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Pratibha Mahi

Abstract Fantasy

4  

Pratibha Mahi

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सुर-ताल सी मैं तो बजती रही

सुर-ताल सी मैं तो बजती रही

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आप ही आपसे रोज लड़ती रही

गीत-सुर-ताल सी मैं तो बजती रही


कुछ न भाता मुझे अब तो तेरे सिवा

नाम तेरा ही पल-पल मैं जपती रही


प्यार शिद्दत से दिल को भी समझा दिया 

बैठकर रूप तेरा ही गढ़ती रही


बादलों के मैं रथ पर चली बैठकर

हर तरफ अक्स तेरा ही तकती रही


कर इबादत तुझी में आ गुम हूँ सनम

तेरी यादों का श्रृंगार करती रही


गुफ़्तगू कर फ़िजा सी लगी झूमने

चाँद तारों की सीढ़ी मैं चढ़ती रही


बनके सरगम तू दिल में धड़कता रहा

हो फ़िदा बस तुझी पर मैं मरती रही


बैठ अश्कों से मल-मल पखारे चरण

हो फ़ना हर घड़ी बस सँवरती रही


अपनी 'माही' को भर ले आ दामन में तू

तेरे दीदार को रुह तरसती रही।


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