अमीर कौन
अमीर कौन
सामने सेंटर टेबल पर रखा निमन्त्रण पत्र वंदना को अति उत्साहित कर रहा था। यह उसके लाडले भतीजे की शादी का संदेश लेकर आया था जिसकी उसे बहुत दिनों से प्रतीक्षा थी। "इसकी शादी के लिए तो मैं दो अच्छी- अच्छी साड़िया खरीदूंगी।" मन ही मन वंदना बुदबुदा बैठी । चलो बाजार जाने से पहले एक बार अपनी अलमारी में सहेजी साड़ियों पर निगाह मार लेती हूँ किस पर ड्राईक्लीन करानी है किस पर चरख चढवाना या प्रेस करानी है वगैरहा वगैरहा।
अति उत्साह के वशीभूत हो उसने अपनी सेफ खोली और साड़ियों का निरीक्षण शुरू किया वैसे भी यह काम वो अपने पति के आने से पहले ही निपटाना चाहती थी नहीं तो फिर वो कहेंगे - अरे इतनी साड़याँ तो हैं फिर नई साड़ी खरीदकर क्या करोगी वैसे भी तुम साड़ियां पहनती कहाँ हो,वे तो बस अलमारी की शोभा बढाने के लिए हैं। पर उन्हें क्या पता शादी -ब्याह में तो ट्रेडिशनल ड्रेस ही पहनी जाती है और हर शादी में वो ही तो लोग होते हैं । एक शादी से दूसरी शादी में अगर सेम साड़ी पहन लो तो कोई न कोई ताना मार ही देता है - अच्छा यह वो ही साड़ी है न जो तूने बंटी भैया की घुडचढी में पहनी थी । न भाई न मुझे ऐसी बेइज्जती नहीं करानी।
दो साड़ियाँ खरीदूंगी- एक तो घुड़चढी के लिए,और दूसरी बारात के समय पहनने के लिए, ऊहूं बारात के लिए तो लहंहा, लांचा गाऊन या कोई अच्छी सी ड्रेस ले लूंगी।
हैंगर में लटकी साडियों को ईधर- उधर करती है फिर दीवान में रखी साड़यों का निरीक्षण करती है, अरे ये साड़ी तो मेरी शादी के समय की है ठीक है बनारसी साड़ियों का फैशन कभी जाता नहीं लेकिन ज्यादा पुरानी हो गई हैं। और जरी गोटे की साड़ी का अब रिवाज नहीं है । दबके के काम की साड़ी थोडे दिनों पहले शिल्पा की शादी में पहनी थी । शादी में साड़याँ भी तो कई चाहिए। लेडीज संगीत के लिए, मेंहदी फंक्शन के लिए, हल्दी बान के लिए।
तभी गली में एक फेरीवाले की आवाज ने उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया । 'साड़ियों के बदले में बर्तन ले लो ' वंदना को विचार भा गया। बहुत पुरानी साडी देने में क्या फर्क पड़ता है। उसने ऊपर की बालकनी से ही आवाज लगाई और साड़याँ लेकर नीचे तल पर पहुँच गई ,देखते ही एक टब पसंद आ गया " ये टब देना भैया "
पहले साडी दिखाओ बहन जी। सादी साड़ियाँ हैं तो दस साड़ी और कामवाली चार साड़ी।
"भैया ये रही साडी और इसे मैंने केवल एक बार ही पहना है देखो कितनी कीमती साड़ी है ये तो एक ही चलेगी । "
" बहन जी ऐसी दो साड़ी और दीजिए ।एक में तो काम नहीं चलेगा।"
वंदना ने ज्यादा बहस करना उचित नहीं समझा ,चुपचाप गई और एक साड़ी और उठा लाई।" लो भैया और इसके बाद एक भी साड़ी नहीं मिलेगी ये जरी की साड़ी है केवल एक बार पहनी है वो तो रखी - रखी पुरानी सी लगने लगी है। अब तो ऐसी साड़ी बड़ी महंगी आएगी।"
आपकी बात ठीक है बहनजी अब आप हमें नई साड़ी तो दे नहीं सकती रखा - रखा कपड़ा गल जाता है । आपके लिए बेकार है तभी तो आप हमें साड़ी दे रही हैं। एक साड़ी तो और देनी पड़ेगी। वंदना को पता था साड़ी कीमती है अत: वो और साड़ी देने को तैयार नहीं थी और बरतनवाले को भी पता था लेकिन वो एक साड़ी और झटक लेना चाहता था दोनों अपनी - अपनी जिद पर अडे थे कि एक भिखारिन दर पर आ गई जिसकी गोद में एक बच्चा भी था। कपड़े जगह - जगह से फटे थे।"कुछ खाने को दे दो माई दो दिन से भूखे हैं । तेरा भला करे भगवान ।" देखते ही वंदना की त्यौरी चढ़ गई।
"अरे जवान हो ,हाथ- पैर सही- सलामत है । माँगते हुए शर्म नहीं आती।"
"शर्म आती है मैडम पर मजबूर हूँ। पति को लकवा मार गया है उसकी सेवा करनी पड़ती है, ईलाज कराना पड़ रहा है। एक फैक्ट्री में काम देखा था सुबह आठ बजे से शाम सात बजे तक काम करना पड़ता था । पति को कोई पानी देने वाला भी नहीं था मजबूर होकर नौकरी छोड़ दी । अब बस तीन घंटे माँगती हूँ पचास रूपये दवाई के लिए और खाने के लिए दस रोटी मिल जाएँ तो गुजारा हो जाता है चार रोटी पति के लिए चार मेरे लिए और दो बच्चे के लिए पूरे दिन में बहुत होती है । कुछ पैसे बचे तो पति के लिए सब्जी बना देती हूँ। इससे मेरे दोनों काम चल रहे हे पति की सेवा और गुजारा भी।"
"अरे रेवती देख, जरा कैसरोल में दो रोटी बासी पड़ी होंगी इसे दे दे" वंदना ने अपनी मेड को आवाज लगाई जो अभी -अभी बरतन साफ करने के लिए आई थी।
"अच्छा मैडम"
"मैडम कोई फटी- पुरानी साड़ी हो, सूट सलवार हो तो दे दो। मैडम कपड़े बिल्कुल फट गये हैं।" कहकर भिखारिन गिडगिडाई "तुम्हारी यही प्रोब्लम है जरा सी दया दिखाई और तुम पीछे पड़ जाती हो अरे उँगली पकड़कर पोंहचा मत पकड़ा करो। जो दे दिया बहुत है।" भिखारिन बहुत गिड़गिडाई पर वंदना का कलेजा नहीं पसीजा । उसने चुप्पी साध ली । हारकर बेचारी भिखारिन चली गई।
"मैडम लो ये टब " कहकर उस फेरी वाले ने बड़ी जल्दी में अपना सामान समेटा और उठकर चला गया वह लम्बे- लम्बे डग भरता हुआ चला। वंदना को उसका व्यवहार बड़ा अजीब लगा उसने उत्सुकतावश बाहर निकलकर देखा ,बरतन वाले ने उसकी दी हुई साड़ियों में से एक साड़ी उस भिखारिन को दे दी और लम्बे -लम्बे डग भरता हुआ निकल गया। वंदना के हाथों की पकड़ ढीली पड़ गई हाथों से टब छूट गया। सोचकर पसीना आ गया दोपहर धूप में ,ठंड में गली - गली बोझ उठाए फिरता हुआ आदमी उसकी पीड़ा से द्रवित होकर साड़ी दे सकता है और मैं हैंगर में टंगी हुई साड़ियों को देखकर खुश होती रहती हूँ जबकि मेरे लिए वो साड़ी बेकार थी लेकिन उसकी तो कमाई थी। सोच रही थी वो अमीर है या मैं ?