बाडी फिगर
बाडी फिगर
शाम के छ: बजे जैसे ही सान्या ने घर में प्रवेश किया मोबाइल फोन ने बजकर अपनी उपस्थिति का फिर से भान करा दिया। सान्या झल्ला उठी। ऑफिस में इतना काम होता है कि शरीर का अंग-अंग ढीला हो जाता है। सारे दिन लैपटॉप पर गडाये- गडाये आँखें इतनी थक जाती है कि घर आकर टी वी की ओर देखने की हिम्मत नहीं होती। कुर्सी पर बैठे- बैठे कमर इतनी अकड जाती है कि घर आते ही सबसे पहले बैड ही दिखाई देता है।सरकारी नौकरी करने वाले जरा मल्टी नेशनल कम्पनी में नौकरी करके दिखाए नानी याद आ जाएगी। और कर्मठ होने का अर्थ समझ आ जाएगा। फोन की ओर निगाह मारी तो देखते ही सान्या की भोंहे तन गई, मुट्ठियाँ भिंच गई। उसने कॉल पूरी होने से पहले ही फोन काट दिया और घर में घुसते ही फ्रिज खोला,एक गिलास पानी गटागट पिया और बैड पर जाकर पसर गई। लेकिन उसका ध्यान बलात ही फिर फोन पर चला गया उसे पता है कि फोन नहीं बज रहा लेकिन उसके कानों को घंटी का अहसास हो रहा है।सास का फोन था। उसे पता था पहले सास माता आशीर्वाद का शहद टपकाएँगी फिर दो-चार ईधर- उधर की बातें करेंगी और अन्त में वही सडी- गली डिमांड रखेंगी" बेटा! मुझे खेलने के लिए एक खिलौना दे दे। लडका हो या लडकी कुछ भी चलेगा अन्तत: वह सोचने पर मजबूर हो गई। उसने महसूस किया कि उसकी सास ठीक ही तो कहती है उसकी शादी को पाँच साल हो गए वो अभी तक घर को एक चिराग नहीं दे पाई थी। तीन साल तक तो सास भी चुप रही यही सोचकर कि बच्चों को घूम फिर लेने दो गृहस्थी के जंजाल में एक बार फँसेगी ते फिर निकल नहीं पाएगी। जब सास ने पहली बार दबी जुबाव से पोता या पोती देने की फरमाइश की तो सान्या ने हँसकर टाल दिया " मम्मी अभी तो हम ही बच्चें है पहले अपने इन्हीं बच्चों को सँभाल लो जो आपके सामने है औरों का क्या करोगी ? सास चुप रह गई थी जबकि वो भलीभाँति जानती थी कि वो सही नहीं कह रही हैं क्योंकि वह जानती थी कि अच्छे वर की तलाश में बत्तीस वर्ष की आयु में उसका विवाह हुआ है।
जब लडकी की शिक्षा ऊँची हो ऊपर से सर्विस भी अच्छी हो तो बराबर का लडका मिलना टेढी खीर हो जाता है।
एक दिन सास ने फिर दोहराया"बच्चे होने की भी एक उम्र होती है। हर काम समय पर ही अच्छा होता है और दो- चार साल में चालीस की हो जाओगी। जब शरीर ज्यादा पक जाता है तो पहला बच्चा बडी मुश्किल से होता है। और यदि कोई शारीरिक समस्या है तो डॉक्टर से एक बार चैक अप करा लेते हैं।
यह बात सान्या को चुभ गई। सान्या भलीभाँति जानती थी कि वो फिजिकली बिल्कुल फिट है। लेकिन वह यह भी भलीभाँति जानती थी कि बच्चे होने से बॉडी फीगर खराब हो जाता है।
उसे अपने बॉडी फीगर से बहुत लगाव था। कॉलिज में, अपने शहर में, अपने स्टेट में ब्युटि कॉन्टेस्ट जीतकर मिस स्टेट का खिताब जीत चुकी थी। उसका पति ,उसकी सास,तथा अन्य रिश्तेदार भी उसकी सुन्दरता के प्रशंसक थे।
दिन बीतते जा रहे थे अब सास का प्रेशर बढ रहा था। पति की भी ईच्छा थी। एक दिन सास ने दोनों को बैठाकर साफ- साफ कहा "आजकल टेस्ट- ट्यूब बेबी की भी पद्यति है। इस साल बच्चा चाहिए कुछ भी करो । हमारे सब्र की परीक्षा मत लो तुम हमारे इकलौते बेटा - बहू हो ।" अब सान्या मन की बात कैसे बताए। एक दिन सान्या ने मन ही मन फैसला ले लिया और सेरोगेसी से बच्चा पैदा करने की ठान ली । उसने डॉ से बात की । डॉ ने स्पष्ट शब्दों में समझाया--" सेरोगेसी से बच्चा पैदा जब करना पडता है जब माँ का शरीर बच्चे को पूर्णरूप से गृहण करने में असमर्थ हो। समझ लीजिए जैसे कोई बरतन छोटा हो और उसमें बनने वाली सामग्री ज्यादा हो। अत: बच्चे के माता- पिता वही रहते हैं लेकिन किसी और की कोख में भ्रूण को विकसित किया जाता है । मैंने तुम्हारा चैक अप कर लिया है तुम बिल्कुल स्वस्थ हो, माँ बनने के योग्य हो। मातृत्व के सुख से क्यों वंचित होना चाहती हो। माँ बनने का सौभाग्य तो अलग ही सुख देता है।" सुनकर सान्या को बडा गुस्सा आया । मन तो कर रहा था सुना दे खरी- खरी। ऐसा ही उपदेश देना है तो हॉस्पिटल क्यों खोल रखा है। ऊँह बडी आई मातृत्व का उपदेश देने वाली।
अगले दिन भी उसका मूड ऑफ था। सुनील से बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी यही सोचकर कि पता नहीं वो क्या सोचेगा। ऑफिस में उसकी सहेली सुबह से ही उसका मूड भॉप रही थी । लंच होते ही उसने पूछ लिया। सान्या तो बात करने के मूड में जैसे पहले से ही बैठी थी। थोडी सी ना-नुकड के बाद ही फट पडी-" अच्छा एक बात बता पल्लवी अगर हमें कोई सुविधा उपलब्ध है तो क्या हमें उसका लाभ नहीं उठाना चाहिए?"
"बिल्कुल उठाना चाहिए। किसी चीज की सुविधा होने पर लाभ न उठाना तो बेवकूफी है। लेकिन तुझे कौन रोक रहा है?--------- सुनील?"
ऊँहू -------उससे बात नहीं की अभी।
तो उससे बात कर ना।
हाँ सोच तो रही हूँ, लेकिन डर लगता है। डर शब्द सुनकर पल्लवी मुस्कराने लगी।
"डर और तुझे! तेरे मुँह से पहली बार ऐसी बात सुन रही हूँ । तुझ जैसी बोल्ड, बिन्दास से तो डर भी डरता है।"
और ऐसा कहकर पल्लवी हँसने लगी लेकिन सान्या की मुखमुद्रा देखकर उसने सकपका कर अपनी हँसी को रोक लिया। "हूँ अगर तुझे डर लग रहा है तो वास्तव में कोई गम्भीर बात होगी ।बता क्या बात है?"
सान्या ने स्पष्ट रूप से अपनी सारी समस्या बता दी।
उसकी समस्या सुनकर पल्लवी की मुखमुद्रा गम्भीर हो गई फिर भी वह साहस जुटाकर बोली --" समस्या है नहीं ,समस्या तूने बना ली। कितने भी मॉडर्न हो जाएँ । युनिवर्सल ट्रूथ तो युनिवर्सल ही रहता है । बच्चे को जन्म तो औरत ही देती है। एक औरत अपने इस दायित्व से कैसे मुँह मोड सकती है? ईश्वर ने सृष्टि के संचालन में बहुत बडा दायित्व स्त्री के कंधों पर सोंपा है। और इससे मुँह मोडना भगवान के ऑर्डर को डिनाइ करना है।
अरे जन्म तो उसे औरत ही देगी मैं नहीं तो कोई और देगी।
लेकिन यह सौभाग्य तू प्राप्त करना क्यों नहीं चाहती?
अरे इतना कष्ट कौन झेले जिसकी कल्पना करके ही रूह काँप जाती है ।और जब थोडा सा पैसा खर्च करके हम बिना किसी तकलीफ के अपना मनवाँछित फल प्राप्त कर सकते है तो बिन बात का पंगा क्यों मोल लूँ। सेरोगेसी से भी बच्चा तो हमारा ही होगा सान्या और सुनील का। कहकर सीन्या हँस पडी। लेकिन पल्लवी अभी भी गम्भीर थी और शून्य में ताक रही थी।पल्लवी की कोई प्रतिक्रिया न देखकर सान्या ने फिर टोका--अपनी कुछ तो राय दे। मैं ठीक हूँ न? सुनकर पल्लवी तपाक से बोली "नहीं, तू ठीक नहीं हैं। तू स्वयं ही दूसरों से सलाह माँगती है लेकिन अपनी ही विचारधारा को सही ठहराती है। हर आदमी को अपने से प्यार होती है । वह देखना चाहता है कि उसका बच्चा यानि उसका प्रतिरूप, उसकी छाया कैसी होगा, उसकी शक्ल-सूरत, उसकी बुद्धि,उसकी अदाएँ।
अरे तू कैसी बात कर रही है। तू समझती क्यों नहीं ? कोख ही तो दूसरे की होगी ,अंश तो हमारा ही होगा।
फिर हमारे ही तो गुण आयेंगे।
तू हल्के में ले रही है इस मामले को। अरे नौ महीने तक बच्चा माँ की कोख में पलता है। कहते है माँ को अच्छा सोचना चाहिए, क्रोध नहीं करना चाहिए, अच्छी साहित्यिक, धार्मिक और प्रेरणादायक पुस्तकें पढनी चाहिए, जैसा माँ सोचती है वैसा बच्चे पर असर पडता है। वैज्ञानिको ने इस पद्यति की खोज जिम्मेदारी से भागने के लिए नहीं की, तुझ जैसी स्वस्थ और समर्थ स्त्री के लिए नहीं की बल्कि उन के लिए की है जो असमर्थ है। विज्ञान में कमी नहीं हैं हमारी सोच में कमी है। हमारे उपयोग करने के तरीके में कमी है।
हमारे उपयोग के कारण ही विज्ञान वरदान नहीं अभिशाप बन जाता है।
अब देखो न समाज में कितनी गलत परम्परा का प्रारम्भ हो गया है और इसका प्रारम्भ भी कोई छोटे लोग नहीं कर रहे बल्कि समाज के जिम्मेदार लोग कर रहे हैं । हीरो हीरेइन सेरोगेसी से बच्चा प्राप्त कर रहे है । विवाह जैसे पवित्र बंधन से छुटकारा। किसी बच्चे के पास माँ नहीं है, किसी बच्चे के पास बाप नहीं है।
माता- पिता दोनों ही बच्चे के जीवन में प्राणवायु की भाँति होते हैं । दोनों में से किसी का भी कम महत्व नहीं होता । उन बच्चों से पूछो जिनके माँ नहीं होती माँ को भगवान से भी ऊँचा स्थाान दिया जाता है।
जिस हीरो ने बिन विवाह के सेरोगेसी से पिता होने का गौरव प्राप्त किया है उसने समाज से औरत के अस्तित्व को नकार दिया है । एक बच्चे को माँ रहित जीवन जीने का अभिशाप दिया है । उसने ईश्वर की सत्ता को नकारने का दुस्साहस किया है। ऐसे नकारात्मक कार्य द्वारा लोग समाज में अतुलनीय बनने का भ्रम पालते हैं।लेकिन ----- इन्फैक्ट वो समाज का कितना बडा अहित कर रहे है लो नहीं जानते। दे डेमेज दि सोसाइटी। तुम भी कुछ ऐसा ही करने का प्रयास कर रही हो। कहकर पल्लवी उठकर चलने लगी। उसकी मुखमुद्रा से लग रहा था वह काफी नाराज है। उसे रोकने का मन तो कर रहा था लेकिन आवाज लगाने के लिए जुबान साथ नहीं दे रही थी।
थोडी देर वह जाती हुई पल्लवी के देखती रही। फिर सिर झटका और खडी हे गई। उसके चेहरे पर दृढता थी, मुस्कान थी। उसने सास की ईच्छा पूरी करने का निर्णय ले लिया।