लेकिन एक दम निडर।

बचपन कब बीता और कब वो 21 बरस की हो गई पता ही नहीं चला।


 अब घर में उसके विवाह की चर्चा होने लगी सभी रिश्तेदार एक अच्छे लड़के तलाश में लग गए। और एक दिन एक रिश्ता आया लड़का प्राइवेट कम्पनी में जॉब करता था। 3 भाइयों और एक बहन में सबसे बड़ा अच्छी खासी नौकरी थी और लड़का सीधे सरल स्वभाव का। मगर उसकी माँ और पिताजी काफ़ी तेज़तर्रार। लेकिन लड़के की खूबियाँ देखकर उसकी शादी उसी घर में तय हो गई।

डॉली विवाह के बाद ससुराल आ गई घर में एकदम गाँव जैसा माहौल देख वह थोड़ा असहज महसूस करने लगी। लेकिन पति के प्रेम के आगे वह सब कुछ भूल गई।


कुछ दिन ससुराल में एडजस्ट करने में बीते फ़िर धीरे धीरे ससुराल के माहौल में रम गई। समय तेजी से पंख लगाकर उड़ा जा रहा था मात्र 4 वर्षों में वह 2 प्यारी बेटियों की माँ बन चुकी थी।


मगर नियति का खेल देखिए कि मनीष को तेज बुखार ने जकड़ लिया। उसने सोचा साधारण सा बुखार है तो गाँव में ही किसी डॉक्टर को दिखाया ,पर कहते है न कि नीम हकीम खतरा-ए-जान, किसी दवा के दुष्प्रभाव से उसकी दोनों किडनियां डैमेज़ हो गई।


फटाफट उसे दिल्ली के किसी बड़े हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया जहाँ उसकी हालत और बिगड़ती चली गई। डॉक्टर ने शीघ्र ही खून का प्रबंध करने के लिए कहा। डॉली का खून मनीष के खून से मैच नहीं हो पाया। उसने अपने सास ससुर से बात की मगर वो दोनों ही खून देने से मुकर गए। डॉली अवाक रह गई कि माँ बाप अपनी संतान के लिए इतने कठोर कैसे हो सकते हैं।


उसने तुरंत अपने मौसेरे और तहेरे भाई को इस बाबत फोन किया। फोन सुनते ही वो तुरन्त अपने कुछ दोस्तों को लेकर वहाँ पहुंचे और मनीष को खून दिया।


जब डॉक्टर ने बताया कि मनीष की दोनों किडनियां 90 प्रतिशत खराब हो चुकी हैं अब इसके इलाज में काफी खर्च होगा।

ये बात जब मनीष के माता पिता ने सुनी तो वो वहाँ से चुपचाप खिसक गए और घर जाकर फोन कर दिया कि हमारे पास फिजूल खर्ची के लिए बिल्कुल पैसे नहीं हैं बेहतर होगा वो चुपचाप मनीष को घर ले आये और जितनी सम्भव है सेवा कर ले वो वैसे भी ज्यादा जीने वाला नहीं है।


मगर डॉली तो जैसे कलियुग की सावित्री थी इतनी जल्दी कैसे हिम्मत हार जाती। सास ससुर के मुँह मोड़ने के बाद उसने स्वयं ही उसके इलाज का बीड़ा उठाया।


मायके के। कुछ रिश्तेदारों से कुछ पैसे एकत्र किए और उसके इलाज में कोई कसर नहीं छोड़ी।

मनीष की ऐसी हालत जान डॉली की माँ ने भी उसे सलाह दी कि जब इसके माँ बाप ही इसे छोड़ गए तो तू क्यों इसके पीछे अपनी ज़िंदगी खराब करती है। मगर उसने अपनी मम्मी को भी टका सा जवाब देकर कहा कि अगर इनकी जगह मैं बीमार हुई होती और ये मुझे छोड़ने की बात करते तो आपको कैसा लगता।

माँ डॉली की बात सुन कर चुप हो गई।


धीरे धीरे मनीष की सेहत में सुधार आने लगा। डॉक्टर ने कहा कि अब आप इन्हें घर ले जा सकते हो मगर इस बात का ख्याल रखना कि इनकी समय समय पर डायलिसिस कराते रहे।


डॉली मनीष को लेकर घर आ गई सास ससुर ने उनका खर्च उठाने से साफ इंकार कर दिया था अब उसके सामने आजीविका ,बच्चों की पढ़ाई और पति का इलाज सभी संकट आन खड़े हुए।


उसके मौसा जी जो कि दिल्ली की ही एक कम्पनी जॉब करते थे उसने उनसे कहा कि उसे कहीं जॉब दिला दे उन्होंने उसे अपने ऑफिस में ही जॉब के लिए कहा तो वह तुरंत तैयार हो गई।


अब वह बच्चों की पढ़ाई की खातिर दिल्ली में ही किराए पर मकान लेकर रहने लगी। आज उसकी दोनों बेटियाँ बड़ी हो गई हैं और मनीष की हालत में भी काफ़ी सुधार है लेकिन वह आज भी अपना पत्नी और मातृ धर्म पूरी शिद्दत से निभा रही है।


हर तीन दिन में मनीष की डायलिसिस होती है बच्चों की पढ़ाई भी सुचारु रूप से चल रही है। और डॉली अपने वैवाहिक बन्धन का फर्ज पूरी शिद्दत से निभा रही है। और वो प्यारी सी डॉली आज भी अपने चेहरे पर वही मुस्कान रखती है जो बचपन में रखती थी। ।

( सच्ची घटना पर आधारित ) 



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