Sudha Sharma

Abstract

4.5  

Sudha Sharma

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तृष्णा

तृष्णा

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 आज फिर बातों ही बातों में प्रदुम्न ने शैल को वही ताना कस दिया -"इससे अच्छा तो तुम मुंबई से ना आती कम से कम घर में शांति तो बनी रहती। " हमेशा हंसी में उड़ा देने वाली शैल आज भड़क उठी-" तुम जब यह कहते थे कि मैं चला जाऊंगा छोड़कर या मैं तो सन्यासी बन जाऊंगा तो भी तो यही सिद्ध करते थे कि तुम्हें मेरी आवश्यकता नहीं है। दूसरे शब्दों में तुम्हारे जीवन में मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। आज बार-बार यही बात पन्द्रह दिन में तुमने पन्द्रह बार दोहरा दी इससे अच्छा तो तुम मुंबई में थी यह भी इसी सोच को दिखाती है कि मैं तुम्हारे से अलग रहूं तो तुम खुश रहते हो अर्थात तुम्हारे कष्ट का कारण मैं हूं ठीक है तुम्हें अकेले रहना पसंद है तो रहो मुझे भी कई बार ऐसा लगता है कि किसी के जीवन में जबरदस्ती घुसना ठीक नहीं क्योंकि प्यार जबरदस्ती प्राप्त नहीं किया जा सकता।" कहकर दोनों खामोश हो गए थे लेकिन शैल के दिमाग में विचारों की लहरें उठ उठ कर मन हृदय के सागर में विलीन हो रही थी। 

आज उसका मन अशांत हो गया था। मन की स्थिति ही ऐसी होती है। कभी मन कई कुंतल हथौड़े की मार झेल जाता है। कभी एक नाजुक फूल मन के जलाशय में तूफान मचा देता है। पति पत्नी के संबंध भी ऐसे ही होते हैं। किसी से कुछ बता नहीं सकते। सामने वाला व्यक्ति या तो मजाक में उड़ा देता है या वासना की चाशनी में डुबोकर देखता है लेकिन पति-पत्नी का सम्बन्ध  भी स्पंदन, स्पर्श की नाजुक छुअन मांगता है। जैसे मां कभी प्यार से अपनी औलाद को  सीने से लगा लेती है  उस जैसी ममता। भाई अपने कंधे लगाकर सिर पर हाथ रख देता है ऐसी सांत्वना। बाप प्यार से कंधे पर हाथ रखता है ऐसा ढांढस।

।कहने को उसके तीन बच्चे थे जो सुखी सफल दांपत्य जीवन का प्रतीक थे लेकिन जैसे वीणा के तारों को बड़े प्यार से  स्पर्श करने पर बड़े मधुर स्वर निकलते हैं और बड़े कर्कश स्पर्श करो तो कर्कश और जोर से मुक्का मारो तो  तार टूट जाते हैं कुछ ऐसा ही प्यार था उसके पति का उसके साथ। शैल एक कवि मन की महिला थी। मतलब बड़े नाजुक मधुर मन की स्वामिनी, लेकिन पति से कभी ऐसा प्यार मिला ही नहीं, जिसमें स्पर्श, स्पंदन ,नजाकत भावनाओं के माधुर्य  का संगम रहा हो। अब तो बीस सालों से ऐसे संबंध थे कि चाहे दो महीने बेटे के पास रहकर लौट आओ या छह महीने बाद।  दो दोस्तों की भांति भी गर्मजोशी से स्वागत नहीं होता था। शैल यदि कभी आलिंगन का प्रयास भी करती तो वह इतना भयानक विरोध करता कि वो हार जाती। क्या यही पति पत्नी का संबंध है? यदि है तो यह शैल को बिल्कुल मंजूर नहीं था। वह तो ऐसे प्यार की तलाश में थी जिसमें मां के स्नेह की रिमझिम बारिश का एहसास हो। पिता के प्यार की सोंधी सोंधी सुगंध भी हो। औलाद के प्यार जैसी आसक्ति हो। शैल अपने पति के प्रेम को प्यार की परिधि से दूर केवल पति पत्नी के संबंध मानती थी जो केवल युवावस्था में पल्लवित पुष्पित होते हैं और वृद्धा अवस्था का पतझड़ आते ही पीले पत्तों की भांति  झड़ जाते हैं जबकि वृद्धावस्था में पति-पत्नी केवल दोस्त बन जाते हैं, सुख दुख के साथी। गंगाजल से पवित्र रिश्ता, फूल और सुगंध सा घुला मिला रिश्ता। यही कारण था कि पन्द्रह दिन पहले दो महीने बाद लौटी शैल को इस बार बार यही ताने छलनी कर रहे थे -"इससे अच्छा तो तुम ना आती वही रहती मुंबई में।कम से कम घर में शांति तो थी।" यह सब  उसे अधिक कष्ट दे रहा था क्योंकि करोना काल में वह अपने बेटे के पास केवल दो दिन के लिए गई थी लेकिन दो माह तक लॉकडाउन में फंस गई थी। शैल को पति की चिंता रात दिन खाए जाती थी कि इस उम्र में इस संकट की घड़ी में बिल्कुल अकेले हैं लेकिन बातों में भी कभी उन्होंने उसकी आवश्यकता का एहसास नहीं कराया जबकि शादी के बाद दो दिन भी मायके में छोड़ना मंजूर नहीं था चाहे कोई कितना भी रोकने का प्रयास करें फिर आज वह आसक्ति कहां चली गई?

 शैल इस लोक डाउन में कभी भी आने की बात करती करती तो बिल्कुल साफ मना कर देते। अंत में भी शैल  ही कोशिश करके, जुगाड़ करके आई थी। पति पत्नी के संबंध भी क्या केवल मतलब की नींव पर टिके होते हैं। 

।इतने भी एक दूजे से दूर न होओ कि दुनिया नीरस लगने लगे। जब तक अपनों के हाथ में अपना हाथ होता है मेला आकर्षक लगता है। हाथ छूट जाए तो मेला भीड़ लगने लगता है। आकर्षक प्रकाश से आंखें चुंधियाने लगती हैं। भीड़, जो मेले के बड़े व भव्य होने का प्रमाण लग रही थी डराने लगती है। भय लगता है कहीं इस भीड़ में खो न जाए कुचले न जाए। थामें रहिए एक- दूसरे का हाथ। किसी को मत एहसास कराइए कि वह अकेला है। पति पत्नी का संबंध कोई युवावस्था का उन्माद नहीं। प्रौढ़ावस्था या वृद्धावस्था में खाना बनाने वाली या घर संभालने वाली मेड़ का नहीं। यह जीवन की एक ऐसी खाई है जिसे कोई नहीं भर सकता। युवावस्था में केवल आकर्षण होता है, उन्माद का ज्वार होता है। वृद्धावस्था में एक दूसरे का सहारा होता है इसीलिए तो हमसफर  और जीवनसाथी कहलाते हैं। माता-पिता छूट जाते हैं। भाई भाभी बहनें सब रिश्तेदार बन जाते हैं। बच्चे अपनी अपनी मंजिल ढूंढने के लिए देश परदेश विदेश उड़ जाते हैं, लेकिन पति-पत्नी के रिश्तो की डोर तो आजीवन बंधी रहती है।

शैल सोच रही थी और साथ-साथ अपना सामान पैक कर रही थी। बाहर से आए पति ने फिर पूछ लिया -"कहां की तैयारी हो रही है? " शैल ने क्रोध में कोई जवाब नहीं दिया और अपने काम में व्यस्त रही। पति ने दोनों कंधे पकड़ कर फिर अपनी बात दोहराई।आंखों में पानी भरकर शैल ने कहा -"तुम्हारे आजादी स्थाई देने के लिए मैं हमेशा हमेशा के लिए जा रही हूं मैं कभी बेटे के पास कभी भाई के पास रह लूंगी लेकिन अब इस घर में नहीं रहूंगी, नहीं आऊंगी।" कहकर साड़ी के छोर से आंसुओं को पोंछने लगी। "क्या बात कह रही हो तुम ? यह तुम्हारा घर है भाई। भाई का घर तुम्हारा होता तो क्यों मायके वाले इस घर में भेजते। बेटे का घर तुम्हारा होता तो क्यों वह तुम्हें केवल अपनी आवश्यकता पर बुलाता? याद करो उसने तुम्हें दोनों बच्चों के जन्म के समय बुलाया था या बहू बीमार हुई थी तब बुलाया था। बहू ने परीक्षा दी थी तब बुलाया था। इस घर की दीवारों को, इस घर के हर कोने को तुम्हारी आवश्यकता है तुम इस घर की आवश्यकता नहीं बल्कि सांस हो। जिस दिन तुम्हें कुछ हो गया, यह घर घर नहीं मकान बन जाएगा। आज जो हमें बड़े प्यार से सहलाता है तब काटने को दौड़ेगा। अगर यह घर मंदिर है तो तुम इस घर की मंदिर की घंटी हो।दिया हो। बाती हो। आरती हो।मूरत हो। सारी देवियां तुम ही तो समाई हैं। क्यों इस मंदिर को खंडहर बनाना चाहती हो कहते हुए पति ने शैल को अपने सीने से लगा लिया।

" तो फिर तुम मुझे रात- ताने क्यों देते रहते हो कि मैं तो अकेला ही सही था।" पति ने तुननते हुए कहा-" अरे कभी-कभी खाने में जैसे तीखा अच्छा लगता है। खाली मीठे से काम नहीं चलता वैसे ही नोकझोंक एकरसता हटाकर उसमें इंद्रधनुष से रंग भर देती है। इतनी नादान तो तुम नहीं  कि मेरी अंतर्रात्मा की बात  समझ न सको। मैं तो समझता था कि केवल एक तुम ही हो जो मेरे दिल की बात बिन बताए ही सुन लेती हो पर आज वह भरम भी टूट गया।" तभी शैली ने अटैची में से कपड़े निकाल कर सेफ में टंगे हैंगरों में टांगने आरंभ कर दिए। मेरा काम और बढ़ा दिया कहकर काम में जुट गई।


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