RAJESH KUMAR

Inspirational

4.0  

RAJESH KUMAR

Inspirational

सन्तों में सन्त

सन्तों में सन्त

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कबीर जैसे महान संत का कथन-'साधुन में रविदास संत है।


14 व 15 वीं सदी में  एक ऐसे सन्त का बोलबाला था,जिनको हम सन्त सिरोमणि (मान्य व श्रेष्ठ) रविदास के नाम से जानते हैं। समाज व देश हित की सर्वोत्तम मिसाल कायम की। वो ना केवल दलितों के मार्गदर्शक थे, सर्वमान्य मानवीय मूल्यों व उच्च आदर्शों के पक्षधर थे।

बिना किसी दुर्भावना के ,सबको अपना माना। जबकि समाज ने उन्हें त्रिस्कृत कर दिया था,उनके काम (चमड़े के जूते बनाने) को लेकर, उनकी नीची जाति को लेकर ,उनके प्रतिभा(निम्न जाति के बालक में)  को लेकर आदि आदि।

लेकिन महापुरुष हमेशा आगे व बहुत आगे की सोच रहे होते हैं। समाज में हमेशा प्रतिभा की पहचान करने वाले व आगे  बढ़ाने वाले लोग  भी मौजूद रहते हैं ,जैसे रविदास जी को उच्च जाति के ब्राह्मण  शारदानंद जी ने शिक्षा दीक्षा(विरोध के बाद भी) दी व उनकी प्रतिभा को पहचाना। बाल्यावस्था अवस्था से ही उनके चेहरे पर नूर दिखाई देता था। जैसे परलौकिक सिद्धि उन्हें प्राप्त हो।

उस समय की परिस्थितियों में जो  उच्च जाति, निम्न जाति की वैमनस्यता थी उसको खत्म करने के कबीर दास जी ने हम सबको मार्ग दिखाया । वो मार्ग था अपने को जानना, बिना अपने को जाने ईश्वर को नही पाया जा सकता है। उसको अपने से प्राप्त करना होता है, दूसरा केवल मदद या रास्ता दिखा सकता है।

जो कुछ समय उत्तर भारतीय क्षेत्रीय क्षेत्रों में प्रचलित रहा धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गया। और यह विचारधारा अब तक प्रासंगिक बनी हुई है,  क्योंकि भेदभाव व जाति व्यवस्था अभी भी मौजूद है। शायद ये पूर्णतया कभी समाप्त नही होता,सिर्फ रूप परिवर्तित होता है।

मन चंगा तो कठौती में गंगाउनकी पूरी सोच और कार्यशैली को वर्णित कर देता है। आप ही अपने स्वामी हो,जैसा सोचना,करना चाहो आप कर सकते हो। बस भावना पवित्र व परोपकारी होनी चाहिए, जो आप को  ईश्वर के ओर निकट ले जाये।

ईश्वर को पाने के कई और तरीके भी हो सकते हैं । जिसमें  रविदास जी ने भी निर्गुण भक्ति से ईश्वर प्राप्ति का रास्ता खोल दिया। और सभी आडंबरों की तिलांजलि दे दी।  जो  पद (सार्थक शब्द), दोहे (पहला और दूसरा चरण एक पंक्ति में और तीसरा और चौथा चरण दूसरी पंक्ति में लिखा जाता है) अपने समय में स्थापित किए आज तक सबके लिए भक्ति व मार्गदर्शन कर रहे हैं। उनकी निराकार ईश्वर भक्ति के चर्चे दूर दूर तक फैले थे, राजा-रानियां सन्त उनसे मिलने व चर्चा करने आते थे। अनेकों  अनेकों के वें प्रेरणा स्रोत रहे, मीराबाई के गुरु थे, जिन्होंने कृष्ण भक्ति में अपने को डुबो लिया।

उन्होंने  आडंबरो का खंडन किया जो उस समय में प्रचलित थी।  सभी प्राकृतिक संसाधन सभी के लिए हैं जल ,जमीन ,जंगल इसमें किसी विशेष जाति का अधिकार नहीं हो सकता, ऐसा उन्होंने प्रसारित किया और लोगों को जागरूक किया।

कोई विशेष वेशभूषा   धारण करने से कोई उच्च निम्न नहीं हो सकता,पहचान जरूर अलग हो सकती है । उन्होंने अपने माथे पर तिलक गले में माला और जनेऊ भी धारण धारण किया जिसका विरोध भी हुआ। मानसिक गुलामी इतनी कि उन्हीं के जाति के लोग उनके विरुद्ध हो गए ,नहीं चाहते थे कि रविदास जी जनेऊ धारण करें तिलक लगाए ,मन्त्रों उच्चारण करें । ये धारणा बलवती थी कि  यह कार्य विशेष जाति का है। 

लेकिन महापुरुष ने  निडर होकर ,सामाजिक कुरीतियों को बदलने में लगे हुए थे। उस समय की परिस्थितियों में जहां किसी निम्न जाति के व्यक्ति द्वारा मंत्र उच्चारण सीखना, मंत्र सुनना  एक दंडनीय अपराध था। पता चलने पर गर्म तेल कान में डाल दिया जाता था। उस समय उन्होंने ज्ञान की गंगा भागीरथी, बहा दी थी। उनके तर्क का कोई जवाब किसी के पास नही होता था। उनकी कलम का ऐसा जादू चला की आज तक रविदास प्रासंगिक वह मार्गदर्शक बने हुए हैं।  गुरु ग्रंथ साहिब में अन्य धार्मिक सन्त के अलावा रविदास जी के भी 40 पद  लिपिबद्ध है ,जो सबको प्रेरणा दे रहे हैं। रविदास जी सभी धर्मों को जोड़े रखने वाली विचारधारा है जो (सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय) को सम्रद्ध करती है, व जो भी कुरीतियों रही उन को दूर करने में रविदास हमेशा प्रयासरत रहे अपनी लेखन से वे अपने परोपकारी  कार्यों से।ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन।पूजिए चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीन।।

कर्म ही पूजा है ,कोई भी काम छोटा बड़ा नही होता,हमारी सोच ही उसको ऐसा बनाती है। अपने काम को पूर्ण कुशलता से वे प्रश्नता से करते थे। अपने कार्य में संतुष्टि व परोपकार की भावना ईश्वर के निकट ले जाती है। उसके लिए किसी प्रकार के आडम्बर व दिखावे की जरूरत नही होती। रविदास जी कर्मयोगी थे, ईश्वर की भक्ति कार्यों से सिद्ध करते थे। अपने कार्य को समय से निपुणता से करना किसी भी इष्ट वंदना से कम नही हो सकती।

कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।

वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।

सब ईश्वर के ईश्वर सब का है ,वह किसी मे कोई भेद नही करता। सब मजहब व धार्मिक ग्रन्थ भी यही संदेश देते हैं। बस अपने स्वार्थ का पर्दा हटाने की जरूरत है।



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