बचपन के कुछ यादगार पल
बचपन के कुछ यादगार पल
मैं अपनी मम्मी के साथ बंगलौर में शिफ्ट हो गयी और तब से मेरा बचपन, परिवार के साथ बिताए सारे पल बस यादों में कैद लिए मुझे बंगलौर जाना पड़ा क्योंकि पापा की बदली हो गयी थी और मैं दादा दादी ताई ताऊजी के साथ रहना चाहती थी लेकिन मुझे जाना पड़ा ..
लेकिन रोज मम्मा पापा के साथ बैठ उनके बचपन के किस्से सुनना मुझे बहुत पसंद था मैं रोज सुनती और अपनी एक डायरी में लिख लेती..एक दिन मेरे पापा ने मुझे बताया कि उनकी मम्मी की दादी से नहीं बनती थी क्योंकि मम्मी नये ख्यालात और दादी पुराने ख्यालात की थी फिर भी उन्होंने अपने बीच यह फर्क आने नहीं दिया वो बात नहीं करती थी पर सम्मान एक दूजे का करती थी,
ऐसे किस्सों को मैं लिख लिया करती थी क्योंकि अब बस यही कहानियां मुझे दादा दादी की लोरियों की कमी नहीं दिलाती थी...
लेकिन कहीं न कहीं मेरे बचपन के यादगार पलों में आज भी कैद वो मेरा परिवार था वो जिसमें चाचा चाची ताई ताऊजी दादा दादी सब होते थे जहां बच्चों की खिलखिलाहट बड़ों की आवाज से गूंज उठता हमारा घर था सचमुच वो पल वो दिन खुद में खास होते थे तब सारे बच्चे दादा दादी की गोदी में कहानी सुनने के लिए लेट जाते थे..और रोज झगड़ते थे कि नहीं ये वाली कहानी दादी..नहीं दादू ये वाली मेरा छोटा भाई कहता था..और दादा दादी की चेहरे पर वो हंसी आज भी मुझे याद है वो बोलते अच्छा अच्छा झगड़ों मत दोनों कहानी सुनाएंगे हम बस खुश...
और हम जोर की गर्दन हिलाते..और दादी हमें कहानी सुनाती और हम कब उनकी गोद में सो जाते पता भी नहीं चलता,
काश हम आज भी वो बचपन जी पाते। काश आज हम वहां फिर जा पाते जहां पूरा परिवार एक साथ होता था ।कब समय गुजर जाता था पता भी नहीं चलता था काश .....
हमें वही बचपन वहीं सबका प्यार फिर मिल पाता ।
क्यों सब एकल परिवार में रहना पसंद करते है? यह सवाल मुझे अंदर ही अंदर कचोट रहा था और जिसका जबाव शायद किसी के पास नहीं था।
मेरा सपना था मैं सबके साथ रहूं पर मुझे बंगलौर जाना पड़ा और अपना बचपन उन यादों में कैद कर उस डायरी को सीने से लगा एक कोने में सिसकियां भरती हुई सो गयी।
क्योंकि सिर्फ वो मेरा सपना बनकर रह गया और हकीकत की मंजिल को कभी पार न कर सका और जिसका अफसोस मुझे जिंदगी भर रहेगा।