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Pratibha Mahi

Abstract Fantasy Inspirational

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Pratibha Mahi

Abstract Fantasy Inspirational

कलाएँ संस्कारों की पोटली

कलाएँ संस्कारों की पोटली

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है संस्कार की पोटली, पूजा का आधार।

 कला ब्रह्म है जान लो, ब्रह्मा रचनाकार।।

   

 संपूर्ण भारत वर्ष में अनेकानेक कलाओं का समावेश है। जैसे कि सिनेमा, चलचित्र, नाटक, गीत-संगीत, गाना-बजाना, कहानी-कविता, चित्रकारी, मूर्तिकला, रंगोली इत्यादि अनगिनत कलाएँ हैं। सम्पूर्ण कलाओं का वर्णन करना बहुत ही मुश्किल है। कलाएँ बेजान वस्तुओं में भी जान डाल देती हैं। कभी देखा 'एक मूर्तिकार पत्थर की मूरत बनाकर उसमें अपनी कला के माध्यम से प्राण फूँक देता है, ऐसा प्रतीत होता है कि वह मूर्ति अभी बोल पड़ेगी। 


उसी तरह एक नृत्यांगना अपने हाव-भाव से अपने हृदय के उद्गारों को, अपने संस्कारों को प्रकट कर अपने घुँघरू की झंकार से संपूर्ण वातावरण को गुंजायमान कर देती है। 


ऐसे ही एक लकड़ी की बांसुरी को जब कोई कलाकार अपने लबों से चूम अपने सांसों की सरगम को उसके साथ जोड़ता है, तो वह बांसुरी सभी का मन मोह लेती है ।


एक कवि या लेखक जब भावों के समंदर में गोते खाता हुआ अपने दिल की मथानी से उसका मंथन करता है, तो शब्द रूपी रत्नों को पिरो कर एक नया इतिहास रच देता है। वैसे ही चित्रकार रंगों के माध्यम से कैनवास पर अपनी भावनाओं और संस्कारों को उकेर दे तो वह कैनवास भी बोलने लगता है।


"चित्रकार की तूलिका, रचे गज़ब सौगात ।

रंग बिखेरे अर्श पर, इंद्रधनुष के सात।।"


कला कोई भी हो, हर कला अपने आप में संपूर्ण है,माँ भारती का स्वरूप है। प्रत्येक कला के माध्यम से हम अपने हृदय के उदगार व संस्कारों को लोगों तक पहुँचा सकते हैं। नृत्य हो या चित्रकारी, संगीत हो या कविता कहानियां, गीत इत्यादि सभी के माध्यम से हम अपने संस्कार अपने बच्चों प्रदान कर सकते हैं।


 हमारे प्रथम गुरु हमारे माता-पिता होते हैं जो हमें अच्छे संस्कार देते हैं । माता-पिता को चाहिए कि वह अपने बच्चों को कलाओं से जोड़कर रखें। इसमें पहली पहल माता-पिता को करनी होगी तभी माता-पिता से ही अच्छे संस्कार लेकर बच्चे अपने भारतवर्ष के भविष्य को एक नई दिशा प्रदान कर पाएंगे और एक कलाकार के रूप में उभर कर सामने आएंगे ।


एक कलाकार की कला दीपक - बाती, अक्षत-रोली, पुष्प से सजी पूजा की थाली जैसी होती है। जव वह अपने हृदय रूपी समंदर में डूबकर अपनी कला के माध्यम से आरती पूजा वन्दन करता है। तब निर्जीव चीजों में भी जान आ जाती है, ऐसा होता है एक कलाकार की कला का अद्भुत प्रभाव।


"दिल की मथानी से मथे, हृदय के उद्गार।

शब्दों की लड़ियां पिरो, गड़े नया संसार।।"


कलाकार कोई भी हो, वह अपनी कला से माता-पिता की, ईश्वर की, और भारत माता की आराधना में संलग्न को समर्पित राहता है। कलाकार की प्रत्येक कला में उस कलाकार के संस्कार झलकते हैं। इसलिए संस्कारों को कला से अलग नहीं किया जा सकता। तभी तो संस्कारों का कला व कलाकार के साथ बड़ा गहरा संबंध है। कलाकारों की कलाओं को संस्कारों की पोटली कहा जाता है।


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