अंधविश्वास
अंधविश्वास
रुक्कम्मा और उस के पति बाबूराव ने एक छोटा सा घर
खरीदा !उनके लिए यह किसी राजमहल से कम न था!
सुबह से शाम तक नौकरी कर के इस दम्पति ने बड़ी मुश्किल से , हर रुपया बचा बचा कर , खून पसीना एक कर के सारी किश्तें दस साल में पूरी की थी! अपना घर देखकर दोनों फूले न समाते!
नए घर में पहली दीवाली- लक्ष्मी पूजा के लिए सारा सामान जुटाया! रंगोली ,फल फूल ,तोरण, दीये , मिठाई - सब सजावट पूरी कर, पूजा की! आस पास के चार परिवारों को प्रसाद ,थोड़े व्यंजन छोटी सी थाली में देकर जो आई तो एक संतुष्ट गृहिणी की छटा उसके चेहरे पर दिख रही थी!
शाम को दिए जलाकर, दोनों पति पत्नी पूजा में निमग्न - लक्ष्मी देवी के आह्वान की पूरी तैयारी! दरवाज़ा खुला छोड़कर , दोनों आंखें मूंद कर बैठे तो समय का पता ही न चला!
कब दबे पांव कोई अंदर आया, कब रसोईघर में पहुंचा,
कब आटे के कनस्तर में हाथ डालकर एक छोटी सी पोटली पर हाथ मार गया दोनों को पता भी न चला! दबे पांव आया, दबे पांव निकल गया!
थोड़ी देर बाद जब रुक्कम्मा रसोई में गई- काटो तो खून नहीं! आटे का कनस्तर खुला पड़ा था...गहनों की छोटी सी पोटली नदारद! छोटी सी ज़िंदगी में कितना बड़ा तूफ़ान!
लगा लक्ष्मी जी कह रही हैं , ' अरी नादान! अब रामराज कहां रहा ! वह ज़माना और था जब मेरा आह्वान करने के लिए दरवाज़ा खुला रखते थे सारी शाम- मगर आज ऐसी गलती की और किस तरह के अंजाम की अपेक्षा की जा सकती है! इन्सानों की फ़ितरत को नकारना पागलपन है। अंधविश्वास का परिणाम तो भुगतना पड़ेगा! तुम दोनों की श्रद्धा से मैं प्रसन्न हूं मगर नासमझी से नहीं! बुद्धि से काम लो मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ रहेगा!'