बाबा उपेक्षितों के मसीहा
बाबा उपेक्षितों के मसीहा
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर
( 14 अप्रैल 1891)
साधन व साध्य की सच्चाई को बताने वाले डॉक्टर भीमराव अंबेडकर उपेक्षितों के मसीहा ऐसे ही नहीं कहे जाते।
भारत रत्न डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को उपेक्षितों का मसीहा कहा जाता है, बाबा की संज्ञा दी जाती है। क्योंकि उन्होंने अपना पूरा जीवन इन दलितों के लिए खपा दिया। अपनी बुद्धि ,सामर्थ्य व समय सब कुछ इन्हीं दलितों को मुख्य धारा में लाने के लिए समर्पित कर दिया। जो की दलितों व भारत देश के लिए ,उसके विकास के लिए अति आवश्यक था।
भगवान शिव विष पी कर अमर हो गए, राहू केतु अमृत पी कर असुर हो गए, ये अपने कौशल, अंतर निहित शक्ति व परोपकार की भावना के कारण हुआ
शिक्षा, अध्ययन के प्रति अपनी जिद के कारण इतिहास में वे, ये स्थान पा सके, जिन्हें कुछ जातियों के लोगों को सदियों से अलग रखा गया था। शिक्षा के बल पर ही उन्होंने कानून मंत्री, संविधान निर्माता ,दलितों के मुख्य हितैषी, प्रबुद्ध लेखक, शिक्षाविद ,समाजशास्त्री ,अर्थशास्त्री के क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया । उस से बढ़कर जो लोगों के दिलों में देश व विदेशों में स्थान पाया, यह शिक्षा के प्रति उनकी लगन व शिक्षा का महत्व जान लेने के बाद ही हुआ।
निश्चित रूप से जो उन्होंने निम्न जाति में पैदा होने से लेकर, अपनी जीवन में जो उनके साथ दूसरे हिंदूओं का रवैया रहा । वह सभी दलितों से जोड़कर देखते थे । जिन्हें सार्वजनिक स्थानों पर पानी पीने, छुआछुत पूजा पाठ करना जैसे मौलिक अधिकार भी नहीं दिए गए थे। बाकी सब तो छोड़ ही दीजिए? उनकी आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक स्थिति निम्न स्तर का थी। जबकि उस समय आर्थिक स्थिति उनके परिवार की अच्छी थी, लेकिन सामाजिक रूप से सदियों की कुप्रथा साथ छूटने को तैयार नहीं थी। लेकिन अपने ऊपर हीनता को हावी नहीं होने दिया।
अंबेडकर जी 9,10 वर्षों की उम्र में, उनका परिवार महानगर मुंबई में आ चुके थे। और उनकी शिक्षा-दीक्षा अच्छी प्रकार से वहीं से हुई। जिसमें उनके पिताजी का व उनके शिक्षक का महत्वपूर्ण योगदान था । एक महानगर में रहकर जो विकट स्थितियां थी तो, हम और आप समझ सकते हैं कि गांव- देहात में क्या दयनीय स्थिति रही होंगी? जो आज भी यदा-कदा देखने को मिलती रहती हैं। कानून में प्रावधान होने के बाद, जेल तक हो सकती है । मानसिकता में बदलाव, उस तरह या गति से नहीं हो पा रहा है।
यहां विशेष रूप से उल्लेख करना होगा कि ब्राह्मणवाद से अभिप्राय ,स्वतंत्रता ,समानता और भ्रातृत्व भाव की भावना के निषेध से है। इस अर्थ में ब्रह्मणवाद सभी वर्गों में व्याप्त हैं ,और मात्र ब्राह्मणों तक सीमित नहीं है। हालांकि यही लोग उस के जन्मदाता रहे हैं।( डॉ बी आर अंबेडकर)
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर लोगों को नागरिक अधिकारों से वंचित नहीं होना देना चाहते थे । इसलिए वह विशेष अधिकारों की मांग कर रहे थे।
2 साल 11 महीने 18 दिन ,60 देशों का संविधान का अध्ययन, तब जाकर संविधान का ये स्वरूप सामने आया।
जहां आज किसी संविधान के संशोधन के लिया इतना समय लग जाता है। हमारा भारतीय संविधान लगभग 3 वर्ष में बन कर तैयार हुआ, कम ही लगते हैं, अब की परिस्थिति को देख कर ।
दलितों और पिछड़ों के लिए आरक्षण की व्यवस्था अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारों का वर्णन संविधान में किया गया। साथ में देश की संप्रभुता और एकता पर विशेष ध्यान दिया गया।
दलितों और पर पिछड़ों को मुख्यधारा में लाने के लिए जो आरक्षण का प्रावधान किया गया। उसको समझने के लिए जो लोग उनका विरोध करते हैं कि, आरक्षण गलत था ,उसका इस तरह से समझा जा सकता है।
हमें एक रेस (दौड़)में प्रतिभाग करना हो और प्रतिभागियों को एक ही नंबर का जूता दे दिया जाय। लेकिन सभी लोगों का पैर का साइज़ अलग अलग हो। कुछ लोगों के लिए वह जूता किसी भी काम का नहीं । अतः यह जरूरी है की रेस(दौड़) के लिए सभी को उनके पैर के साइज का जूता दिया जाए। जिससे वह आराम से दौड़ सके चल सके। आरक्षण सभी को उनके हिसाब से बराबर साइज का, जूते देने जैसा है।
दलितों व महिलाओं को पिछड़ों को बराबर का दर्जा लाने के लिए उन्हें सुविधाएं शिक्षा के क्षेत्र में रोजगार के क्षेत्र में आरक्षण देना जरूरी था । ताकि वह सभी लोग जो पहले से ही सुविधा संपन्न हर तरह के लोगों के ,उनके बराबर आ सके।
कुछ लोग जो उनको स्वार्थी कहते थे, की उनके कारण हिंदू समाज मे विघटन होगा। ऐसा निर्मूल साबित हुआ। वो सिर्फ दलितों की हिंदु के बराबर लाने की सोच रहे थे। उन्होंने हमेशा दूसरे नेताओं के प्रति कृतज्ञता दिखाई, कि उन्हें संविधान समिति का अध्यक्ष बनाया गया, विभिन्न अवसरों पर जो सम्मान मिला।
अपने भाषण में उल्लेख किया ,संविधान कितना भी अच्छा क्यों न ही, अगर वहां के लोग अच्छे नहीं, तो उस संविधान का कोई मतलब नहीं, साथ ही कृतज्ञता व्यक्ति के प्रति या किसी भी नायक के ऊपर एक सीमा तक उचित है । अन्यथा वह खतरनाक साबित हो सकती है, राष्ट्र हमेशा सर्वोपरि होना चाहिये, कोई भी विशिष्ट व्यक्ति नहीं, धार्मिकता मे ये अलग हो सकता है, वहाँ व्यक्तिगत निष्ठा की बात होती है।
देश भक्त अंबेडकर , देख रहे थे मुस्लिम लीग मजबूत होती चली जा रही थी ,इससे अछूत वर्ग में भी राजनीतिक चेतना जागृत हुई। उन्हें भी लगने लगा कि हमारा क्या होगा? अंबेडकर जी ब्राह्मणवाद की दोषपूर्ण जाति व्यवस्था को दोषपूर्ण मानते थे।
गोलमेज सम्मेलन में मुसलमानों व सिखों को अल्पसंख्यक मान लिया गया था, परंतु दलितों का क्या? तीसरा गोलमेज सम्मेलन मैकडोनाल्ड ने अम्बेडकर की बात मान कर ,उस मसले पर अपना फैसला सुना दिया। कि दलितों को विधानसभाओं में विशेष स्थान दिए जाएं ,व दो वोटों का अधिकार दिया जाय।
क्योंकि सदियों से उपेक्षा व छुआछूत का जो दंश झेल रहे थे। मुस्लिम लीग ने कहीं ना कहीं और राजनीतिक चेतना जागृत करने में सहयोग दिया। मुस्लिमों को व सिखों को अल्पसंख्यक का दर्जा दे दिया गया था । डॉक्टर भीमराव अंबेडकर चाहते तो अपनी अलग धरती की मांग कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
इस कारण से 20 सितंबर 1932 को गांधी जी ने आमरण अनशन शुरू कर दिया, उन्हें देश में टूट होने का भय था, इसी परिपेक्ष में 26 सितंबर 1932 को मंदिरों के दरवाजे अछूतों के लिए खोल दिए गए थे।
लेकिन सच्चाई आज भी हमारे सामने हैं । अंबेडकर जी की जो सोच थी वह इसी कारण से थी ,कि कभी हिंदू मानसिकता (ब्राह्मणवाद मानसिकता) उन्हें अपने समान नहीं आने देगी।
अंबेडकर जी ने पूना पैक्ट समझौता करते हुए यह साबित किया की। देश की संप्रभुता, संपूर्णता व अखंडता में कितना विश्वास रखते थे । गांधी जी और अंबेडकर जी का दोनों का यही प्रयास था कि देश में किसी तरह का विभाजन जाति आधार पर ना हो। इसी कारण से दोनों लोगों के प्रयास से पूना पैक्ट समझौता दलितों के संदर्भ में किया गया।
उनका नारा था सबसे पहले और सबसे अंत में, हम भारतीय हैं।
सामाजिक क्रांति के जन्मदाता भी रहे, उन्हें मालूम हो गया था कि अगर आपके पास पैसा धन दौलत या शक्ति नहीं है। तो आप अपनी बातों को आगे नहीं बढ़ा सकते। आप केवल याचक बन सकते है। यह आज के संदर्भ में भी चरितार्थ हो रही हैं। मनुस्मृति को दलितों, नारी व दलितों के सम्मान की गिरावट का कारण भी मानते थे।
हमेशा समाज में कुछ ऐसे लोग रहे, जो महान व्यक्तित्व के धनी लोगों के साथ उनके लिए सीढ़ी की तरह काम किया। ऐसे ही अंबेडकर जी के लिए उनके शिक्षक जो ब्राह्मण थे, उन्होंने उन्हें आगे बढ़ाया उन्हें नाम दिया, ताकि वह कुंठा का, हीनभावना हिंसा का शिकार ना हो।
गुरु का स्थान हमेशा हमेशा से ऊंचा रहा है । इस परिपेक्ष में भी गुरु का साथ हो, और आप मेहनती हो तो आप, और मैं भी ऊंचाइयों को पा सकते हैं ।
गांधी जी भी उन व्यक्ति में से थे, जो अंबेडकर जी की प्रतिभा को जानते, पहचानते थे,उन्हीं के कारण उन्हें संविधान ड्राफ्ट कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया, स्वयं की प्रतिभा तो थी ही, शायद ही उस समय इतना योग्य व्यक्ति कोई था। पढ़ाई का स्तर व डिग्री की संख्या देख कर कोई भी हैरान हो जाय, मानो बाबा साहब सब कुछ जानना व पढ़ना चाहते हो जो उनके समाज के लोगों से सालों साल वंचित रखा गया हो। उसी का प्रति फल रिज़र्व बैंक की स्थापना में उनकी भूमिका व देश को असमानता क़ई खाई को भरने का काम किया, जिसमें महिलाओं ,कामगारों व वंचितों को समान अधिकार देकर ,देश की विकास में शामिल कर दिया।
संचार माध्यम व जाति व्यवस्था
एक बात निश्चित रूप से कहना होगी। आज के संदर्भ में संचार के साधनों की सुलभता के कारण जाती पाती ऊंच-नीच आदि का भेदभाव काफी हद तक समाप्त सा होता दिख रहा लगता है। अवसरों की समानता के कारण भेदभाव खत्म हो रहा है । सूचना एक बहुत बड़ा साधन सबके सामने जल्द सुलभ हो पा रहा है । जिसे हर कोई बराबरी पर आकर अपने आप को योग्य साबित कर सकता है। और यह सब हो रहा है एंड्राइड, फोन प्लीज, फेसबुक ,व्हाट्सएप जैसे संचार माध्यमों से जो की जन जाग्रति के लिये सहायक हो रहा है।
पढ़ाई के लिए आपको यूट्यूब फेसबुक गूगल पर संसार भर की सूचना है । वहां पढ़ाई के साधन उपलब्ध है ,यदि आप के अंदर जिज्ञासा व आगे बढ़ने की ललक है । तो उसमें किसी तरह जातिगत भेदभाव ऊंच-नीच का भेदभाव इस समय में नहीं रह गया है , जोकि एक बहुत अच्छी बात है। समय ने टेक्नोलॉजी से दुनिया को अलग तरीके से बदल कर रख दिया है। लेकिन सच्चाई यह है कि जो मानसिक रूप से रंग भेद, जाति के प्रति हमारी मनोदशा नहीं बदल पा रही है।
कुछ लोग उन सर्वोच्च संसाधनों, व स्थान पर दलितों के लिये साधन सीमित करते है।
धीरे धीरे दलितों का शैक्षणिक स्तर बढ़ने ,आर्थिक स्थिति ठीक होने, जागृति व जागरूकता के कारण, वह दलित भी अपना स्थान पा लेंगे बाबासाहेब आंबेडकर के दिखाई रास्ते के कारण।
शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो यही उनका नारा रहा।
ये शब्द, सब कुछ व्यक्त कर देते हैं।
ऐसी शख्सियत को नमन।