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Pratibha Mahi

Tragedy

4  

Pratibha Mahi

Tragedy

देखो माटी का पुतला

देखो माटी का पुतला

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लूट रहा है इक दूजे को,

देखो माटी का पुतला 

जूझ रहा झंजावातों से ,

देखो माटी का पुतला 


खून का प्यासा खून हुआ है,

होड़ लगी है आपस में ।

खौंप रहा अपनों के खंज़र, 

देखो माटी का पुतला ।

लूट रहा है इक दूजे को,

देखो माटी का पुतला ।।


घोटाले करता है पल पल,

कुदरत के मयखाने में ।

कैसे रंग बदलता झट से , 

देखो माटी का पुतला ।

लूट रहा है इक दूजे को,

देखो माटी का पुतला ।।


सच्चाई को दफ़न किया है, 

सागर की गहराई में ।

झूठ का जामा बैठा ओढ़े , 

देखो माटी का पुतला ।

लूट रहा है इक दूजे को,

देखो माटी का पुतला ।।


काँच के महल बनाकर रहता,

अपनी चार दिवारी में ।

पीट रहा है सिर पत्थर से, 

देखो माटी का पुतला ।

लूट रहा है इक दूजे को,

देखो माटी का पुतला ।।


झूमे नाचे मौज उड़ाए , 

लाचारों की बस्ती में ।

अनभिज्ञ है अंजाम से अपने ,

देखो माटी का पुतला ।

लूट रहा है इक दूजे को,

देखो माटी का पुतला ।।



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