शाप का प्रभाव
शाप का प्रभाव
दया नाथ नाम का एक सीधा-साधा बच्चा एक जंगल के किनारे छोटी सी छपरा का घर बनाकर रहता था. 12 साल की उम्र में ही उसके माता-पिता का देहांत हो गया था. सौभाग्य की बात यह थी कि 12 साल की उम्र में ही दया नाथ बहुत ही बुद्धिमान और तेज हो गया था. वह अपने पैरों पर लगभग खड़ा हो गया था. दीनानाथ रोज थोड़ी मोड़ी लकड़ी काट कर लाता बाजार में बेचता और जो कुछ पैसे मिल जाते तो उस से पेट भर का भोजन कर लेता था कभी-कभी तो दया नाथ को भूखे भी सोना पड़ता था. ऐसे ही कुछ महीने बीत गए अब दया नाथ के व्यापार में थोड़ा थोड़ा बदलाव आने लगा था और फिर एक 2 साल बीत गए दीनानाथ अब लगभग 17 साल का हो चुका था और वह कुछ पैसों का मालिक भी बन गया था और फिर 20 साल तक होते-होते दया ना थी बहुत बड़ा व्यापारी बिजनेस में मालिक बन गया था लेकिन मालिक बनते ही दया नाथ की सर पर गुस्सा और घमंड का शौक चल गया था. दया नाथ के पास बहुत ही ज्यादा गुस्सा हो गया था.
एक दिन दया ना तो घूमने जा रहा था कि अचानक सड़क पर आगे से एक बूढ़ी गाय और उसका एक छोटा सा बछड़ा सड़क से गुजर रहा था. यह देखकर दया नाथ को बहुत ही ज्यादा गुस्सा हुआ कि मेरे आगे गाय आ जाए मैं इतना बड़ा आदमी और मेरे आगे से गाय निकलती चली जाए और फिर गुस्से में आकर दया नाथ नहीं गाय से अपनी कार ठोक दी. दया नाथ के तेज होने के कारण दया नाथ के कारण गाय को झटका दिया जिससे गाय तड़प तड़प कर 5 मिनट के अंदर ही मर गई पर सौभाग्य बस उस बूढ़ी गाय का बछड़ा बच गया. बूढ़ी गाय का बच्चा रोने लगा और रोते रोते उसके मुंह से बद दुआएं निकली कि जिस गुस्से के कारण तूने मेरी मां की हत्या की थी उसी गुस्से के कारण 1 दिन तू अपना भी सर्वनाश कर लेगा।
और आखिर यह बात सच हो गई एक दो महीने बाद दया नाथ को पता चला कि उसका पड़ोसी उससे भी बड़ा अमीर है यह बात बयानात से रहा न गया और फिर पड़ोसी के देखी दो ना वह भी अपने पड़ोसी वाला ही धंधा करने लगा वह भी दूध बेचने का काम करने लगा अब तो 2__4 ट्रक उसका दूध आता जाता था सोमवार का दिन आया दया नाथ ने सोचा चलो आज जिंदगी में पहली बार शिवजी की पूजा कराएं क्योंकि शिवरात्रि का दिन आ गया था. उस दिन भी सोमवार था दयानंद ने घर से बाहर देखा तो कार पंचर हो गई थी फिर ध्यान अपनी तरफ से चलने का प्लान बनाया और फिर ट्रक से 10 लीटर लगभग दूध लेकर चल दिया कि शिवजी के ऊपर में चढ़ाऊंगा। दया नाथ ने ट्रक के ऊपर बैठा और फिर ट्रक को लेकर शिव जी को दूध चढ़ाने चल दिया रास्ते में वहीं सड़क आया जहां पर कुछ महीने पहले एक गाय की हत्या दयाराम ने गुस्से से कर दी थी. वहीं सड़क वही जगह पर दयाराम ने देखा कि दो ट्रक दूध से लगे हुए खड़े हैं उनका टायर जो है पंचर हो गया है दयाराम को बहुत ही गुस्सा आया कि कोई इतना दूध चढायेगा ,मुझसे आगे और भी दूध चढ़ाने ही ना पाऊं फिर गुस्से में आकर दयानंद आगे वाले को भी धक्का दिया। खूब जोर- से तेज से धक्का लगने के कारण ट्रक ने आगे वाले ट्रक को धक्का दिया और दोनों ट्रकों के पीछे के दरवाजे खुल गई और दूध का बड़ा बड़ा डिब्बा लुढ़क कर जमीन पर गिर गया और बहने लगा पूरा दूध बह गया दोनों ट्रकों का. लेकिन यह क्या 2 घंटे बाद दयाल नाथ को पता चला कि जिन दो लड़कों को देना कि नहीं गुस्से में ठोकर मार दी है जानकर वह दूध उनका ही था अब तो दयाराम सर पकड़ कर रोने लगा और अपने किए पर पछतावा करने लगा.
दोस्तों इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है कि अमीर बनने के बाद हमें कभी गुस्सा और घमंड नहीं करना चाहिए और गलती से भी गुस्से में कोई कदम नहीं लेना चाहिए क्योंकि गुस्से में लिया हुआ कदम बहुत खतरनाक होता है.