आत्मा का आत्मा से मिलन
आत्मा का आत्मा से मिलन
आज पूरे पांच साल बाद मेरठ शहर में मेरा आना हुआ। इण्टर पास करने के पश्चात यहीं के कालिज से बी टेक करने का निर्णय लिया। बी टेक इन्स्टीट्यूट के लिए मुझे अपने कस्बे खतौली से प्रतिदिन रेलगाड़ी से आना-जाना पड़ता था। बी टेक का तीसरा साल पूरे हो चुका था । मैं अपने घर जाने के लिए प्रतिदिन की भांति स्टेशन पर रेलगाड़ी की प्रतीक्षा कर रहा था तभी मेरी निगाह बैंच पर विराजमान एक लड़की पर पड़ी। लड़की शब्द तो उसके लिए अति साधारण सा था वह तो परिलोक की अप्सरा सी थी। मन इतना पगला गया न उससे बात की न नाम पूछा अनगिनत स्वप्न सजा लिए। न जाने मन कहां से कहां उड़ा और दिल ने उसे कब अपनी मंजिल मान लिया पता ही नहीं चला। मैं उसके पास गया “आप कहां जा रही है?“ मैंने बड़ी विनम्रता से पूछा। कोई भी उत्तर देने की अपेक्षा उसने अपनी बड़ी बड़ी आंखों से मेरी ओर ऐसे घूरा जैसे मैंने कोई अपशब्द कह दिया हो। आगे बात बढ़ाने का विषय ढूंढ ही रहा था कि आने वाली गाड़ी के बारे में एनाउंसमेंट होने लगा। पुरानी दिल्ली से चलकर सहारनपुर वाली गाड़ी शटल में वह बैठ गई। मुझे भी उसी गाड़ी में जाना था लेकिन मैं अपनी मंजिल छोड़कर उसकी मंजिल तक गया । अर्थात खतौली को छोड़कर मुजफ्फरनगर तक गया। गाड़ी में सवार होने से यह लाभ हुआ कि पता चला कि वह मेरठ के आर जी कालिज में बी ए फाइनल की छात्रा है नाना नानी के साथ रहती है। पन्द्रह दिनों की छुट्टियों में मम्मी पापा से मिलने मुजफ्फरनगर जा रही है । उस दिन मैं अपने घर रात को बहुत देर से पहुंचा।
समय बीतता गया लेकिन वह मन पर छाई रही। एक साल बाद मेरी बी टेक पूरी हो गई और इंस्टीट्यूट से ही प्लेसमेंट मिल गया। एक एम एन सी कम्पनी में बैंगलुरू में जाब लग गई। वहाॅं एक भी दिन ऐसा नहीं गया जब उसकी याद साया बनकर मेरे मन मस्तिष्क से न लिपटी हो। अब माता-पिता विवाह पर जोर देने लगे थे । घर अच्छा था जाॅॅब अच्छी थी अत: रिश्ते भी अधिक और अच्छे घरों से आ रहे थे। लेकिन मन मृगतृष्णा के कारण सूखे रेगिस्तान में इधर-उधर भटक रहा था।और दूर तक फैले विशाल रेगिस्तान में मीठे पानी की झील ढूंढ रहा था। माॅं तो कई बार रूष्ट भी हुई। सर्विस करते हुए भी चार साल बीत गए थे । आज माॅं ने अपना आखिरी सबसे प्रभावी आंसुओं का ब्रह्मास्त्र चला दिया था । इसके वार को तो मैं भी नहीं झेल पाया और चुपचाप माॅं के सम्मुख आत्मसमर्पण कर विवाह के लिए हाॅं कर दी। आज इसीलिए घर जा रहा था क्योंकि घर पर देखने के लिए लड़की वाले आ रहे थे।
जैसे ही गाड़ी मेरठ स्टेशन पर आकर रुकी मेरी आंखें अनायास ही मृगतृष्णा के कारण और स्वाभावनुसार उसी बेंच की ओर चली गई जहाॅं पर मैंने उस लड़की को बैठे हुए पहली बार देखा था । मैं मन की कमजोरी के कारण पूरे साल रेल में बैठे -बैठे उस बैंच को बड़ी लालसा से देखा करता कि शायद ईश्वर की कृपा से दर्शन हो जाएं। हर बार निराशा ही हाथ लगी। लेकिन आज आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि वह इतिहास रूप बदलकर फिर सामने उपस्थित हो रहा है । लड़की आज फिर इस बेंच पर बैठी हुई थी फर्क इतना था कि आज उसके साथ दो बच्चे भी बैठे थे । चेहरे पर वो पहले वाला आकर्षण नहीं था। रंग भी थोड़ा सा सांवला हो गया था। आंखों में चमक की जगह उदासी ने ले ली थी। लेकिन फिर भी उसमें इतना सम्मोहन था कि मैं अपनी आगे की यात्रा को स्थगित करके झटपट ट्रेन से उतरा और उसके पास पहुॅंच गया । उसके पास बेंच पर बैठते हुए ही मैंने उससे कहना शुरू किया आप मुझे शायद नहीं जानती लेकिन मैं आपको भली भांति जानता हूॅं । मैं आपसे एक बार पहले भी इसी स्टेशन पर मिल चुका हूॅं ।आज से पूरे पांच साल पहले जब आप मेरठ से बैठकर मुजफ्फरनगर तक इसी ट्रेन में गई थी। और एक लड़के ने आपसे पूछा था आप कहाॅं जा रही हो आपने उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया था मैं वही लड़का आज फिर आपसे पूछता हूं कि आप कहाॅं जा रही हैं ? आपका नाम क्या है? उसने फिर अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से मेरी तरफ देखा लेकिन आज उसके देखने में वह भाव नहीं था जो उस दिन था । आश्चर्य की बात है उसकी मोटी मोटी आंखों में छोटे-छोटे से आंसू टपकने लगे। जिन्हें वह छिपाने का असफल प्रयास कर रही थी।पनीली आंखों को देखकर मेरा हृदय द्रवित हो गया। मैंने पूछा क्या बात है ? वह कुछ नहीं कह कर फिर खामोश होकर बैठ गई । मैंने फिर उसको टटोलने का प्रयास किया और कहा किसी से बात करना अपराध नहीं है। मुझसे डरने की कोई आवश्यकता नहीं। मैं भी एक इंसान हूॅं। मैं केवल अपने घर जा रहा हूं और मेरे रिश्ते वाले आए हुए हैं । आपसे कुछ सलाह लेना चाहता हूॅं । मैं आपका ही नहीं सभी नारियों का शुभचिंतक हूॅं और सबका बहुत सम्मान करता हूॅं । आपकी मुख मुद्रा बता रही हैं कि आप परेशान हैं । चाहे तो आप अपने दिल का हाल बता सकती हैं। शायद आपके कुछ काम आ सकूं। लड़की ने काफी संकोच के बाद अपना कष्ट बता दिया। लड़की थोड़ी सी असहज होकर बोली मेरा नाम शर्मिष्ठा है और मैं मुजफ्फरनगर की रहने वाली हूं । मेरा विवाह आज से तीन साल पहले दिल्ली में एक इंजीनियर के साथ हुआ था । हमारी गृहस्थी अच्छी चल रही थी। लेकिन एक सड़क हादसे में वह हम सबको छोड़कर चले गए। ये मेरे दो जुड़वां बच्चे हैं। और मैं अब अपने मायके में अपने माता-पिता के साथ रहती हूॅं । एक प्राईवेट स्कूल में नौकरी करती हूॅं। ससुर तो पहले से ही नहीं थे। छः महीने पहले सास भी ईश्वर को प्यारी हो गई। वहाॅं बच्चों को देखने वाला कोई नहीं है । यहाॅं मेरी मम्मी देखभाल कर लेती हैं। बच्चों को क्रैच में छोड़ना मुझे पसंद नहीं और न ही मेरी हैसियत। इतना कहकर वह चुप हो गई और उसकी आंखों में दो मोटे-मोटे आंसू भर आए । मेरा साहस अब कुछ बोलने का नहीं हुआ । लेकिन मैंने अपने मन की सारी ऊर्जा एकत्रित करते हुए कहा शर्मिष्ठा जी आप शायद कुछ रिश्तो के बारे में नहीं जानती । वह आत्मा के रिश्ते होते हैं। मन के रिश्ते होते हैं और उनको केवल मन से पहचानने की आवश्यकता होती है। आपका और मेरा रिश्ता भी कुछ ऐसा ही है। मुझे नहीं जानती मैं आपका पुजारी हूं । मैंने आपको केवल एक बार देखा था और मैं आपके सौंदर्य से भी और साथ-साथ आपके व्यक्तित्व से भी प्रभावित था और इतना प्रभावित कि आप मुझे पागल कहेंगी या दीवाना। इतना दीवाना कि आपके बारे में जाने बिना, आपकी इजाजत के बिना आपके लिए इतना पावन प्रेम मेरे हृदय में आपके लिए हिलोरें मारता है कि शायद उसकी तुलना किसी भी प्रेम से नहीं की जा सकती। मैं आपके विषय में और अधिक जानना भी नहीं चाहता बस यदि आपकी सहमति हो तो आपको अपनाना चाहता हूॅं। मुझे पता है आप मेरी बात पर विश्वास नहीं करेंगी । क्योंकि प्रेम करने के लिए भी एक दूसरे को जानना बहुत जरूरी है। लेकिन मेरा मानना है कि कुछ प्रेम आत्माओं का संबंध होता है इसलिए उसमें एक दूसरे को जानना भी आवश्यक नहीं है ।
लड़की अब धुआंधार रोने लगी थी । रोने की वजह से उसका गला रूंध गया था और वह बात नहीं बता पा रही थी फिर भी उसने बोलने का प्रयास किया और कहा कि मेरे भाग्य को अब कोई भी नहीं संवार सकता । क्योंकि मैं विधवा हूॅं । ये मेरे बच्चे बहुत ही अभागे हैं क्योंकि ये इतनी छोटी उम्र में ही लावारिस हो गए हैं इसलिए इन दो बच्चों का भविष्य का दायित्व मेरे ऊपर है जिसे मैं सहर्ष जिम्मेदारी से निभाऊंगी । मेरी विवाह के बारे में अलग राय है। मैं जानती हूॅं मुझे पति मिल जाएगा। प्यार करने वाला या हो सकता है न प्यार करने वाला केवल पत्नी की आवश्यकता वाला, लेकिन इन दोनों बच्चों को पिता नहीं मिलेगा। जब असली पिता ही नहीं रहा तो अपने भाग्य पर कैसे विश्वास करूं।
मैंने उसको उंगली से चुप रहने का आदेश देते हुए कहा कि तुम एक बार विश्वास करके देखो । तुम्हारे साथ ऐसा हादसा हुआ है जिसके कारण तुम किसी पर भी विश्वास नहीं करोगी। न अपने भाग्य पर न ईश्वर पर। लेकिन एक बात मेरी ध्यान से सुनो। सड़क पर चौबीस घंटे एक्सीडेंट होते रहते हैं लेकिन उन एक्सीडेंट के डर के कारण लोग सड़क पर चलना तो नहीं छोड़ते । यह तो निराशा की पराकाष्ठा है। मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूॅं । तुम्हारी पूजा करता हूॅं और तुम्हारे दुख को मैं अपना दुख मानता हूॅं यदि तुम्हारे दुख को कम करके मैं तुम्हारे जीवन में खुशी ले आया तो मैं अपने जीवन को सार्थक समझूंगा । शायद ईश्वर को भी यही स्वीकार हो। तुम विश्वास नहीं करोगी मैंने शादी को हाॅं ही नहीं की। माॅं का मन रखने के अपने आप से समझौता करने जा रहा था कि आज मुझे तुम मिल गई। क्या इसे आप ईश्वर की स्वीकृति नहीं मानती । इन दो बच्चों को मैं अपना नाम दूंगा । इनकी जिम्मेदारी मैं अपने ऊपर लूॅंगा और यदि मेरे पर विश्वास ना हो तो मैं आज ही अपना परिवार नियोजन का ऑपरेशन करा कर तुम्हें आश्वस्त करता हूॅं । लड़की एकटक मुझे देखे जा रही थी लेकिन मेरी आंखों में शायद उसे सच्चाई दिखाई दी हो और उसने मेरे हाथ पैर हाथ रख दिया । उस दिन मुझे विश्वास हो गया कि वास्तव में सच्चे प्यार में बहुत आकर्षण और अटूट रिश्ता होता है अगर हम सच्ची लगन, प्यार से ईश्वर को भी खोजें तो वह भी हमें अवश्य मिल जाएगा ।
मुझे अपनी मंजिल मिल गई। मैं पहले उसके घर गया उसके माता-पिता से हाथ मांगा। फिर अपने माता-पिता का आशीर्वाद लिया । प्यार जीवन में केवल एक बार होता है। उसमें कोई शर्त नहीं होती । केवल समर्पण होता है और होता है विश्वास। आज प्रेमी साथ रहकर एक-दूसरे का परीक्षण करते हैं तभी तो उनका प्रेम सफल नहीं । प्रेम दो आत्माओं की पुकार है, दो आत्माओं का मिलन है। प्रेम व्यापार नहीं। प्रेम समझौता नहीं। आज के लोगों ने प्यार को मजाक बना दिया है। जब किसी से सच्चा प्यार हो तो उसकी हर परिस्थिति को स्वीकार किया जाता है।