Sudha Sharma

Tragedy

4  

Sudha Sharma

Tragedy

प्रतीक्षा

प्रतीक्षा

11 mins
21


तृप्ति बालकनी में खड़ी अपलक दृष्टि से सामने का दृश्य निहार रही थी। इस बालकनी के ठीक सामने एक झील दिखाई देती थी। झील के किनारे खड़े ताड़ के वृक्ष उसके सौन्दर्य में चार चांद लगा रहे थे। झील के किनारे पक्षियों का आना जाना लगा रहता था। क्रोंच पक्षी का जोड़ा बड़े प्यार से इधर-उधर विहार कर रहा था कि तभी एक चील आसमान से उठती हुई आई और एक क्रौंच पक्षी को अपनी चोंच में दबाकर उड़ गई। दूसरा पक्षी जोर जोर से शोर मचाने लगा। सिर पटक पटककर झील के किनारे बेचैनी से 

इधर-उधर घूमने लगा। उसका रूदन तृप्ति को बेचैन कर रहा था। इतने शांत,सरस और सुंदर वातावरण में उसके अश्रुकोष से दो गर्म गर्म मोती लुढ़क कर गालों पर आ गये। तभी उसकी सात वर्षीय बेटी ईषा ने उसका हाथ पकड़कर पूछा,” मम्मी आप क्यों रो रही हो? “ “ बस वैसे ही बेटा। “ संक्षिप्त सा उत्तर देकर तृप्ति ने उसे आलिंगन बद्ध कर लिया। रूलाई थी कि रूकने का नाम नहीं ले रही थी। “ मम्मी आप अब बहुत रोने लगी हो। जब भी हम देखते हैं आप रोती रहती हो, रोती रहती हो और जब हम रोते हैं तो कहती हो रोते नहीं। गंदे बच्चे रोते नहीं। आप रोती रहती हो आप भी तो गंदी हो।

छोटी सी बच्ची के पास तृप्ति को चुप कराने के लिए शब्द नहीं थे। वह अभी इतनी छोटी थी कि तृप्ति उसे अपनी बात भी नहीं समझा सकती थी। लेकिन उसके मन में न रूकने वाला तूफान उठ खड़ा हुआ था। उस चील में उसे राफिला खान नजर आ रही थी। जो उसके जीवन में चील की भाँति आई और उससे उसके पति को छीन कर ले गई। वह उसके जीवन में सुनामी की भाँति आई और हँसते खेलते परिवार को रौंदकर चली गई। 

तृप्ति कमरे में आकर बच्ची को आलिंगन बद्ध कर बिस्तर पर लुढ़क गई। इतने में उसका बेटा आरव भी पास आकर लेट गया। माँ की थपकी से दोनों बच्चे सो गए। लेकिन तृप्ति की आँखों से नींद गायब थी। नींद की जगह अविरल आंसुओ ने ले ली। अनचाहे विचारों ने उसके मस्तिष्क पर कब्जा कर लिया। उसका दम घुट रहा था। उसके विवाह को बारह वर्ष बीत गए लेकिन शांति उसे बारह घंटे भी नहीं मिली। विवाह के थोड़े दिनों बाद ही पति का व्यवहार उसके दिमाग पर क्षयरोग की भाँति उसके शरीर को खा रहा था। सभी उससे कमजोरी का कारण पूछते। उदासी उसके चेहरे पर चिपक गई थी। मुस्कराहट स्पष्ट आवरण सा दिखती थी।

     अति संस्कारी परिवार की यह बिटिया इस समाज की स्वच्छंदता से संघर्ष कर रही थी और आखिर में हार गई लड़ते लड़ते। कहते है लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती। मध्यम परिवार की यह लड़की बारह साल पहले एक उच्च मध्यम परिवार में बहू बनकर आई थी। अपने सौभाग्य पर गर्व और अपने पति की अदाओं पर मुग्ध और थोड़ी सी आत्ममुग्धा भी थी क्योंकि पति ने बताया कि तीस पैंतीस लड़कियों को देखने के बाद तुम्हारा चुनाव किया है। इतना आकर्षण चेहरे में कि मुँह से ना ही नहीं निकला। मेरे मन ने तुम्हारे जैसे चेहरे की ही कल्पना की थी। और यह बात सही भी लगी क्योंकि जब विनायक अपनी माँ, बड़ी मौसी, मौसा के साथ देखने आया तो एक बार में ही हाँ कर दिया। फिर लोकल मौसा,मौसी,उनकी युवा लड़कियों को बुलाया, सलाह ली और अति शीघ्रता से बाजार से मिठाई का डिब्बा मँगवाकर इक्कीस सौ रुपए से टीका कर दिया । सास ने अपने हाथों के कंगन उतारकर तृप्ति के हाथों में पहना दिये। तृप्ति के माता पिता ने भी इक्यावन सौ रुपए और मिठाई के डिब्बा देकर रिश्ता पक्का होने पर मोहर लगा दी। और सभी को भेंट में ग्यारह सौ रुपए दिये।

    प्रारम्भ में दिन बड़े आराम से बीत रहे थे। लेकिन यदा कदा रिश्तेदारों की खुसुर-पुसुर उसका विश्वास भंग कर देती थी। उनकी बातों का रुख अलग होता लेकिन आशय कुछ और। नानी ने एक बार कहा सामने वाली लड़की सीमा विनायक के चारों तरफ मंडराती थी पर विनायक ने ही नहीं हाँ करके दी हमने तो कम्मों को कहा भी था कि करोड़पति घर की लड़की है आजकल तो जात-पात को भी कोई नहीं पूछता। तभी दूसरी मौसी ने ताना मारा “अरे वह मुल्ली कितनी सुंदर थी कमलेश दीदी तो उससे भी, शादी करने को तैयार थी पर विनायक मानकर ही नहीं दिया ।” पता नहीं वे सब ऐसा कहकर उसका चरित्र बखान कर रही थी या तृप्ति का सौन्दर्य का क्योंकि सास की साथ वाली अध्यापिकाएँ भी कहकर गई थी” बहू तो तुम छांटकर लायी हो दीदी। बहू के एक एक नाक नक्श भगवान ने अपने हाथों से तराशे हैं। ब्यूटी कॉन्टेस्ट में भाग लेती तो मिस यूनिवर्स चुनी जाती। नाक भी सुतवाॅ, आँखें तो मानो नशे से भरे दो प्याले हो।“ तभी सास हँसकर बोली” आज तो मुझे बहू की नजर उतारने पड़ेगी। “ 

   शुरू में तो सब ठीक रहा। मानो जन्नत की सैर के दिन थे। रिश्तेदारों के घर आना -जाना, होटल में खाना-पीना। पूरे परिवार का लीविंग स्टाइल देखकर तृप्ति अपने भाग्य पर गर्व महसूस करती थी। अपने परिवार को हेय दृष्टि से देखने लगी। उसे क्या पता था पालिश किया पीतल सोने से अधिक चमक मारता है । इतनी चमक कि आँखें चुंधिया जाती है। अब धीरे-धीरे उसकी आँखों के सामने से धुंध छूमंतर होने लगी। माँ का अपने बेटे पर कोई नियंत्रण नहीं था। बाप की अकाल मृत्यु के कारण दोनों बेटे बेलगाम घोड़े थे। माँ सिंगल पेरेंट्स होने के कारण कमाने में लगी रही। दिल्ली जैसे शहर की आधुनिकता ने उसकी आँखों पर पर्दा डाल दिया। दोनों बेटों की गर्ल फ्रेंड्स घर आती-जाती थी। कुछ का व्यवहार तो बड़ा संदेहास्पद था। लेकिन अति आधुनिकता की पट्टी बँधी होने के कारण उसे कुछ दिखाई नहीं देता था। वो तो एक दिन सामने रहने वाली लड़की का भाई दनदनाता हुआ आया और विनायक की कनपटी पर पिस्तौल तान दी और साफ शब्दों में धमकी दी कि मेरी शादीशुदा बहन की जिंदगी से निकल जा नहीं तो कनपटी उड़ा दूँगा। पहली बार सास को भीगी बिल्ली बनी देख रही थी क्योंकि पानी वहीं समाता है जहाँ झील होती है। आज शेरनी की भाँति दहाड़ने वाली सास की जुबान पर ताला लगा था। तृप्ति चुपचाप दृश्य निहारने के अलावा क्या कर सकती थी। सबूत के तौर पर उसने मैसेज दिखा दिये। सास की बोलती बंद और तृप्ति के तोते उड़ गये इतनी अश्लील बातें तो पति पत्नी के बीच भी नहीं होती। वास्तव में यह कहावत गलत है कि प्रेम अंधा होता है। सच तो यह है कि प्रेम तो बहुत पवित्र होता है वासना अँधी होती है।

     मन ने तो चेतावनी दे दी कि ऐसे व्यक्ति के साथ रहना गलत है, जो कामांध है चरित्रहीन व्यक्ति की कथनी करनी एक नहीं होती। झूठ उसका सबसे बेहतरीन हथियार होता है। ऐसे व्यक्ति उस भ्रमर के समान है जो फूल का रस पीकर उड़ जाते हैं उन्हें दूसरों की भावनाओ से कोई लेना-देना नहीं। परिवारजन ने भी तृप्ति को विनायक से अलग होने का सुझाव दिया लेकिन तृप्ति उसके साथ सावित्री बनकर खड़ी हो गई। उसने मन में प्रतिज्ञा की कि वह अपने पति को कुमार्ग से हटाकर सुमार्ग पर ले आएगी तभी तो धर्मपत्नी के गौरव को प्राप्त कर सकेगी।

     तन मन से समर्पित तृप्ति सोच नहीं सकती थी कि विनायक दो बच्चों का बाप होकर भी चरित्रहीनता की सारी सीमाएं पार कर सकता है। घर में आने-जाने वाली राफिला खान का आना-जाना बहुत बढ़ गया। तीज त्योहार हो, जन्मदिन हो, भजन कीर्तन हो वो घर में आकर बैठ जाती और फिर जाने का नाम ही न लेती। इस लिव इन रिलेशनशिप की परम्परा ने विवाह की पवित्रता को नष्ट कर दिया है। कानून ने इस संबंध से उत्पन्न हुए बच्चों को समान अधिकार देकर स्त्री-पुरुष को अनैतिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कर दिया है । लीव-इन-रिलेशनशिप कानून ने भी भारतीय परम्परागत सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब कानून की तलवार सिर से हट गई। विवाह सात जन्मो का बंधन नहीं,पवित्र बंधन नहीं। अय्याश लोगों के लिए सुगम साधन बन गया और नैतिक लोग उनके कर्मों का दंश झेल रहे थे। विधर्मी लाभ उठा रहे थे। जुड़वा बच्चों के पिता विनायक के बारे में भली भांति जानते हुए भी राफिला ने चील की भांति विनायक को दबोच लिया। वह बच्चों के जन्म पर,जसूटन पर भी आई थी। लेकिन आज की महिला-पुरुष को विवाहित स्त्री-पुरुष ही पसंद आते है। पहले विवाह की पवित्रता का सम्मान करते हुए प्रेमी प्रेमिका स्वयं रास्ते से हट जाते थे। दोनों की गतिविधियों से केवल तृप्ता परेशान रहती थी। रिटायर्ड सास अब जिन्दगी को इन्जॉय करना चाहती थी। कर्तव्य बोध का दूर-दूर भी नामोनिशान नहीं था। व्हाट्स अप पर देर देर तक बातें करना, फेसबुक देखना, रील्स देखना उनका शौक बन गया । वैसे भी मोबाइल ने व्यक्ति को जितना दिया है उससे अधिक छीन लिया है। जितना लोगों को पास कर दिया है उतना ही सामने बैठे हुए लोगों को दूर कर दिया है। बच्चा हो,जवान हो या बूढ़ा हो; सभी के मनोरंजन की सामग्री मोबाइल में है। जितना ज्ञान परोस रहा है उतनी अश्लीलता भी। मोबाइल जब हाथ में हो तो सामने बैठा व्यक्ति भी नजर के सामने से गायब। तृप्ति की सास भी मोबाइल ऐडिक्ट। छोटे शहर से आई कम्मो को आधुनिकता की चकाचौंध में अब दोनों बेटो के दोष दिखाई नहीं देते थे। 

   छोटे बेटे ने एक बंगाली लड़की से प्रेमविवाह किया। शादी के तीन वर्ष बीत जाने पर एक बच्चे का पिता होने पर भी काल सेंटर में अपनी बोस से दिल लगा बैठा। माँ ने पीर फकीर,मुल्ला मौलवी,पंडित ज्योतिषाचार्य की ड्योढी पर खूब नाक रगडी लेकिन कुछ नहीं हुआ। पत्नी ने गुस्से में तोड़फोड़ कर, गाड़ी ठोंककर, हारपिक पीकर, वाॅशबेसिन तोड़कर अपना गुस्सा,अपना अवसाद निकाला। आपसी समझौते से तलाक होने के बाद भी फिर दोनों का वैवाहिक जीवन प्रारम्भ हो गया। अब अजीब हो गयी थी समाज की कहानियाँ। लिव इन रिलेशनशिप ने प्रेम के नाम से अब वासना को खुलकर तांडव करने का अवसर दे दिया था।

    एक दिन विनायक ने भी खुलकर घोषणा कर दी कि उसने जाॅब छोड़कर राफिला के साथ वैन में नॉनवेज का बिजनेस आरंभ कर दिया है। लेकिन कुछ दिनों बाद वैन खटारा बनकर खड़ी थी। अब दोनों ने मिलकर नॉनवेज का रेस्टोरेंट खोल लिया। रेस्टोरेंट क्या दोनों का साथ-साथ रहने का बहाना था। वैसे तो नॉनवेज का बिजनेस होने के कारण घरवाले नाराज थे लेकिन व्यापार उन्नत हो रहा है सोचकर खुश थे क्योंकि अक्सर रात के कभी बारह बजे,कभी दो बजे मोबाइल पर संदेश आ जाता था कि ग्राहक अधिक हैं मैं घर नहीं आ सकूंगा। जुड़वा बच्चों को अकेली तृप्ता संभालती,अक्सर रात आँखों में ही कट जाती। कोई बच्चा पलंग से गिर जाता। दोनों एक साथ रोते तो चुप कराना मुश्किल। अक्सर एक रोता,तो दूसरा सोता हुआ भी जागकर रोने लगता । एक बच्चे की लैट्रिन साफ करती दूसरा चिल्लाए जाता। न सास का सहारा न पति का साथ और तब तृप्ता के मुँह से निकल जाता कि नींद भी नहीं है भाग्य में। वास्तव में वह सुहागन विधवा का जीवन जी रही थी। अमीर घर की चारदीवारी में बंदिनी का सा जीवन। लेकिन उसे विश्वास था कि एक दिन उसका पति लौट आएगा।

     एक वर्ष बाद पता चला कि रेस्टोरेंट में लाखों रुपए बर्बाद हो गए। वास्तव में वह रेस्टोरेंट नहीं, साथ रहने का सार्थक बहाना था। बिजनेस के ठप्प होने पर सास ने खरी खोटी सुनाई। सोलह लाख रुपए माँ के बिजनेस में स्वाह कर दिए थे तीन लाख रुपए तृप्ति के क्योंकि एक वर्ष तृप्ति ने केंद्रीय विद्यालय में अस्थाई अध्यापिका के रूप में कार्य किया था। गर्भवती होने के कारण ए टी एम कार्ड भी पति के हाथ में।

      हारकर विनायक ने फिर किसी एम एन सी कम्पनी में नौकरी कर कर ली। बैंगलोर में पोस्टिंग हो गई। अभी बैंगलोर गए हुए तृप्ति को दो ही माह ही बीते थे कि विनायक पूणे का बहाना कर अपने छोटे बच्चों की जिम्मेदारी पत्नी पर छोड़कर प्रथम लाकड़ाउन से पहले दिन दिल्ली उसी राफिला खान के पास आ गया। मत पूछो केवल कल्पना करो कि एक अनजान शहर में दो माह पूर्व आई दो छोटे जुड़वा बच्चों की माँ ने उन दिनों को कैसे बिताया होगा। बार-बार फोन करने पर, बच्चों की तबीयत खराब बताने पर उसने ऑन लाइन सामान भिजवाने की व्यवस्था कर दी। लेकिन तृप्ति की तबीयत बिगडने पर कोई सुध नहीं ली। सामान भिजवाने के बाद तो उसने फोन उठाना ही बंद कर दिया। तृप्ति की छोटी बहन ने ऑन लाइन दवा की व्यवस्था की। माँ-बाप की, भाई-बहनों की जान अटकी पडी थी। जब प्रत्येक व्यक्ति अपने परिजनों के बारे में चिंतित था,अपनो की सलामती के लिए प्रार्थना कर रहा था विनायक अपनी प्रेमिका के साथ रंगरेलियां मनाने में व्यस्त था। तीन माह बाद जब वापिस पहुँचा तो तृप्ति ने पलक पांवडे बिछा दिये पति के स्वागत में। यू ट्यूब पर रेसिपी पढ़कर नई- नई डिश बना डाली। भ्रम टूट गया सत्य उजागर हो गया जब राफिला का फोन आया। वह विनायक से लड रही थी। न जाने क्या सोचकर विनायक ने फोन तृप्ति के हाथों में दे दिया और राफिला ने सारा राज उसके कानों में उडेल दिया। सुन तृप्ता के होश उड गये,पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। वह घायल शेरनी की भाँति पति पर टूट पड़ी लेकिन हृष्ट-पुष्ट विनायक ने प्रहार पर प्रहार कर उसे अधमरा कर दिया। फोन पर सूचना देने पर माता-पिता ने 112पर फोन करने को कहा लेकिन तृप्ता के कोमल हृदय में अब भी पति के लिए सोफ्ट कार्नर सुरक्षित था। चतुर चालाक सास ने आनन फानन में अपने छोटे बेटे से तत्काल एअर टिकट करा तृप्ति को दिल्ली बुला लिया। एअर पोर्ट से जाकर माँ-बाप उसे घर ले आए। दोनों मासूम बच्चे तिनके की भाँति काँप रहे थे। लेकिन नाटकखोर पति ने अपनी चालाकी के मोहरे फेंककर तृप्ता का दिल पिंघला दिया। माफी,रोना-धोना, आत्महत्या की धमकी से प्रभावित हो तृप्ति ने माता-पिता को पुलिस में शिकायत और कानूनी कार्रवाई करने से रोक दिया।

      सास, देवर, और देवरानी मनाने आई और रेगिस्तान की शुष्क धरती में मीठा झरना खोजने की तृष्णा में तृप्ति फिर छली गई। शातिर विनायक के पास अब धोखा देने का अच्छा बहाना था। आई टी क्षेत्र में कार्यरत सभी वर्क फ्रोम होम कर रहे थे लेकिन उसने ऐलान कर दिया कि उसकी नाईट ड्यूटी है। उसने तृप्ति पर भी सर्विस का दबाव यह कहकर बनाया कि कम्फर्ट जाॅन से बाहर निकलो। बेचारी गृहस्थी बचाने के लालच में इस शर्त को मान गई। विनायक को मौका मिल गया।अब बच्चे स्कूल जाने लगे। बच्चे दिन में अपने पिता के पास रहते, रात को तृप्ति के पास। विनायक और तृप्ति केवल नाम के लिए साथ रहते थे। मिलते कभी न थे। विनायक के आने से पहले वो घर से ऑफिस के लिए निकल जाती और तृप्ति के आने से पहले वो नाइट ड्यूटी के नाम से आफिस के लिए निकल जाता। ऐसा नहीं तृप्ति बेवकूफ थी या उसके माता-पिता अनजान थे कि वे विनायक के बारे में न जानते हो लेकिन उसके अटूट, असीम प्रेम व दृढ़ विश्वास ने उनके पैरों में बेड़ियाँ डाल दी। सबको पता था कि वह नाईट ड्यूटी के नाम से कहाँ जाता है, कहाँ रहता है। एक बार महिला थाने में शिकायत करने पर भी बेटी तृप्ति ने उन्हीं पर रायता फैलाने का आरोप लगा दिया। इसलिए माता-पिता सब कुछ जानते हुए अंधे गूंगे बने हुए थे। लेकिन सती सावित्री का विश्वास जब धराशाई हो गया जब एक दिन जल्दी में वह अपना जी मेल लाॅग आउट करना भूल गया और तृप्ति को कुछ काम करना पड़ा। लेकिन एक मेल पढ़ते ही उसकी हालत खराब हो गई वह अपना काम करना भूल गई। वह जैसे जैसे मेल पढ़ती गई सुबूत मिलते गए। उसकी साँसे धोकनी की भाँति उठा पटक करने लगी। वह सबूतों के अभाव में विश्वास नहीं करना चाहती थी आज सबूत भी उसके सामने थे। विनायक और राफिला का एक बेटा था। जिस अस्पताल में बच्चा पैदा हुआ, जहाँ उसका इलाज चला सब सबूत। अब तो तृप्ति का विश्वास चकनाचूर हो गया। उसकी प्रतीक्षा समाप्त हो गई। उसका विश्वास टूट गया था। उसने बच्चों को साथ लिया और मायके में आ गई। लेकिन उसने अलग घर लिया। अब उसे किसी की प्रतीक्षा नहीं थी। राफिला नामक चील उसके विनायक नामक क्रोंच को हमेशा के लिए लेकर उड़ गई थी। और इन परिस्थितियों से समझौता करना अब आत्मसम्मान को बिलकुल नहीं था।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy