देखो माटी का पुतला
देखो माटी का पुतला
लूट रहा है इक दूजे को,
देखो माटी का पुतला
जूझ रहा झंजावातों से ,
देखो माटी का पुतला
खून का प्यासा खून हुआ है,
होड़ लगी है आपस में ।
खौंप रहा अपनों के खंज़र,
देखो माटी का पुतला ।
लूट रहा है इक दूजे को,
देखो माटी का पुतला ।।
घोटाले करता है पल पल,
कुदरत के मयखाने में ।
कैसे रंग बदलता झट से ,
देखो माटी का पुतला ।
लूट रहा है इक दूजे को,
देखो माटी का पुतला ।।
सच्चाई को दफ़न किया है,
सागर की गहराई में ।
झूठ का जामा बैठा ओढ़े ,
देखो माटी का पुतला ।
लूट रहा है इक दूजे को,
देखो माटी का पुतला ।।
काँच के महल बनाकर रहता,
अपनी चार दिवारी में ।
पीट रहा है सिर पत्थर से,
देखो माटी का पुतला ।
लूट रहा है इक दूजे को,
देखो माटी का पुतला ।।
झूमे नाचे मौज उड़ाए ,
लाचारों की बस्ती में ।
अनभिज्ञ है अंजाम से अपने ,
देखो माटी का पुतला ।
लूट रहा है इक दूजे को,
देखो माटी का पुतला ।।