मेरा स्कूल ....।
मेरा स्कूल ....।
मेरी दीदी मुझसे पांच साल बडी थी और मुझे उसके साथ स्कूल जाना बहुत पसंद था एक कंधे पर बोतल और टिफिन पीछे बैग लटकाकर मटक मटक कर स्कूल जाना। वहां दिनभर शरारतें करना नये नये दोस्त बनाना।
और फिर कुछ महीनों बाद मेरा स्कूल में दाखिला हुआ और स्कूल जाने की खुशी वहां झूला झूलने का उत्साह ओ हो क्या ही कहना।
हमेशा आगे बैठना मुझे पसंद था और वहां कुछ समझ नहीं आता फिर भी टीचर को देख प्यारी सी मुस्कान देना।और टीचर का मुझे एक टॉफी दे जाना। ओ हो क्या मजे थे उस समय। लगता एक दिन की भी छुट्टी न हो। फिर मैं पढ़ने में होशियार थी ऐसा टीचर ने मां से कहा और मुझे सीधे तीसरी क्लास में बैठा दिया। वहां फिर धीरे धीरे सीखा पढ़ना फिर घर जाकर होमवर्क करना और याद न करके आने पर टीचर से डांट खाना। आज भी याद है मुझे वो टीचर की डांट ।
और पता है मेरे स्कूल में हर शनिवार बालसभा होती थी जिसमें सभी बच्चे भाग लिया करते थे और प्रथम आने वाले बच्चे को चॉकलेट दी जाती थी। मैं भाग लेती पर एक बार भी चॉकलेट नहीं जीती। लेकिन बालसभा में भाग लेना बंद नहीं किया थोड़ी बड़ी हुई ।नाटक डांस में हिस्सा लेने लगी और अपने स्कूल जीवन में सबकी चहेती विघार्थियों में थी मैं। कोई भी प्रतियोगिता हो नाम पहला मेरा होता था पर पता है चॉकलेट के लिए।
फिर धीरे धीरे बड़ी क्लास में आ गई तो पढ़ाई की जिम्मेदारी बढ़ गई और फिर स्कूल जाना भी कम भाता था क्योंकि इतना हमारे अंदर वजन नहीं था जितना किताबों में था। हालांकि अब तो और भी ज्यादा वजन होता है बैगों में। पर स्कूल में डिसिप्लिन सिखाया जाता था।तथा तरह तरह की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती थी जिससे हमारे अंदर मनोबल बढ़ता था। इसलिए अपने अनुभव के अनुसार कह सकती हूं विघार्थियों के अंदर शिष्टाचार की नींव टीचर द्वारा ही दी जा सकती है साथ ही मातापिता के साथ ही टीचर भी विघार्थियों के जीवन को संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं हालांकि यह बात हमें तब समझ नहीं आती। क्योंकि उस समय टीचर की डांट बेकार लगती थी पता नहीं क्यों रोज रोज डांटते हैं टीचर को अकड़ू कहकर बुलाते थे।पर जब बड़े हुए तब उनकी डांट याद करते थे कि वो हमारी भलाई के लिए होती थी।
वो हर रोज क्लास में खड़ा कर हमें दो लाइन बोलने को कहना हमारे अंदर आत्मविश्वास की भावना को बढ़ाता था जो बड़े होकर हमें बहुत काम आता है।
साथ ही अलग अलग तरह के खेलकूद हमारे शरीर को लचीला बनाते हैं साथ ही स्फूर्तिवान बनाते हैं। इसके साथ ही हमें प्रतियोगिता का आयोजन किस प्रकार करना चाहिए वो सिखाना। जिससे हम अभी से सीख सकें साथ ही कैंप लगाना आज भी याद है कितना कुछ हम स्कूल में ही सीख जाते थे।