कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग
कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग
मैंने 12वीं के बाद अपनी बेटी का एडमिशन इंजीनियरिंग में कराया। बेटी के मार्क्स सामान्य थे। रिस्क नही लिया ना कोचिंग में समय व पैसा दिया। बेटी को भी कम्प्यूटर से इंजीनियरिंग ही करना था, मेरी इच्छा के विपरीत, नये जमाने के बच्चे जो हैं। बस एक फोन करने के देर फिर तो सुबह श्याम , फ़ोन पर फ़ोन, काश देश में सरकारी सेवा ऐसी हो जाय!
जैसे तैसे एडमिशन बिना किसी डॉक्यूमेंट के हो गया, वो सब बाद में आते रहेंगे, बोला गया।
फी भी कुछ अभी जमा करने को बोला , बाकी बाद में हो जाएगा, बोला गया, अच्छी तरह पेश आया जाता, चाय के लिए पूछा जाता आदि आदि । होस्टल नही लिया बजट से बाहर था व घर से 22 किमी ही दूर था। बेटी होस्टल चाहती थी, उसकी माँ भी तैयार नही थी।
एहसास हो चला था एजुकेशन कितनी महंगी हो चली है, जो की बस सुनते ही थे, सरकारी सीट के लिए क्यों इतनी मारा मारी है। मेहनत तो है ही, जो समझ जाते हैं अपना व अपने पेरेंट्स का कितना धन बचा लेते हैं। वहाँ कोई रिजर्वेशन फी व शीट के लिए नही रहता, वहाँ समानता है, काश देश में हर स्तर पर ऐसा ही हो।
समय गुजर रहा है, कॉलेज में बेटी एडजस्ट हो गई है। अच्छा महसूस कर रही है, एक्स्ट्रा एक्टिविटीज में उसको अच्छा लगता है, अच्छी बात है, यही जरूरी भी है। एक्स्ट्रा का जमाना जो है।
मेरी बेटी की फीस का एक इशू मेरे सामने आया, निराश व गुस्सा आया , जैसा एक हिन्दुस्तानी की आदत होती है, बस मैं अपनी बेटी का जब एडमिशन इस कॉलेज में कराया, तो मेरे पास ऑप्शंस दिया गया था, कि आप किस्तों में फीस जमा कर सकते हैं । आफिस स्टाफ मेरे व्हाट्सएप के संपर्क में भी हैं, वह समय-समय पर मुझे फी के बारे में बता देते । लेकिन मेरी बेटी का फर्स्ट सेमेस्टर का एग्जाम 6 जून तारीख में है । दो दिन पहले मेरे पास मैसेज आता है कि, फी भी जमा कर दीजिए। अपनी फीस जमा कीजिए ₹18000 पेंडिंग था । मैंने जमा कर दिया लेकिन, बेटी को एडमिट कार्ड नहीं दिया गया । क्योंकि उन्होंने बोला कि आपको ₹14000 लेट फाइन (इन 18000 से अलग) फाइन देना है ₹200 प्रतिदिन के हिसाब से। याद आया जैसे पहले जमाने में साहूकार गरीब मजबूर आदमी को फंसा कर जिन्दगी भर कर्जदार बना कर रखते थे। या उनके पेपर में अपने हिसाब से सब लिखते थे।
मेरे पांव तले जमीन खिसक गई, मैं कॉलेज में गया साहब और मैडम से मिला और उनको बताया कि आपने मुझे कभी बताया क्यों नहीं ? आप मेरे साथ ग्रुप में व्हाट्सएप संपर्क में है और एडमिशन के समय आपकी अप्रोच कुछ और थी अगर आप मुझे बता दें कि फाइन होगा तो जरूर , मैं भी फीस जमा कर देता।
साहब ने अंगुली से इशारा किया, सामने बोर्ड पर नोटिस से देख लो, बेटी के वाट्सएप्प ग्रुप पर भी दिया गया था। उस ग्रुप में 100 स्टूडेंट्स है, कैसा पता होगा, मेरे द्वारा कहने पर उनका टोन बदल गया, उन्हें इससे कोई मतलब नहीँ, एडमिशन के समय की बात कुछ और थी। ये सब बेटी के सामने हो रहा था, वास्तविकता से सामना भी जरूरी था।
मेरे शिक्षक होने का पता होने पर, उल्टा नैतिक शिक्षा देने लगे। आपको बेटी को कॉउंसलिंग करनी चाहिए, वो आपको समय पर मेस्सज दे। तकनीक का इस्तेमाल कर कैसे बेवकूफ बना दिया, मैं कुछ ना कर पा रहा था । पहले पेरेंट्स को हर दिन फ़ोन करते थे, अब नया कस्टमर ढूंढ रहे हैं, लगता है ना।
कुल मिलाकर मुझे ही दोषी बता दिया गया, व्यवसाय ऐसे ही होता है ?
साहब ने अपने परिवार अपने बच्चों का एग्जांपल दिया, मेरे बच्चे बिल्कुल ऐसे नहीं है, तब महसूस हुआ कि पद पर बैठा हुआ आदमी कैसे अपनी बात को सही ठहराता है। जो नियम कायदे कानून को अपने तरीके से मोल्ड कर सकता है ।
मेरा कोई भी तर्क सुनने को साहब तैयार नहीं थे, साहब व अपना आफिस जो था।
नैतिकता क्या सीधे-साधे लोगों के लिए है? या उनको सीधा बनाए रखने के लिए है कि, कुछ साहब लोग उनको बेवकूफ बना सकें? नैतिकता की बात है, बेमानी हो जाती है।
दो तरह की बातें निकल कर आती है, सूचना दी गई मुझे क्यों नहीं बताया गया। मतलब स्पष्ट है उन्हें धन की उगाई करनी थी। कोई ₹50, 100 की बात नहीं हजारों रुपए की बात थी। जहां हजारों रुपयों की बात हो केवल ग्रुप में छात्र को मैसेज कर देना कहां तक उचित है । व्यक्तिगत रूप से यदि मैसेज किया जाता तभी भी इतना दुख नहीं होता। बेटी बिल्कुल मौन थी, चेहरा का रंग उड़ गया था, अभी तक कॉलेज की इमेज बहुत अच्छी जो थी। सीखने की कोई उम्र नही होती?
₹200 प्रतिदिन का फाइन कोई छोटी बात नहीं है , अब वह भी ₹14000 कर दिया गया था। क्यों नहीं कॉलेज ने मेल या मेरे नंबर पर सूचना दी गई। कहीं ना कहीं एक काम करने का तरीका मालूम दिया ताकि आप गैर कानूनी तरीके से उगाही कर सकें । सरकारी स्तर पर सूचना के रूप में एक दो बार नोटिस दिया जाता है , यहां उसका कोई औचित्य नजर नहीं आया।
अब जो बात में कहने जा रहा हूं उसको उसको सुनकर आपको और आश्चर्य होगा। और मेरी बात से आप सहमत भी हो सकते हैं , शायद नहीं भी । मेरे से प्रार्थना पत्र लिखा गया कि ₹14000 लेट फाइन के धनराशि को कम कर दिया जाए। साहब ने अपने कर कमलों से उसको ₹5000 किया और मेरी उपकार का भाव जग जाहिर कर दिया।
गांधीजी की याद भी आती है , कैसे किसी अन्याय के खिलाफ खड़े होकर अंग्रेजों को भारत से बाहर का रास्ता दिखाया । अगर मैं इस परिपेक्ष में इस घटना को देखूं मुझे अपने बेटी का भविष्य नजर आता है जिसको 4 साल इस कॉलेज में रहना है। और आने वाली परेशानियां को मैं देख रहा हूं , जो संभवतः हो सकती हैं या नहीं भी। पता नहीं गांधी जी ओर इस बात में कोई समानता है की नहीं, वो क्या करते?? आदि आदि....
बात सिर्फ एक इस घटना की नहीं है या इस छोटी घटना की नहीं है । आये दिन इस तरह की समस्याएं हमारे , मेरे आपके सामने आती हैं , उसमें हम क्या निर्णय लेते हैं , यह हमारे व्यक्तिगत क्षमता और विवेक पर निर्भर करता है। हम उससे कैसे निपटते हैं या निपटा देते हैं , हीरो बनते हैं या जीरो बनते हैं।
बेटी बहुत कुछ सीख सके तो, उसका पढ़ाई का जुनून पक्का होना चाहिए, नासमझी??