RAJESH KUMAR

Others

4.2  

RAJESH KUMAR

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मीटिंग

मीटिंग

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मेरी नियुक्ति विद्यालय में एक गणित शिक्षक के रूप में हुआ। नियुक्ति विद्यालय में टीजीटी गणित शिक्षक के रूप में हुआ। उससे पूर्व अथक प्रयासों व मेहनत के बाद कई प्रयासों के बाद मुझे सरकारी विभाग में शिक्षक बनने का मौका मिला। यह मेरे लिए गौरवशाली क्षण था । मेरे परिवार के लिए भी निश्चित रूप से,मेरे सपने कहीं

इससे ज्यादा थे, लेकिन शायद मुझसे और ज्यादा प्रतिभाशाली मेरे मित्र लोग रहे होंगे। जिस कारण से मैं अपने मन पसंद पद पर नहीं पहुंच सका लेकिन यह शुरुआत हो सकती है। उस सपने को पूरा करने के लिए भले ही रास्ता लंबा हो। मेरे समय में या अभी भी सरकारी नौकरी की प्राथमिकता सबसे पहले होती है।

खैर, स्कूल की यात्रा आरंभ हुई,सब कुछ नया नया सा विद्यालय में नए शिक्षकों से मिलना नए विद्यार्थियों से मिलना,प्राचार्य से मिलना सब कुछ नया सा अनुभव ,क्योंकि हम विद्यालय में पढ़ कर आ चुके होते हैं।  लेकिन अब मैं शिक्षक के तौर पर हूं तो बिल्कुल  अलग सा अनुभव कुछ और ही है। कार्यालय आदेश आता है कि आज विद्यालय समाप्त होने के पश्चात सभी शिक्षक मीटिंग के लिए एकत्रित होंगे । क्योंकि मेरी पहली मीटिंग थी, तो मुझे भी बहुत चिंता थी कि क्या होता है। मीटिंग  में कुछ कुछ चीजें जानी समझी थी, लेकिन

प्रैक्टिकल की बारी थी,फिल्मी मीटिंग तो देखी है।

प्राचार्य महोदय ने मेरा परिचय औपचारिक रूप से सबसे कराया व शुभकामनाएं दी।  मैंने भी मिष्ठान वितरण सभी साथियों को कराया। तत्पश्चात प्राचार्य महोदय ने मीटिंग शुरू की उसमें विद्यालय में अनुशासन, व छात्रों के प्रति कैसा व्यवहार होना चाहिए,कॉपी चेकिंग वर्क ,शिक्षण के अलावा जो अन्य ड्यूटी होती है, सब पर ध्यान देने को कहा ,उनको भी निष्ठा पूर्वक करना है, यह निर्देशित किया गया। 

50-60 के स्टाफ में कोई भी शिक्षक प्रत्युत्तर नहीं कर रहा था ना ही कोई प्रश्न पूछ रहा था।  मुझे यह सुनकर वह देखकर थोड़ा सा आश्चर्य हुआ। मैं अभी इन चीजों को नोट कर रहा था वह सजग था। 

धीरे-धीरे हर 15 दिन में एक मीटिंग आयोजित होने लगी। जिसमें विद्यालय से संबंधित सभी कार्यों पर लगातार चर्चा होना व कार्यों की प्रगति को देखना मुख्यतः एजेंडा रहा लेकिन सामान्यतः यह एकतरफा परिदृश्य होता है। धीरे-धीरे समय गुजरा तो 3 साल मुझे विद्यालय में हो गए, जान समझ पहचान सबसे बढ़ने लगी।  इस बीच स्थानतरण प्राचार्य का भी हो गया विदाई समारोह में शानदार बातें सब शिक्षकों ने प्राचार्य के लिए कहीं।  मैं देखकर आश्चर्यचकित था कि टीचर कितना अच्छा  व्याख्यान करते हैं व बोलते हैं । उनके मनोभावों व आत्मविश्वास देखने लायक था, लेकिन मीटिंग में संवाद हीनता मुझे अभी भी अखर रही थी।


नए प्राचार्य ने कार्यभार संभाला उनकी औपचारिक शुरुआत भी एक मीटिंग से हुई। टीचर्स पर शिक्षकों व छात्रों के प्रति यह औपचारिक मीटिंग थी। धीरे-धीरे  मीटिंग का अंतराल कम होता रहा है,अब हर हफ्ते एक मीटिंग आयोजित की जाती है। जिसमें पिछले मीटिंग का एजेंडा डिस्कस होता है, कार्य हुए की नही,अगर नही तो क्यों नही? नई जिम्मेदारियां भी दी

जाती है।  वरिष्ठ व कनिष्ठ व पद का भी ध्यान रखा जाता है। क्योंकि शिक्षक का कार्य इतना विस्तृत व अधिक फैला दिया गया है कि उनको समेटना आसान नहीं हो रहा है। एक दिन मेरे अंदर की उत्सुकता जाग उठी मीटिंग में अपनी बात मैंने रखी। मैंने अपनी समस्याओं के बारे में विद्यालय में प्रोजेक्टर, ब्लैक बोर्ड की समस्याओं के बारे में साफ सफाई के बारे में कुछ अपने सुझाव रखे ,जो कि प्राचार्य के द्वारा मांगे भी जाते हैं।  सब शिक्षकों ने मेरे हां में हां मिलाई ,व मीटिंग के बाद तारीफ की ,बोला आप बहुत साहसी अध्यापक हो।


असल मीटिंग का असर,अगले दिन कार्यालय आदेश में उन सब जिम्मेदारियों से मुझे जोड़ दिया गया कि आप इन सब चीजों को देखोगे वह रिपोर्ट प्राचार्य को देंगे। मैं उन कामों में ऐसे उलझा की जो मूल कार्य था उस से दूरी बनने लगी और कक्षाओं में आना-जाना अव्यवस्थित होने लगा। जो को उचित नही कहा जा  सकता,लेकिन समय? अगली मीटिंग में सर ने मेरे कार्यों की प्रशंसा की और कहा कि आप बहुत ही कर्मठ अध्यापक हैं तो कुछ और जिम्मेदारियां आपको दी जाती हैं।


अंदर ही अंदर मुझे परेशानी महसूस होने लगी लेकिन, मैं कह कुछ नहीं पाया और इस तरह से जिम्मेदारियां का बोझ मेरे ऊपर बढ़ता गया। स्टाफ के लोगों में भी कानाफूसी होने लगी व कुटिल मुस्कान से मुझे समझ में आने लगा कि मेरे साथी क्यों नहीं बढ़ चढ़कर मीटिंग में बोलते हैं। समय जैसे तैसे आगे बढ़ने लगा मेरी शादी हो गई परिवार आगे बढ़ने लगा लेकिन जिम्मेदारियां हैं कि मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थी उनको मना करने का साहस भी मैं नहीं जुटा पा रहा था।  कुछ महीनों बाद  मीटिंग में महिला शिक्षकों ने अपनी समस्याएं सर को अवगत कराया की , कुछ लंबी छुट्टी पर जा रही हूँ । प्रिंसीपल जी ने उनके कुछ कार्यों को देखने के लिए कहा गया।  जब तक मैडम छुट्टी से वापस नहीं आती ,मेरा गुस्सा फूट पड़ा मीटिंग में ही प्राचार्य को मैंने उन्हें इनकार कर दिया,मना कर दिया व कहा मेरे पास पहले ही बहुत सारे कार्य हैं। मैं इस कार्य को करने में असमर्थ हूं,अन्य खाली टीचर्स को क्यों नही दे देते।

सर ने शांति से मुझे बैठ जाने के लिए कहा ,मुझे लगा कि बात बन गई । लेकिन फिर एक कार्यालय देश 2 घंटे बाद मेरे पास हस्ताक्षर करने के लिए आता है कि आपको इस कमेटी में कमेटी सदस्य बनाया जा रहा है।  इंचार्ज छुट्टी पर जा रहे हैं ,तब तक आप इस कार्यों को देखें। मैंने हस्ताक्षर करने से मना कर दिया।  उसके बाद जो चीजें हुईं,वह कल्पना से परे थी । प्राचार्य महोदय ने आदेश को ना मानने के कारण मुझे मेमोरेंडम ईशु किया कि आपने आदेश की अवहेलना की।


मुझे समझ नहीं आ रहा था ,अब मैं क्या करूं मैं वरिष्ठ टीचर्स के पास गया ,कि मुझे क्या करना चाहिए । एक दो टीचर्स ने मुझे खूब चढ़ाया ,आप ऐसा लिखो वैसा लिखो । एक सज्जन मित्र ने ,साथी ने मुझे समझाया कि आप अकेले में व्यक्तिगत रूप से सर से जाकर माफी मांगे और उन्हें अपनी समस्याओं को बताइए । और विनम्रता के साथ उस आर्डर पर साइन कर लीजिए।  कुछ दिनों बाद आप उस काम को उनसे हटवा लीजिएगा लेकिन अभी आपको सर के आदेश मानना चाहिए। वार्षिक रिपोर्ट भी प्रिंसिपल द्वारा ही लिखी जाती है,

जिसको मुझे नुकसान हो सकता है। उनकी सलाह पर मुझे कुछ अंदर से हर्ट भी हुआ कि ऐसे कैसे  होता है। बात हजम नही हो रही थी,लेकिन इसी में भलाई नजर आ रही थी । एक दिन गुजरने के बाद मुझे अपनी शांति इसी में नजर आई कि मुझे ऐसा ही करना चाहिए। सर को मैंने उनके कक्ष में जाकर माफी मांगी।  एक दो बातें उनसे मुझसे कही, कभी भी  मीटिंग में अधिकारी को मना नहीं किया जाता। फिर सर ने एक कप चाय मुझे

पिलवाई। सर ने समझया बात रखने का उसका तरीका होता है ,और आपको जिम्मेदारी दी गई है, कुछ दिन बाद उसको हटा लिया जाएगा। आप अपने साथी टीचर्स से कुछ नही सीखते। हमे काम की सैलरी मिलती है, हां की नोकरी ना का घर। आप ऊर्जावान है कर सकते हो तभी काम दिया गया है।

5 साल होने के बाद मेरा स्थानांतरण दूसरे विद्यालय में कर दिया गया ,जोकि प्रक्रिया के तहत हुआ । मीटिंग का सिलसिला पुरानी विद्यालय में आरंभ हुआ।  पुरानी गलतियों से सीखते हुए हम उन दिनों को याद करते हुए , मीटिंग में मौन रहते हैं । मैंने भी उसका हिस्सा बनना

सीख लिया। स्कूल स्टूडेंट्स के पढ़ने व सीखने के लिए है, जो काम टीचर्स को ही करना है, और मुझे करा होता है, आपकी सीखने की उम्र हैं, आप भी कभी प्रिंसीपल बनोगे। अधिकारी भी सबकी सुनने लगे तो काम करना कठिन हो जाय।  मीटिंग से ये तो निश्चित हुवा की संस्थान के क्या अच्छा होना चाहिए,मीटिंग एक मान्य व लोकतांत्रिक तरीका है। 

सीख- दूसरों की मजबूरी समझें, जैसी बात हो उसको वैसे ही समझना व करना।




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